बुधवार, 30 दिसंबर 2009

प्रेम में सफलता और सुंदर पति अथवा पत्नी की प्राप्ति होती है।

मनुष्य के जीवन के बनने बिगड़ने में रेखाओं हथेली में विद्यमान पर्वतों, पोरों, चिह्नों आदि की भूमिका अहम होती है। इन सबका ज्ञान हमें हस्त सामुद्रिक शास्त्र से मिलता है। विद्वानों का मानना है कि हस्त रेखाएं स्थिर हैं, कभी बदलती नहीं। परंतु वैज्ञानिक खोजों से स्पष्ट हो चुका है कि रेखाएं परिवर्तनशील होती हैं।
विवाह एवं वैवाहिक जीवन की स्थिति पता लगाने के लिए कुछ विद्वान छोटी उंगली के नीचे स्थित बुध पर्वत की रेखाओं का विश्लेषण करते हैं तो कुछ अन्य शुक्र पर्वत से। किंतु कुछ विद्वानों का मानना है कि ये वास्तव में विवाह रेखाएं नहीं हैं। बल्कि ये जीवन को विभक्त करने वाली रेखाएं हैं। विवाह भी जीवन को दो भागों में बांट देता है- एक विवाह पूर्व का और दूसरा विवाह के बाद का।
1--अगर किसी रेखा में से कोई रेखा निकल कर नीचे की ओर जाए या नीचे की ओर झुके तो उसका फल प्रतिकूल होता है या कमी आती है। इसके विपरीत ऐसी कोई रेखा ऊपर की ओर जाए तो फल में वृद्धि होती है।
2--जंजीरनुमा रेखा अशुभ फल देती है।
3--यदि विवाह रेखा, जो बुध पर्वत पर होती है, जंजीरनुमा हो तो प्रेम प्यार में असफलता का मुंह देखना पड़ता है।
4--यदि मस्तिष्क रेखा जंजीरनुमा हो तो व्यक्ति अस्थिर बुद्धि वाला अथवा पागल हो सकता है।
5--लहरदार रेखा अशुभ मानी गई है। ऐसी रेखाएं शुभ फल प्रदान नहीं करती हैं।
6--रेखा अगर कहीं पतली और कहीं मोटी हो तो रेखा अशुभ होती है। ऐसी रेखा वाला व्यक्ति बार-बार धोखा खाता है तथा सफलता-असफलता के बीच झूलता रहता है।
7--जीवन रेखा के अतिरिक्त यदि कोई अन्य रेखा अपने आखिरी सिरे पर पहुंच कर दो भागों में बंटी हो तो वह अत्यंत प्रभावी तथा श्रेष्ठ फल देने वाली होती है। परंतु यदि हृदय रेखा दो भागों में बंटी हो तो व्यक्ति को हृदय रोग की संभावना रहती है।
8--यदि प्रणय रेखा से कोई रेखा निकल कर ऊपर की ओर जाए तो प्रेम में सफलता और सुंदर पति अथवा पत्नी की प्राप्ति होती है। परंतु यदि नीचे की ओर रुख करे तो प्रेम में असफलता मिलती तथा पति अथवा पत्नी को अस्वस्थता का सामना करना पड़ता है।

