tag:blogger.com,1999:blog-90356398015022633522024-03-13T14:41:55.945-07:00ज्योतिष प्रश्न उत्तरउपायों का क्रम आज से नहीं सदियों से चला आ रहा हैं जिसे अपना कर हमारे पुर्वजो ने राजा महाराजाओं को धन दौलत पुत्र स्त्री जमीन आदि प्राप्त कराये हैं। हमे प्राप्त मेलो के जन्म लग्ग्ल चक्र के आधार पर ज्योतिष पुस्तको एवं विद्धवानो के अनुभव के आधार पर जनकल्याण के उद्धेश्य से देना प्रारम्भ कर रहें हैं कुछ नामो में परिर्वतन किया गया हैं उन्हे मेल के माध्यम से परिवर्तित नाम से अवगत कराया गया हैं जो अपने प्रश्नो के उत्तर अपने तक हि रखना चाहते हैं वह मेल पर स्पष्टरूप से अवगत करायेप० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.comBlogger29125tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-40770410097087837802012-10-12T10:00:00.001-07:002012-10-12T10:00:22.484-07:00शनि को खुश करने वालों पर उनकी कृपा बरसेगी।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-6Vf0VtZ6t0w/UHhMHO26bnI/AAAAAAAAAYY/sxINUVwvYYw/s1600/L.29.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://1.bp.blogspot.com/-6Vf0VtZ6t0w/UHhMHO26bnI/AAAAAAAAAYY/sxINUVwvYYw/s320/L.29.jpg" width="175" /></a></div>
<b>8-10-2012 सोमवार शाम 5 बजकर 55 मिनट पर शनि अस्त होकर धरती से दूर चले गये है. इसके साथ ही शनि की सूर्य से नजदीकी बढ़ने लगेगी. अपने पिता के नजदीक जाकर शनि खुद तो जलेगा ही और धरती पर भी आग लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे. अस्त शनि की ये चाल 8-10-2012 सोमवार से 34 दिनों तक नये नये रगं दिखा कर चौकायेगा इसलिए इन 34 दिनों में बेहद संभलकर रहें. और अपने कार्यो को अंजाम दे।</b><br />
<b>न्यायप्रिय ग्रह शनि अपनी ही उच्च राशि में अस्त हो गए हैं। सूर्यदेव के प्रभाव में आकर शनि के अस्त होने से आपकी राशि पर कैसा असर रहेगा जानिए...</b><br />
<b>शनिदेव अभी उच्च राशि तुला में परिभ्रमण कर रहे हैं, जो 8-10-2012 सोमवार शाम 5 बजकर 55 मिनट पर अस्त हुए हैं और 8 नवंबर को उदय होंगे। इस अवधि में शनि को खुश करने वालों पर उनकी कृपा बरसेगी। खासकर साढ़ेसाती, ढय्या वालों को शनि के कुप्रभाव से राहत मिल जाएगी। सौर मंडल में शनि को न्यायप्रिय ग्रह का दर्जा प्राप्त है। इस समय नीतिगत कार्य करने वालों की उन्नति संभव होगी लेकिन जैसे ही शनि उदय होंगे, वे पुन: अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देंगे। </b><br />
<b><span style="color: red;">मेष - इस राशि के लिए शनि का अस्त होना शुभ रहेगा। कार्यों में सफलता और उन्नति के योग बन रहे हैं।</span></b><br />
<b><span style="color: red;">वृषभ - वृष राशि वालों के लिए यह समय सफलता दिलाने वाला रहेगा। पुराने अटके हुए कार्यों से लाभ होगा।</span></b><br />
<b><span style="color: red;">मिथुन - बुध ग्रह की राशि के लोगों को शनि के अस्त होने से धन लाभ प्राप्त होगा और मान-सम्मान मिलेगा। </span></b><br />
<b><span style="color: red;">कर्क - इस राशि पर शनि का ढय्या चल रहा है। अत: इन लोगों को कार्यों में कठिन परिश्रम करना पड़ेगा। </span></b><br />
<b><span style="color: red;">सिंह - कुछ ही दिनों पूर्व इस राशि से शनि की साढ़ेसाती समाप्त हुई है, अत: शनि के अस्त होने से इन्हें और अधिक लाभ प्राप्त होंगे। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। </span></b><br />
<b><span style="color: red;">कन्या- कन्या राशि पर शनि की उतरती हुई साढ़ेसाती चल रही है और शनि अब अस्त हो गए हैं तो इन्हें कार्यों में रुकावटों का सामना करना पड़ेगा। </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">तुला - तुला राशि में शनि उच्च के रहते हैं और इस समय इस राशि के लोगों को शनि की साढ़ेसाती का मध्य भाग चल रहा है। शनि अस्त होने के कारण इन लोगों कठिन श्रम करना होगा, तभी सफलता प्राप्त होगी। </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">धनु - इन लोगों को कार्यों में सफलता प्राप्त होगी और मान-सम्मान मिलेगा। </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">मकर - शनि के इस राशि का स्वामी है और शनि के अस्त होने पर इन लोगों को ऐश्वर्य और समाज में मान-सम्मान प्राप्त होगा।</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">कुंभ - कुंभ राशि वालों के लिए भी शनि का अस्त होना शुभ समय लेकर आया है। इन लोगों को कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">मीन - इन लोगों के लिए अस्त शनि थोड़ी परेशानियों लेकर आया है। अत: सावधानी से कार्य करें, स्वास्थ्य का ध्यान रखें।</span></b><br />