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

शनि की अशुभ स्थिति से मुक्ति और बचाव के कुछ टोटके प्रस्तुत हैं

शनि की अशुभ स्थिति से मुक्ति और बचाव के लाल किताब पर आधारित कुछ टोटके प्रस्तुत हैं। इन टोटकों का प्रयोग निष्ठापूर्वक किया जाए तो अनुकूल फल की प्राप्ति हो सकती है।
शनि जब शुभ होगा तब मकान के स्वामी व निवासी को सुख मिलेगा। शनि के अशुभ होने पर मकान से संबंधित परेशानी होती है और गृहस्वामी, गृहस्वामिनी और संतान को कष्ट झेलना पड़ता है। किरायेदार द्वारा मकान पर कब्जा, फैक्ट्री या दुकान कर्मचारियों द्वारा धोखाधड़ी, चोरी, या हानि पहुंचाना, न्यायालय द्वारा कुर्की, प्रशासन व महापालिका द्वारा अनेक प्रकार की आपत्तियां आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
---शनि लग्नस्थ हो और मकान बनवाया जाए तो यह धन और परिवार के लिए अशुभ होगा। निर्धनता, कुर्की, पैतृक संपत्ति के नाश होने आदि की संभावना रहती है। व्यक्ति धोखेबाज, अशिक्षित, बेईमान, झगड़ालू, नेत्रहीन और अल्पायु हो सकता है। उसे संतान सुख की संभावना भी कम रहती है ।
उपाय:
1-मद्यपान व मांस का सेवन न करें।
2-वीरान जगह पर भूमि के नीचे सुरमा दबाएं।
3-बरगद के वृक्ष की जड़ में दूध चढ़ाकर गीली मिट्टी का तिलक लगाएं, विद्या में बाधा व रोग से मुक्ति मिलेगी।
4-धन वृद्धि के लिए बंदर पालें अथवा शनिवार को बंदर को खाना दें।
5-लोहे के तवे, चिमटे व अंगीठी का दान करें।
---शनि अगर दूसरे भाव में अशुभ हो तो मकान अपने आप बनेगा। परंतु आपत्ति हानिकारक होगी। यदि शनि दूसरे में और राहु 12वें में हो तो ससुराल में धन की कमी होती है। यदि गुरु 11वें में हो तो अपयश मिलेगा। यदि दूसरे भाव में शनि के साथ मंगल अशुभ हो तो जातक 28 से 39वें वर्ष तक रोगी रहेगा।
उपाय:
1-प्रत्येक शनिवार नंगे पांव मंदिर जाकर क्षमा याचना करें।
2-शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
3-काली या दोरंगी भैंस, कुत्ता व अन्य कोई जानवर न पालें।
4-अपने माथे पर कभी तेल न लगाएं।
5-गाय के दूध या दही का तिलक लगाएं।
---शनि जन्मकुंडली के तृतीय भाव में अशुभ स्थिति में हो तो धन का अभाव या हानि कराता है। जातक को नेत्र रोग होगा या दृष्टि कमजोर होगी रोमकूपों में रोएं अधिक हों तो जातक निर्धन, अयोग्य व अय्याश होगा। शनि तीसरे व चंद्र 10वें में हो तो अवैध ढंग से धनार्जन करने के बावजूद जातक धनहीन रहेगा और उसके घर का कुआ अथवा घर ही मौत का कारक बनेगा। तीसरे भाव स्थित शनि के शत्रु ग्रह साथ हों तो जातक समस्याओं व धनहानि से परेशान रहेगा। यदि सूर्य भाव 1, 3 या 5 में हो तो लड़का व शनि का अशुभफल मिलेगा।
उपाय:
1-फकीरों और पालतू व कुत्तों की सेवा करें, या तीन कुत्तों की सेवा करें तो मकान बनेगा।
2-घर में कुत्ता सदैव पालें अन्यथा शनि व केतु का अशुभ फल मिलेगा।
3-केतु का उपाय करने पर धन संपत्ति बढ़ेगी।
4-घर की दहलीज को लोहे की कीलों से कीलें।
5-नेत्रों की औषधि मुफ्त बांटने से दृष्टिदोष दूर होगा।
6-भवन के अंत में अंधेरी कोठरी बनाना धन संपत्ति के लिए शुभ होगा।
7-मांस या शराब का सेवन यदि आप नहीं करेगे तो दीर्घ आयु होगी।
---शनि जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में अशुभ हो तो माता, मामा, दादी, सास और नानी पर अशुभ प्रभाव पड़ेगा। अर्थात मकान की नींव खोदते ही ससुराल और ननिहाल पर अशुभ प्रभाव पड़ना शुरू हो जाएगा या जातक को अपने बनाए मकान का सुख प्राप्त नहीं होगा। ऐसे जातकों को प्लाॅट लेकर मकान नहीं बनवाना चाहिए। परस्त्री से संबंध बनाने पर शनि का अशुभ फल मिलता है। शनि चैथे व गुरु तीसरे में हो तो धोखे व लूटपाट से संपत्ति बढ़ेगी। मकानों के कारोबार से लाभ मिलेगा।
उपाय:
1-सांप को दूध पिलाएं।
2-कौओं को छत पर रोटी डालें।
3-भैंस पालें या उसे प्रिति दिन रोटी खिलायें।
4-मजदूर से अतिक्ति सेवा लेने का प्रयास न करे।
5-कुएं में कच्चा दूध डालें।
6-परस्त्री अथवा विधवा से संबंध रखें अन्यथा निर्धन और कंगाल हो जाएंगे।
7-बहते पानी में शराब बहाएं।
8-रोग से मुक्ति हेतु शनि की वस्तुओं का प्रयोग करें।
9-सांप को न मारें।
10-शराब न पीएं।
11-रात्रि में दूध न पीएं।
---शनि जन्मकुंडली के पंचम भाव में हो तो मकान बनवाने पर संतान को कष्ट होगा। संतान का बनाया मकान जातक को शुभ फल देगा। संतान को यदि मकान बनवाना पड़े तो जातक की 48 वर्ष की आयु के बाद ही बनवाएं। संतान के बनाए मकान में वहम न करें। शनि पांचवें भाव में हो और वर्ष कुंडली में जब भी सूर्य, चंद्र और मंगल 5 वें में आएंगे तब जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा। जातक के तन पर बाल अधिक हों तो वह चोर, धोखेबाज और दुर्भाग्यशाली होगा। कलम पर काबू होने पर भी निर्धन रहेगा। रोग, मुकदमे व झगड़ों से परेशान रहेगा। धन की हानि और संतान को कष्ट होगा साथ ही स्वास्थ्य खराब रहेगा और गुलामी करनी पड़ेगी।
उपाय:
1-पैतृक भवन की अंधेरी कोठरी में सूर्य की वस्तुएं गुड़, तांबा, भूरी भैंस, बंदर, मंगल की वस्तुएं सौंफ, खांड, शहद, लाल मूंगे, हथियार और चंद्र की वस्तुएं चावल, चांदी, दूध, कुएं, घोड़े आदि की व्यवस्था करें।
2-अपने भार के दशांश के तुल्य बादाम बहते पानी में बहाएं या धर्मस्थल में ले जाकर आधे बादाम घर में रखें, उन्हें खाएं नहीं।
3-संतान के जन्म लेने पर मीठा न बांटें, यदि बांटंे तो उसमें नमक लगा दें।
4-कुत्ता पालें।
---शनि जन्म कुंडली के षष्ठ भाव में अशुभ स्थिति में हो तो जातक अपनी आयु के 36 बल्कि 39 वर्ष बाद मकान बनाए तो शुभ होगा। 48 वर्ष की आयु के बाद बनाना लड़की के ससुराल के लिए अशुभ होगा। ऐसे जातकों को नुक्कड़ का मकान न तो बनवाना चाहिए और न ही खरीदना चाहिए। शनि की वस्तुएं (चमड़े व लोहे की वस्तुएं) घर पर लाना या सजाना अशुभ होगा। जिस वर्ष वर्ष कुंडली में भी छठे भाव में आए, उस वर्ष राज्यभय, दुख व अशुभ फल मिलेंगे। शराब व मांस का सेवन हानिकारक होगा। 28 से पूर्व विवाह करने पर 34 से 36 वर्ष के बीच माता व संतान शोक होगा तथा कष्ट बढ़ेंगे।
उपाय:
1-तेल में अपना मुंह देखकर सरसों के तेल का भरा बर्तन पानी के भीतर जमीन के नीचे दबाएं।
2-शनि संबंधी कार्य कृष्ण पक्ष में रात्रि में करें।
3-सांप की सेवा (दूध पिलाने) से संतान सुख मिलेगा।
4-नारियल या बादाम बहते पानी में प्रवाहित कराएं।
5-बुध का उपाय करें।
6-काला कुत्ता पालें या उसकी सेवा करें या उसे रोटी दें।
अन्य भावो के विषय में जल्द देगे आप अपने विचारो से अवगत अवश्य करायें।

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

पर्व त्यौहार जनवरी-2010

1 जनवरी-2010
माघ कृ.1
सूर्य उदय 7.13
सूर्य अस्त 18.12
चन्द्रमा मिथुन राशि में 22.38 तक
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2 जनवरी-2010
माघ कृ.2
सूर्य उदय 7.14
सूर्य अस्त 18.13
चन्द्रमा कर्क राशि में
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3 जनवरी-2010
माघ कृ.3
गणेश चतुर्थी
सूर्य उदय 7.14
सूर्य अस्त 18.13
चन्द्रमा कर्क राशि में 22.38तक
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4 जनवरी-2010
माघ कृ.4
सूर्य उदय 7.14
सूर्य अस्त 18.14
चन्द्रमा सिंह राशि में
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5 जनवरी-2010
माघ कृ.5/6
गुरू गोविंद सिंह जयंती
सूर्य उदय 7.15
सूर्य अस्त 18.15
चन्द्रमा सिंह राशि में 24.14
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6 जनवरी-2010
माघ कृ.7
स्वामी विवेकानंद जयंती
सूर्य उदय 7.15
सूर्य अस्त 18.15
चन्द्रमा कन्या राशि में
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7 जनवरी-2010
माघ कृ.8
सूर्य उदय 7.15
सूर्य अस्त 18.16
चन्द्रमा कन्या राशि में 28.38तक
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8 जनवरी-2010
माघ कृ.9
सूर्य उदय 7.15
सूर्य अस्त 18.17
चन्द्रमा तुला राशि में
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9 जनवरी-2010
माघ कृ.10
सूर्य उदय 7.15
सूर्य अस्त 18.17
चन्द्रमा तुला राशि में
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10 जनवरी-2010
माघ कृ.11
षटतिला एकादशी
सूर्य उदय 7.15
सूर्य अस्त 18.17
चन्द्रमा तुला राशि में 12.11तक
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11 जनवरी-2010
माघ कृ.12
सूर्य उदय 7.16
सूर्य अस्त 18.19
चन्द्रमा वृश्चिक राशि में
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12 जनवरी-2010
माघ कृ.13
भौमप्रदोष
स्वामी विवेकानंद जयंती
राष्ट्रीय युवा दिवस
सूर्य उदय 07.15
सूर्य अस्त 18.17
चन्द्रमा वृश्चिक राशि में 22.28तक
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13 जनवरी-2010
माघ कृ.13
शिवरात्रि, कालिका पूजा
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.20
चन्द्रमा धनु राशि में
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14 जनवरी-2010
माघ कृ.14
मौनी अमावास्या मकर संक्रान्ति पुण्यकाल 12.37 से 18.19 तक
अमावास्या प्रारंभ सुबह 10.11
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.20
चन्द्रमा धनु राशि में
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15 जनवरी-2010
माघ अमावास्या
सूर्यग्रहण
अमावास्या समाप्ति
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.21
चन्द्रमा धनु राशि में 10.36 तक
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16 जनवरी-2010
माघ शु.1
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.22
चन्द्रमा मकर राशि में
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17 जनवरी-2010
माघ शु.2
पंचक प्रारंभ 23.35
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.22
चन्द्रमा मकर राशि में 23.35 तक
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18 जनवरी-2010
माघ शु.3
पंचक
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.23
चन्द्रमा कुंभ राशि में
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19 जनवरी-2010
माघ शु.4
विनायक चतुर्थी, सकट चैथ
श्री गणेश जयंती
पंचक
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.24
चन्द्रमा कुंभ राशि में
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20 जनवरी-2010
माघ शु.5
श्री पंचमी, वसंत पंचमी
पंचक
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.24
चन्द्रमा कुंभ राशि में 12.09
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21 जनवरी-2010
माघ शु.6
देवनारायण जयंती
पंचक
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.25
चन्द्रमा मीन राशि में
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22 जनवरी-2010
माघ शु.7
सप्तमी
पंचक समाप्त 22.47
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.26
चन्द्रमा मीन राशि में 22.47
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23 जनवरी-2010
माघ शु.8
नेताजी सुभाष जयंती
दुर्गाष्टमी
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.26
चन्द्रमा मेष राशि में
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24 जनवरी-2010
माघ शु.9
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.27
चन्द्रमा मेष राशि में 30.05
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25 जनवरी-2010
माघ शु.10
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.27
चन्द्रमा वृषभ राशि में
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26 जनवरी-2010
माघ शु.11
जया एकादशी
गणतंत्र दिवस
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.28
चन्द्रमा वृषभ राशि में
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27 जनवरी-2010
माघ शु.12
भीष्मद्वादशी
सूर्य उदय 07.16
सूर्य अस्त 18.29
चन्द्रमा वृषभ राशि में 09.37
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28 जनवरी-2010
माघ शु.13
लाला लाजपत राय जयंती
श्री विश्वकर्मा जयंती
प्रदोष
सूर्य उदय 07.15
सूर्य अस्त 18.29
चन्द्रमा मिथुन राशि में
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29 जनवरी-2010
माघ शु.14
पूर्णिमा प्रारंभ दोपहर 03.33
सूर्य उदय 07.15
सूर्य अस्त 18.30
चन्द्रमा मिथुन राशि में 10.11
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30 जनवरी-2010
माघ पूर्णिमा
महात्मा गांधी पुण्यतिथि
माघस्नान समाप्त गुरू रविदास जयंती
पूर्णिमा समाप्त सुबह 11.49
सूर्य उदय 07.15
सूर्य अस्त 18.30
चन्द्रमा कर्क राशि में
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31 जनवरी-2010
फाल्गुन कृ.1/2
गुरूप्रतिपदा
फाल्गुन मासारंभ
सूर्य उदय 07.15
सूर्य अस्त 18.31
चन्द्रमा कर्क राशि में 09.25 तक

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

मन संकल्पात्मक होता है। मन का संकल्प कल्याणकारी हो सकता है और अकल्याणकारी भी

मन जो कहता है ,बस वो कहता है !
किसी बंधन में ये न बंधना चाहे ,किसी बचपन की हँसी हो जैसे ,
किसी रिश्ते का जो कुछ नाम हो,उसकी करता है इबादत जैसे !