<b><span style="color: red;">प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान एवं शिक्षा केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683</span></b><br />
</div>
प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-3199928908023579142012-05-16T18:48:00.002-07:002012-05-16T18:48:14.732-07:00सूर्य ग्रहण 20 मई 2012 रविवार (ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या) को होगा इस दिन वृषभ राशि में चंद्रमा, बुध, सूर्य, गुरू और केतु रहेंगे।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-CvgZbkAFv0o/T7RYlr1Sa_I/AAAAAAAAAXk/yW0b542Rp5Y/s1600/SURYA.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://2.bp.blogspot.com/-CvgZbkAFv0o/T7RYlr1Sa_I/AAAAAAAAAXk/yW0b542Rp5Y/s320/SURYA.JPG" width="233" /></a></div>
<b style="color: red; text-align: right;">सूर्य ग्रहण 20 मई 2012 रविवार (ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या) को होगा। इस दिन शनि जयंती का योग भी बन रहा है। सूर्यग्रहण का यह दुर्लभ संयोग सौ साल बाद आ रहा है। जिसमें एक ही राशि में छह ग्रहों के साथ सूर्यग्रहण आएगा। इस दिन वृषभ राशि में चंद्रमा, बुध, सूर्य, गुरू और केतु रहेंगे।</b></div>
<b style="text-align: justify;"><span style="color: red;">ये पहली बार नहीं है जब शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण का योग बन रहा है। पं. शर्मा के अनुसार इसके पहले 2011 में भी शनि जयंती व सूर्य ग्रहण का योग बना था।</span></b><br />
<b></b><br />
<div style="text-align: justify;">
<b><b><span style="color: red;">पांचागों के अनुसार इस साल का पहला कंकड़ाकृति सूर्य ग्रहण 20 मई 2012 रविवार (ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या) को होगा। इस दिन शनि जयंती का योग भी बन रहा है। सूर्यग्रहण का यह दुर्लभ संयोग सौ साल बाद आ रहा है। जिसमें एक ही राशि में छह ग्रहों के साथ सूर्यग्रहण आएगा। इस दिन वृषभ राशि में चंद्रमा, बुध, सूर्य, गुरू और केतु रहेंगे। ग्रहो का ये योग अद्वभुत योग है ज्योतिषियों के अनुसार यह ग्रहण कृत्तिका नक्षत्र, वृष राशि में होगा, जो भारत के केवल पूर्वी भाग में खण्डग्रास रूप में दिखाई देगा। ग्रहण का मोक्ष दूसरे दिन यानी 21 मई 2012 सोमवार को सुबह 4 बजकर 51 मिनिट पर होगा। वृष राशि में ग्रहण होने से प्राकृतिक आपदा से जन-धन की हानि के योग बन रहे हैं। सरकार और नागरिकों के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति बन सकती है। राष्ट्र को बड़े राजनेताओं की हानि हो सकती है। आकस्मिक दुर्घटना जैसे रेल हादसे, विमान हादसे के कारण जान-माल का नुकसान भी संभावित है। पड़ोसी देशों से संबंधों में भी कुछ मतभेद हो सकते हैं।</span></b></b></div>
<b><div style="text-align: justify;">
<b>भारत में जिन भागों में यह ग्रहण दिखाई देगा, केवल उन्हीं भागों में इसके सूतक पर विचार किया जाएगा.ऐसा मेरे कुछ मित्रो का मानना है परन्तु मेरे विचारो मे भिन्नता है मेरा विचार है भारत वर्ष एक है सूतक का प्रभाव सारे भरतवर्ष पर पडेगा विचार किया जाना चाहिये इस दिन ग्रहण का सूतक स्थानीय सूर्योदय से 12 घण्टे पहले 20 मई से ही आरम्भ हो जाएगा. 20 मई को यह सूतक शाम 4 बजकर 30 मिनट से से आरम्भ हो जाएगा. यदि किसी को सूतक का समय जानना है तब उस स्थान के सूर्योदय से 12 घण्टे पहले का समय लेकर जान सकता है.