मन संकल्पात्मकहोता है। मन कासंकल्पकल्याणकारी हो सकता है औरअकल्याणकारी भी। जब मन अधोगति की ओर बढ़ता हैतो जैसे जल-प्रवाह की अधोगति होती है उसी तरह संतापकारी संकल्पों को स्थान देने से हमारे अंदर गलत विचार उत्पन्न होते हैं और मन अधोगति की ओर बढ़ने लगता है। इसी संतापकारी भावनाओं से कुसंस्कारित जनों का साथ होने से हमारा मन इन्हीं कुत्सित विचारों और दुर्भावनाओं में भटकने लगता है। परिणामस्वरूप हम अध:पतन की ओर बढ़ने लगते हैं। हमारे मन के तराजू पर हर विचार और भावनाओं को तौलें जिससे विवेकपूर्वक तदर्थ श्रेष्ठ संस्कार, सद्विचार और सदाचरण हमें सही रास्ता दिखायेंगे। हमें अपने मन के केवल मनन करने से नहीं, अपितु अच्छे आचरण और श्रेष्ठ विचारों तथा सत्संग से कार्य का निष्पादन करना ही तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु है। गीता में कहा गया है कि मानव का मन वायु के प्रचंड वेग की तरह अत्यन्त बलवान होता है जिसे रोक पाना बहुत कठिन होता है। हमें चंचल मन के वेगों को रोकना चाहिए और मेरा मन कल्याणकारी संकल्पों वाला हो, ऐसी कामना से हम देश का, समाज का और मानव का कल्याण कर सकेंगे। साथ ही पुरुषार्थ चतुष्टय के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकेंगे।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत 29 अक्टूबर- 2009

धर्मराज युधिष्ठर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’ मै उस सवांद को आप सभी के सम्मुख इस आश्य से प्रस्तुत कर रहा हूं कि आप सभी इस अवसर पर अपने मन कि इच्छाओं को भगवान श्री हरि के समक्ष रखे और दान धर्म कर लाभ उठाये।
29 अक्टूबर- 2009 श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, विष्णुत्रिरात्र पूर्ण, चातुर्मास व्रत-नियम पूर्ण, भीष्मपंचक प्रारंभ, तुलसी-विवाहोत्सव शुरू, संत नामदेव जयंती, सोनपुर मेला शुरू (बिहार), तीन वन-परिक्रमा (ब्रज), रवियोग सायं 4.49 बजे तक।

बोधिनी एकादशी का व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। एक समय धर्मराज युधिष्ठर ने गोपिका बल्लभ, विश्व के अधिष्ठान, सर्व प्राणियों में स्थित, परमश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए। उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’
भगवान श्रीकृष्ण बोले - ‘राजन्! कार्तिक के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका जैसा वर्णन लोकस्रष्टा ब्रह्माजी ने नारदजी से किया था, वही मैं तुम्हें बतलाता हूं।’
नारदजी ने ब्रह्माजी से कहा- ‘पिताजी! जिसमें धर्म-कर्म में प्रवृत्ति कराने वाले भगवान गोविंद जागते हैं, उस ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का माहात्म्य बतलाइए।’
ब्रह्माजी बोले- ‘मुनिश्रेष्ठ ! ‘प्रबोधिनी’ का माहात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। समुद्र से सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं, सभी अपने माहात्म्य की तभी तक गर्जना करते हैं, जब तक कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु की ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती। प्रबोधिनी एकादशी का एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल पा लेता है। पुत्र ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असंभव है तथा जिसे त्रिलोक में किसी ने भी नहीं देखा है, वह वस्तु प्रबोधिनी एकादशी करने से प्राप्त हो जाती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को यह एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरु पर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी प्रबोधिनी एक ही उपवास से भस्म कर देती है। हजारों पूर्व जन्मों में जो पाप किए गए हैं, उन्हें प्रबोधिनी की रात्रि का जागरण रुई की ढेरी के समान भस्म कर डालता है। जो लोग प्रबोधिनी एकादशी का मन से ध्यान करते तथा इसका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुखों से छुटकारा पाकर भगवान विष्णु के परमधाम को चले जाते हैं। ब्राह्मण ! अश्वमेध आदि यज्ञों से भी जिस फल की प्राप्ति कठिन है, वह प्रबोधिनी एकादशी को जागरण करने से अनायास ही मिल जाता है। संपूर्ण तीर्थों में नहाकर स्वर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह श्रीहरि के निमित्त जागरण करने मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्यों के लिए मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-संपत्ति मात्र भी क्षणभंगुर हैं, ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिए। तीनों लोकों में जो भी तीर्थ संभव हैं, वे सब प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के घर में मौजूद रहते हैं। कार्तिक की ‘हरिबोधिनी’ एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य प्रबोधिनी की उपासना करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और जितेंद्रिय है तथा उसी को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुत्र ! प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त जो स्नान, दान, जप और होम किया जाता है, वह सब अक्षय होता है। जो लोग इस तिथि को उपवास करके भगवान माधव की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मों के पापों से छुटकारा पा जाते हैं। इस व्रत के द्वारा देवेश्वर जनार्दन को संतुष्ट करके मनुष्य संपूर्ण दिशाओं को अपने तेज से प्रकाशित करता हुआ श्रीहरि के बैकुण्ठ धाम को जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को पूजित होने पर भगवान गोविन्द मनुष्यों के बचपन, जवानी और बुढ़ापे में किए हुए सौ जन्मों के पापों को, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः इस दिन सर्वथा प्रयत्न करके संपूर्ण मनोवांछित फलों को देने वाले देवाधिदेव जनार्दन की उपासना करनी चाहिए।
पुत्र नारद! जो भगवान विष्णु के भजन में तत्पर होकर कार्तिक में पराये अन्न का त्याग करता है, वह चान्द्रायण-व्रत का फल पाता है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चा से मनोरंजन करते हुए कार्तिक मास व्यतीत करता है, वह अपने संपूर्ण पापों को जला डालता और दस हजार यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के कहने-सुनने से भगवान मधुसूदन को जैसा संतोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान, जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभ कर्मपरायण पुरुष कार्तिक मास में एक या आधा श्लोक भी भगवान विष्णु की कथा बांचते हैं, उन्हें सौ गोदान का फल मिलता है। महामुने ! कार्तिक में भगवान केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिए। मुनि श्रेष्ठ! जो कार्तिक में कल्याण-प्राप्ति के लोभ से श्रीहरि की कथा का प्रबंध करता है, वह अपनी सौ पढ़ियों को तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिक मास में भगवान विष्णु की कथा सुनता है, उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है। जो प्रबोधिनी एकादशी के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है, उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। मुनि श्रेष्ठ ! जो लोग भगवान विष्णु की कथा सुनकर अपनी शक्ति के अनुसार कथा-वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। नारद! जो मनुष्य कार्तिक मास में भगवत्संबंधी गीत और शास्त्र-विनोद के द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी है। मुने! जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान के समक्ष गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णु की कथा करता है, वह तीनों लोकों के ऊपर विराजमान होता है।
मुनिश्रेष्ठ! कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी के दिन बहुत-से फल-फूल, कपूर, अरगजा और कुंकुम के द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। एकादशी आने पर धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रबोधिनी को जागरण के समय शंख में जल लेकर फल तथा नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रीजनार्दन को अघ्र्य देना चाहिए। संपूर्ण तीर्थों में स्नान करने और सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है, वही प्रबोधिनी एकादशी को अघ्र्य देने से करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। देवर्षि ! अघ्र्य के पश्चात् भोज-आच्छादन और दक्षिणा आदि के द्वारा भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए गुरु की पूजा करनी चाहिए। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवत की कथा सुनता अथवा पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिलादान का फल मिलता है। मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिक में जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकी के एक पत्ते से पूजित होने पर भगवान गरुड़ध्वज एक हजार वर्ष तक अत्यंत तृप्त रहते हैं। देवर्षे ! जो अगस्त के फूल से भगवान जनार्दन की पूजा करता है, उसके दर्शन मात्र से नरक की आग बुझ जाती है। वत्स ! जो लोग कार्तिक में भगवान जनार्दन को तुलसी के पत्र और पुष्प अर्पित करते हैं, उनका जन्म भर का किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है। मुने! जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्र युगों तक पुण्य का विस्तार करते हैं।
तुलसीदलपुष्पाणि ये यच्छन्ति जनार्दने। कार्तिके सकलं वत्स पापं जन्मार्जितं दहेत्।।
दृष्टा स्पृष्टाथ वा ध्याता कीर्तिता नामतः स्तुता। रोपिता सेचिता नित्यं पूजिता तुलसी नता।।
नवधा तुलसीभक्तिं ये कुर्वन्ति दिने दिने। युगकोटिसहस्राणि तन्वन्ति सुकृतं मुने।।
नारद ! सब प्रकार के फूलों और पत्तों को चढ़ाने से जो फल होता है, वह कार्तिकमास में तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से मिल जाता है। कार्तिक मास में प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसी के कोमल पत्तों से महाविष्णु श्रीजनार्दन का पूजन करना चाहिए। सौ यज्ञों द्वारा देवताओं का यजन करने और अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है, वह कार्तिक में तुलसीदल मात्र से केशव की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है।
मुनिश्रेष्ठ !
यद्यपि भगवान क्षण भर भी सोते नहीं हैं, फिर भी भक्तों की भावना ‘यथादेहे तथा देवे’ के अनुसार चार मास शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीर शयन के विषय में प्रसिद्ध है कि उन्होंने एकादशी के दिन ही महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीर सागर में जाकर सो गए। वे वहां चार माह तक शयन करते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी से इसका नाम देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी पड़ा । इस दिन व्रत के रूप में उपवास करने का विशेष महत्व है। यदि उपवास संभव न हो तो एक समय फलाहार करना चाहिए और संयम नियमपूर्वक रहना चाहिए। इस तिथि को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में भगवत्संबंधी कीर्तन, जप, वाद्य, नृत्य और पुराणों का पाठ करना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल, अघ्र्य आदि से गोविन्द भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की कर्णप्रिय, मनोहारी मांगलिक ध्वनि तथा निम्न मंत्रों द्वारा भगवान से जागने की प्रार्थना करें।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्।।
उतिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरू।।
इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पित करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।।तदनंतर भक्त प्रह्लाद, नारद, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीश, शुक्र, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद भक्तों को वितरण कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुनः भगवान गोविन्द का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजनादि पदार्थों से तृप्त कर दान दक्षिणा सहित विदाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है

17 अक्टूबर को उदयतिथि चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 11:04 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है। इस कारण 17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी।’पांच दिवसीय दीपोत्सव 15 अक्टूबर को 4:40 बजे तक ही द्वादश तिथि रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी होने से धनतेरस भी मनेगी। 16 अक्टूबर को त्रयोदशी दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी का दीपदान होगा। 17 अक्टूबर को चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। इस लिए इसी दिन रात को लक्ष्मीपूजन के साथ दीपावली मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को अमावस्या सुबह 11:04 तक रहेगी। फिर प्रतिपदा शुरू होगी। इसी दिन गोवर्धन पूजा होगी। 19 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। इसके बाद भाईदूज का पर्व मनाया जा सकेगा।
प्रदोश काल ---सायं काल 05-47 से 08-20 तक रात्रि में वृषलग्न--07-21 से 09-15 तक मध्य रात्रि मे सिंह लग्न --02-00 से 04-16 तक चौघडियां मुहूर्त --शाम 05 से 07--28 तक शुभ अमृत तथा चर के चौघडियां रात्रि 09 से मध्य रात्रि 01--47बजे तक

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

शत्रुता समाप्ति के लिए टोटके



शत्रुता समाप्ति के लिए टोटके


हमे प्राप्त मेलो के जन्म लग्ग्ल चक्र के आधार पर ज्योतिष पुस्तको एवं विद्धवानो के अनुभव के आधार पर जनकल्याण के उद्धेश्य से देना प्रारम्भ कर रहें हैं।
अपने पूजा स्थल में शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को बगलामुखी यंत्र स्थापित करें। नित्य नहा धोकर यंत्र के दर्शन करें। गेंदे का एक पीला फूल अवश्य चढ़ाएं। शत्रु शत्रुता त्याग दें यह प्रार्थना दीन भाव से करें, कुछ ही समय में प्रबल शत्रु तक की शत्रुता समाप्त हो जाएगी।
यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है।
इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है जिसे हम यहाँ पर देना उचित समझते हैं। इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) एक निश्चित समय पर पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।
आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
मां बगलामुखी साधना का उद्देश्य व लाभ
शत्रु शमन, मुकदमों, किसी तरह की प्रतिस्पर्धा आदि में विजय मन चाहे व्यक्ति से भेंटअनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमनकार्यक्षेत्र में सफलता वाक् सिद्धिफंसे हुए धन की प्राप्तिरोंगो से मुक्ति शरीर में ‘वात’ का संतुलन बनाए रखनाबुरी आत्माओं से बचाव व प्रेत बाधा आदि से मुक्तिदुर्घटना, घाव, आपरेशन आदि से रक्षा14 बार इंद्र या वरुण मंत्र से अभिमंत्रित यंत्र को बाढ़ के जल में फेंक देने से बाढ़ रुक जाती हैपूजन विधि: सर्वप्रथम पीत वस्त्र बिछा कर उसपर पीले चावल की ढेरी बनावें। सामने पीतांबरा का चित्र रख कर, या चावल की ढेरी को पीतांबरा देवी मान कर उसकी विधिवत पंचमोपचार से पूजा करें। पीले पुष्प, पीले चावल आदि का उपयोग करें। घी, या तेल का दीपक जला कर सर्वप्रथम गुरु पूजा, फिर पीतांबरा देवी की पूजा करें। इसके पश्चात् संकल्प करें कि मैं अपनी अमुक समस्या के समाधान हेतु (समस्याः पारिवारिक कष्ट, पति, या पत्नी के अत्याचार से दुःखी हों आदि) पीतांबरा मंत्र माला 108 बार जप कर रहा हूं। मुझे इससे मुक्ति दिलावें।
ऊँ ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा।