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">हिंदू धर्म के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान शनि देव का विशेष पूजन किया जाता है। इस बार यह पर्व 20 मई 2012 रविवार को है। लेकिन शनि जयंती के दिन ही इस बार सूर्य ग्रहण का योग भी बन रहा है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य व शनि पिता-पुत्र हैं इसलिए शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण होना ज्योतिषिय दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण घटना है।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">ग्रहण के समय मौन रहोगे, जप करोगे, ध्यान करोगे...... तो १०,००० गुना फल प्राप्त होगा सूर्य ग्रहण के समय हज़ार काम छोड़ कर मौनधारण करे और अपने ईष्ट का जप करे। जिन्हें अपने ईष्टदेव का नहीं पता है वह अपने पारीवारिक रीति रिवाजों के अनुसार ईश्वर का ध्यान करना चाहिये. पूजन, जाप, हवन, तर्पण, पाठ, दान आदि कार्य ग्रहण समय तथा सूतक समय में किए जा सकते हैं.</span></b></div>
<span style="color: blue;">शुक्र कि वस्तुओ पर प्रभाव दिखेगा — चांदी के जेवर या अन्य पदार्थ ,अगरबत्ती व धूप ,श्वेत पदार्थ , कला क्षेत्र ,अभिनय , टूरिज्म , वाहन ,दूध दही ,चावल ,शराब ,श्रृंगार के साधन ,गिफ्ट हॉउस ,चाय -कोफ़ी ,गारमेंट्स ,इत्र,,ड्रेस डिजायनिंग ,मनोरंजन के साधन ,फिल्म उद्योग ,वीडियो पार्लर ,मैरिज ब्यूरो ,इंटीरियर डेकोरेशन ,हीरे के आभूषण ,पालतू पशुओं का व्यापार या चिकित्सक , चित्रकला तथा स्त्रियों के काम में आने वाले पदार्थ , मैरिज पैलेस एवम विवाह में काम आने वाले सभी कार्य व पदार्थ इत्यादि |</span><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-lmadZRT49qE/T7RXLXFQW1I/AAAAAAAAAXc/X1Pzej0WQkk/s1600/DSC01256.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://2.bp.blogspot.com/-lmadZRT49qE/T7RXLXFQW1I/AAAAAAAAAXc/X1Pzej0WQkk/s320/DSC01256.JPG" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट के अनुसार के इस बार शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण होना शुभ है। शनि, सूर्य के पुत्र हैं तथा सूर्य से शत्रुता का भाव रखते हैं किंतु सूर्य, शनि के साथ शत्रुता का भाव नही रखते। 20 मई 2012 रविवार को होने वाला सूर्य ग्रहण व शनि जयंती का संयोग अच्छी वर्षा तथा विदेशी व्यापार में सफलता की ओर संकेत करता है। सूर्य ग्रहण का प्रभाव जिन देशों में होगा उनके शत्रुओं का दमन होगा। भारत के लिए आने वाला सूर्यग्रहण लाभकारी होगा जो चीन तथा पाकिस्तान को सीमित रखने में सफल होगा।</b></div>
<span style="color: #3333ff; font-size: medium;">कब-कब बना शनि जयंती के दिन सूर्य ग्रहण का योग </span></b><b><br /><div style="text-align: justify;">
<b style="background-color: #eeeeee;">इसके पूर्व 10 जून 2002 एवं 31 मई 2003 में भी यह योग बना था। शनि जयंती के साथ सूर्य ग्रहण का योग पिछले वर्षों में कई बार बना है। 30 मई 1946, 20 मई 1947, 10 जून 1964, 30 मई 1965, 20 मई 1966, 8-9 मई 1967 में भी यह योग बना था। आगे 10 जून 2021 में भी सूर्य ग्रहण के साथ शनि जयंती का योग बनेगा। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="background-color: #eeeeee;">वृष राशि में ग्रहण होने से प्राकृतिक आपदा से जन-धन की हानि के योग बन रहे हैं। सरकार और नागरिकों के बीच तनाव और संघर्ष की स्थिति बन सकती है। राष्ट्र को बड़े राजनेताओं की हानि हो सकती है। आकस्मिक दुर्घटना जैसे रेल हादसे, विमान हादसे के कारण जान-माल का नुकसान भी संभावित है। पड़ोसी देशों से भी संबंध तनावपूर्ण रहेंगे।</b></div>
</b><br />
<div style="text-align: justify;">
<ol>