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

आय में वृर्दि के लिये प्रयोग

हमारे शास्त्रो में लक्ष्मी को प्रसन्न करने के अनेक उपायो का उल्लेख मिलता हैं और हमारे पूर्वजो ने इनका प्रयोग करके लाभ उठाया हैं यह प्रयोग मैं अपने शिष्यों को पिछलें २० वर्षो से करा रहा हूं लाभ हुआ इच्छा हुई कि आप सभी तक यह प्रयोग पहुचें। जब आप अपने कार्यालय या व्यापार स्थल पर जा कर बैठते हैं उस समय सर्व प्रथम देहली को प्रणम करे और बैठने के स्थान पर बैठ कर ईश्वर का ध्यान करते हुऐ यह चौपाई पढे।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख संपति नाना विध पावहिं।।
मुझे विश्वास हैं कि भगवान आपकी मनोकामना को अवश्य पूर्ण करेगे।

सोमवार, 28 सितंबर 2009

रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापाप

रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापाप आज सुबह मै पूजा में बैठा हि था कि मोबाईल बजने लगा मेरे शिष्य का फोन था कह रहा था कि यहां पर जागरण में छपा हैं कि पुतला जला तो मौत हैं मुझे भी पढने कि इच्छा हुई फैक्स मिला पढने में नही आया फिर थोडी देर में फोन आया तो कहां आप इसे हाथ सें लिख कर भेजो बेचारे ने मेहनत करी पढा आर्श्चय हुआ फिर सोचा यह जानकारियां सभी को हो इस कारण लिख रहां हूं। जागरण टीम, बैजनाथ/धर्मशाला : देशभर में भले ही विजयदशमी की धूम हो मगर एक जगह ऐसी भी है जहां लंकापति रावण का पुतला जलाना तो दूर इस बारे में सोचना भी महापाप है। यह इलाका है कांगड़ा जिले का बैजनाथ जहां मान्यता है कि यदि इस क्षेत्र में रावण का पुतला जलाया गया तो मृत्यु निश्चित है। शिवनगरी के नाम से मशहूर बैजनाथ में रावण के चरित्र का एक और पहलू भी उजागर होता है। महापंडित रावण ज्ञानी, पराक्रमी, तपस्वी व शिवभक्त था। यही कारण है कि बैजनाथ में आज भी दशहरे वाले दिन रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है। मान्यता के अनुसार रावण ने कुछ वर्ष बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। शिव के सामने उनके परमभक्त के पुतले को जलाना उचित नहीं था और ऐसा करने पर दंड तत्काल मिलता था, लिहाजा रावणदहन यहां नहीं होता। 1967 में बैजनाथ में एक कीर्तन मंडली ने क्षेत्र में दशहरा मनाने का निर्णय लिया। 1967 में दशहरे की परंपरा शुरू होने के एक साल के भीतर यहां इस उत्सव को मनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले व रावण के पुतले को आग लगाने वालों की या तो मौत होने लगी या उनके घरों में भारी तबाही हुई। यह सिलसिला 1973 तक चलता रहा। 1973 में तो बैजनाथ में प्रकृति ने भी कहर बरपाया तथा पूरे क्षेत्र में फसलों को बर्बाद कर दिया। इन घटनाओं को देखते हुए बैजनाथ में दशहरा मनाना बंद कर दिया गया। बैजनाथ स्थित मंदिर में स्थापित शिवलिंग को रावण द्वारा कैलाश से लंका ले जाए जा रहे उसी शिवलिंग से जोड़ा जाता है, जो उसे शिव की घोर तपस्या के बाद वरदान के रूप में मिला था। शिव द्वारा बीच रास्ते में शिवलिंग को भूमि में न रखने की शर्त को पूरा न कर पाने के कारण यह शिव लिंग बैजनाथ में स्थापित हो गया। इसके बाद रावण ने बैजनाथ में भगवान शिव की फिर तपस्या की। बैजनाथ में बिनवा पुल के पास स्थित एक मंदिर को रावण का मंदिर है जिसमें शिवलिंग व उसी के पास एक बड़े पैर का निशान है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने इसी स्थान पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। इसके बाद शिव मंदिर के पूर्वी द्वार में खुदाई के दौरान एक हवन कुंड भी निकला था। इस कुंड के समक्ष रावण ने हवन कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

विवाह कब तक होगा ? मेरे ससुराल वालों ने मुझे पति से अलग कर- कारोबार ठीक नहीं चल रहा है

उपायों का क्रम आज से नहीं सदियों से चला आ रहा हैं जिसे अपना कर हमारे पुर्वजो ने राजा महाराजाओं को धन दौलत पुत्र स्त्री जमीन आदि प्राप्त कराये हैं। हमे प्राप्त मेलो के जन्म लग्ग्ल चक्र के आधार पर ज्योतिष पुस्तको एवं विद्धवानो के अनुभव के आधार पर जनकल्याण के उद्धेश्य से देना प्रारम्भ कर रहें हैं कुछ नामो में परिर्वतन किया गया हैं उन्हे मेल के माध्यम से परिवर्तित नाम से अवगत कराया गया हैं जो अपने प्रश्नो के उत्तर अपने तक हि रखना चाहते हैं वह मेल पर स्पष्टरूप से अवगत कराये
1-प्रश्न: मेरा अपना मकान कब तक बनेगा? शंकर शर्मा, समस्तीपुर
उत्तर: आपका अपना मकान अवश्य बनेगा, परंतु अभी कुछ समय लगेगा। 2012 के उत्तरार्द्ध में आपका मकान बन जाने के योग हैं, परंतु फिर भी आपको प्रयासरत रहना चाहिए। बुधवार की प्रातः सीधे हाथ की कनिष्ठिका अंगुली में सोने की अंगूठी में पन्ना धारण करें।--दीपावली के दिन खीर, पूड़ी का भोग लगाएं। सूजी के हलवे का भोग भी लगा सकते हैं। इससे वर्ष भर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
2-प्रश्न: नौकरी पुनः कब तक मिलेगी, उपाय भी बताएं। उमा श्रीवास्तव, बस्ती
उत्तर: आपकी कुंडली में कालसर्प योग विद्यमान है। अतः इसकी पूजा, हवन आदि करने चाहिए। इस वर्ष के अंत तक आपको नौकरी मिल जानी चाहिए परंतु पूर्ण रूप से संतुष्टि आपको 25-12-2009 के पश्चात ही मिल पाएगी। सवा पांच रत्ती से सवा सात रत्ती तक का मूंगा तांबे की अंगूठी में मंगलवार की प्रातः सीधे हाथ की अनामिका में धारण करें। ---दीपावली पूजन के समय मां लक्ष्मी की पुरानी तस्वीर पर अपनी पत्नी के द्वारा पूर्ण सुहाग सामग्री में इत्र डालकर अर्पित करवाएं। अगली सुबह पत्नी स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा-अर्चना करें और मां लक्ष्मी को चढ़ाई गई सुहाग सामग्री को लक्ष्मी कृपा मान कर प्रयोग करें। पूजा करते समय घर में स्थायी रूप से वास करने की लक्ष्मी से प्रार्थना करें। यह एक अचूक टोटका है। इसके फलस्वरूप वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
3-प्रश्न: क्या मेरी कुंडली में सरकारी नौकरी के योग हैं? उपाय भी बताएं। विजय कुमार सिंह होशियारपुर
उत्तर: आपकी कुंडली में सरकारी नौकरी के प्रबल योग हैं, अतः प्रयासरत रहें, सफलता अवश्य मिलेगी। परंतु इसमें कुछ समय अवश्य लग सकता है। संभव है अगस्त 2010 के बाद आपको सरकारी नौकरी मिल जाए। आपको मंगलवार को सवा सात रत्ती का मूंगा तांबे की अंगूठी में सीधे हाथ की अनामिका अंगुली में अवश्य धारण करना चाहिए। --- दीपावली पूजन के समय मां लक्ष्मी की पुरानी तस्वीर पर अपनी पत्नी के द्वारा पूर्ण सुहाग सामग्री में इत्र डालकर अर्पित करवाएं। अगली सुबह पत्नी स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा-अर्चना करें और मां लक्ष्मी को चढ़ाई गई सुहाग सामग्री को लक्ष्मी कृपा मान कर प्रयोग करें। पूजा करते समय घर में स्थायी रूप से वास करने की लक्ष्मी से प्रार्थना करें। यह एक अचूक टोटका है। इसके फलस्वरूप वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
4-प्रश्न: विवाह कब तक होगा? क्या कुंडली मिलान करके ही विवाह करना आवश्यक है?गौरव गुप्ता, शाहजहांपुर
उत्तर: आपका विवाह 2010 के उत्तरार्द्ध में होने की संभावना है। यदि आप कुंडली मिलान करके शादी नहीं भी करें तो कन्या की कुडली में वैवाहिक सुख की स्थिति अवश्य देख लें, क्योंकि आपकी कुडली में वैवाहिक सुख स्थिति ठीक नहीं है।
5-प्रश्न: मैं आर्थिक व मानसिक रूप से परेशान हूं, कृप्या उचित उपाय बताएं। जीत सिंह अहलावत फरीदाबाद
उत्तर: वर्तमान समय आपके अनुकूल नहीं है। अगस्त 2009 तक आपके ऊपर शनि की ढैय्या चल रही थी। अतः आपको शनि के मंत्र जप यथा संभव करने चाहिए था। कोइ बात नहीं अब आप सवा सात रत्ती का मूंगा तांबे की अंगूठी में मंगलवार की प्रातः सीधे हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए। शनिवार को लोहे के बर्तन में सरसों का तेल डालकर उसमें अपनी छाया देखकर पात्र सहित सरसों के तेल का दान करना चाहिए। मंत्र: ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। का जाप अब भी करना हैं
6-प्रश्न: एक वर्ष से सेवानिवृत्ति के बावजूद मेरी धन राशि मुझे नहीं मिल पा रही है, कब तक मिलेगी ? उपाय भी बताएं। भवंर लाल शर्मा, बीकानेर
उत्तर: अप्रैल 2010 के बाद आपको अपनी सेवानिवृत्ति उपरांत मिलने वाली सभी धन राशि प्राप्त हो जाएगी। आपका समय आपके अनुकूल होना प्रारंभ हो चुका है। यदि आप सवा 6 रत्ती का मूंगा तांबे की अंगूठी में धारण करें तो काम जल्द होगा। एवं प्रतिदिन तांबे के पात्र से सूर्य को जल दिया करें।
7-प्रश्न: कारोबार ठीक नहीं चल रहा है और जिम्मेदारियों का बोझ बहुत अधिक है, कृप्या कोई उपाय बताएं। संदीप जिंदल, संगरूर
उत्तर: इस वर्ष के अंत तक आपका प्रतिकूल समय समाप्त हो जाएगा। जनवरी 2010 से आपका समय काफी अनुकूल आ रहा है। जनवरी के पश्चात आपका कारोबार गति पकड़ना शुरू करेगा और अगस्त 2009 से जून 2010 तक का समय काफी शुभ रहेगा। अभी आपको सवा सात रत्ती की जर्किन की अंगूठी चांदी में धारण करना चाहिए एवं शनि के मंत्र जप करने चाहिए। मंत्र: ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
8-प्रश्न: मेरी जन्म राशि एवं मेरा लग्न कौन सा है? अतुल श्रीवास्तव, पटना
उत्तर: आपकी जन्म राशि धनु है एवं लग्न वृश्चिक है।
9-प्रश्न: क्या मुझे इस साल सरकारी नौकरी मिल सकती है? कृप्या उचित रत्न धारण करने के लिए बताएं। विजय कुमार, कांगड़ा/ होशियारपुर
उत्तर: आपकी कुंडली में सरकारी नौकरी मिलने के योग अभी नहीं है। कार्य में सफलता हेतु सवा सात रत्ती का मूंगा तांबे की अंगूठी में सीधे हाथ में मंगलवार की प्रातः धारण करें। अगले वर्ष के उत्तरार्द्ध में सरकारी नौकरी मिल सकती है। गुरु के मंत्र का जप यथा संभव करें। मंत्र: ओम ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवै नमः।
10-प्रश्न: पढ़ाई में मन नहीं लगता है, नौकरी की कोशिश करता हूं तो असफलता मिल रही है, कृप्या उपाय बताएं। रघुनाथ चैधरी, गोहाटी
उत्तर: शनि की साढ़ेसाती के कारण आपका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है। लेकिन आपको नौकरी में सफलता अवश्य मिलेगी। जुलाई 2010 से पहले नौकरी अवश्य मिल जाएगी। आप यथा संभव शनि के मंत्र का जप करें।
मंत्र:ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। यदि आप सवा सात रत्ती का जर्किन चांदी की अंगूठी में अनामिका अंगुली में शुक्रवार की प्रातः धारण करें तो लाभ होगा एवं घर के बडो के पैर छुकर आर्शिवाद ले जिससे आपको सफलता प्राप्त होगी।
11-प्रश्न: मेरा विवाह कब होगा? शीघ्र विवाह के लिए उपाय बताएं। किरन मेहता होड़ल
उत्तर: कुंडली के अनुसार अभी विवाह होने में कुछ समय लग सकता है। आशा है 2009 के अंत तक विवाह अवश्य हो जाना चाहिए। शीघ्र विवाह हेतु आप स्वयं 1.25 किलो बेसन के 21 लड्डू गिनकर स्वयं बनाएं तथा संकल्प सहित गुरुवार के दिन मंदिर में पंडित जी को अपने विवाह की प्रार्थना मन में दोहराते हुए दान करें तथा सवा सात रत्ती के जर्किन की अंगूठी चांदी में शुक्रवार की प्रातः सीधे हाथ में अनामिका अंगुली में धारण करें। गुरूवार के दिन केले के पेड पर जल चढाने के साथ साथ घी का दीपक जलाये।
12-प्रश्न: मेरे ससुराल वालों ने मुझे पति से अलग कर दिया क्या मैं पुनः पति का प्यार पा सकूंगी? कृप्या उपाय भी बताएं। लुधियाना/ जालंधर कैंट
उत्तर: आपकी कुंडली में वैवाहिक सुख में कमी अवश्य है। परंतु फिर भी आप दिसंबर 2010 में पुनः अपने पति के प्यार की आशा कर सकती हैं। इसके पश्चात आपको अन्यत्र कहीं विवाह कर लेना ही उचित होगा। सूर्य को प्रतिदिन तांबे के पात्र से जल चढ़ाएं। गुरुवार को पीले वस्त्र धारण न करें। शुक्र के मंत्र का यथासंभव जप करें विवाह में विलंब हो रहा हो तो चांदी की एक ठोस गोली चांदी की ही चेन में पिरोकर, शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को प्रातः गंगा जल व कच्चे दूध से पवित्र करके, धूप दीप दिखाकर मंदिर में शिवलिंग या शिव पर्वती के चरणों से छुआकर निष्ठापूर्वक प्रार्थना कर गले में धारण कर लें। पहनने के पश्चात गरीबों को कुछ अवश्य खिलाएं।
13-प्रश्न: क्या मैं 2010-11 में होने वाली मेडिकल परीक्षा में सफल हो सकूंगी, सफलता हेतु उपाय भी बताएं। अंशिका अग्रवाल, मथुरा उत्तर प्रदेश
उत्तर: आपको अपने नियम दिनचर्या आदि पर नियंत्रण रखकर अध्ययन के प्रति सावधान रहते हुए मेहनत से प्रयास करना होगा, सफलता काफी हद तक संभव है। सवा सात रत्ती का मूंगा, तांबे की अंगूठी में मंगलवार की प्रातः अनामिका अंगुली में सीधे हाथ में अवश्य धारण करें।
प्रिय मित्रो/बहनो आज नेट के माध्यम से सम्पर्क करना आसान होगया है जिसका लाभ सभी को उठाना चाहियें हम भी इस क्रम में हें और आप तक अपने सस्थांन / केन्द्र के जन कल्याण के विचारो से आपको अवगत करा रहें हैं। चाहते हैं कि आप हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के अनुभव का लाभ उठायें। हिन्दु शास्त्रो में कहां गया हैं नवरात्रो से लेकर गोवर्धन के पश्चात तक संसार को चलाने वाले सभी देवी देवता धरती पर रहकर जनकल्याण के कार्यो को करते हैं तथा उन भक्तो की सुनते हैं जो उन्हे अपने कष्टो के निवारणार्थ पुकारते हैं। यदि आप अपने लग्न चक्र , राशि के आधार पर जानना चाहते है कि आपको दीपावली पर क्या करना चाहिये जिससे आपके घर में लक्ष्मी का सदा निवास करे, प्रसन्न रहे तो हमारे को मेल पर नाम एवं जन्म तिथि जन्म समय जन्म स्थान भेजकर करे और ज्ञात करे। हमारे सस्थांन / केन्द्र के ज्योतिषाचायों के द्धारा आपके नाम पिता के नाम व गोत्र व स्थान के साथ Sri Yantra,,Shiv Parivar,,Crystal Ganesh,,SriYantra(Mixed Metal),,Spatic Sri Yantra,,Spatic Ganesh,,Spatic Shiva Linga,,Spatic Ban Linga,,Spatic Crystal Nandi,,आदि यन्त्रो को वैदिक मन्त्रों के उच्चाण के साथ प्राण प्रतिष्ठा की जाती हैं। mo--09359109683

बुधवार, 23 सितंबर 2009

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।