<li><b>मेष राशि के जातकों को कष्ट हो सकता है. उन्हें हानि का सामना करना पड़ सकता है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">वृष राशि के जातकों को शारीरिक कष्ट हो सकते हैं. इनके धन का क्षय भी हो सकता है. इन्हें सतर्क रहना चाहिए.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">मिथुन राशि के जातकों को इस ग्रहण का फल अच्छा मिलने में सन्देह है. इन्हें धन हानि हो सकती है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">कर्क जातकों के लिए इस ग्रहण का फल शुभफलदायी होगा. इन्हें धन लाभ होने की संभावना बनती है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">सिंह राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण सुखदायी तथा कल्याणकारी रहने की संभावना बनती है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">कन्या राशि वाले लोगों को सवधान रहना चाहिए. फालतू की बातों में ना उलझे अन्यथा उन्हें अपमानित होना पड़ सकता है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">तुला राशि को विशेषरुप से सतर्क रहना चाहिए. उन्हें अधिक कष्ट उठाने पड़ सकते हैं.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">वृश्चिक राशि के जातकों को अपने जीवनसाथी से कष्ट हो सकता है. आपसी अनबन अथवा जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट होने की संभावना बनती है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">धनु राशि के व्यक्तियों के लिए यह ग्रहण शुभ रहेगा. उन्हें सुख-साधनों की प्राप्ति के योग बनते हैं.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">मकर राशि के जातकों के लिए ग्रहण का फल चिन्ताजनक हो सकता है. आप किसी चिन्ता से घिरे रह सकते हैं.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">कुम्भ राशि के जातकों के लिए ग्रहण का प्रभाव कष्टकारी रह सकता है. आपको कुछ कष्टों का सामना करना पड़ सकता है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">मीन राशि के व्यक्तियों के लिए ग्रहण का फल शुभफलदायी रहने की संभावना बनती है. आपको कहीं ना कहीं से धन लाभ हो सकता है.</b></li>
<li><b style="text-align: left;">दूसरा ग्रहण 15दिन बाद जून सोमवार को पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण वृश्चिक राशि पर पडेगा। अमावस्या पर लगने वाले सूर्य ग्रहण से मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर और कुंभ राशि प्रभावित होंगी। जबकि कर्क, सिंह, धनु और मीन राशि वालों के लिए अच्छा साबित होगा।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"><span style="color: #3366ff; font-size: medium;">शनि ज्यन्ती पर शनि शमन के उपाय करे</span></b></li>
<li><b style="text-align: left;">शनिदेव तो कर्मफलदाता है और किसी का पक्षपात नहीं करते हैं। शनि अनुकूलन के उपाय का तात्पर्य वैसे शास्त्रोंक्त अनुष्ठानों व शुभ कर्मों से है जिससे पूर्वकृत कर्मों का प्रायश्चित हो जाता है।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> घर में नीले रंग के वस्त्र, नीले रंग के पर्दे, नीले रंग की चादरें व दीवारों पर भी नीला रंग का प्रयोग करें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> लगातार 27 शनिवारों को 7 बादाम और 7 उड़द के दाने किसी धर्म स्थान पर रख के आ जायें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> मांस-मदिरा से दूर रहें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> किसी भी शनिवार को शुरू करके 43 दिनों तक सूर्योदय के समय शनिदेव पर तेल चढ़ाएं।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> पीपल के वृक्ष पर शनिवार को जल चढाये सूर्य उदय से पूर्व या सूर्य उदय के पश्चात। </b></li>
<li><b style="text-align: left;"> चांदी का चौकोर टुकड़ा सदा अपने पास रखें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> स्नान करते समय पानी में कच्चा दूध डाल कर लकड़ी के पट्टे पर बैठकर नहायें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> यदि चन्द्रमा ठीक न हो तो 500 ग्राम उड़द में सरसों का तेल लगाकर पानी में प्रवाहित करें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> चन्द्रमा प्रतिकूल हो तो 500 ग्राम दूध सोमवार के दिन बहते पानी में प्रवाहित करें और शनिवार के दिन उड़द प्रवाहित करें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> शनिवार का व्रत रखें और तेल से शनि का अभिषेक करें। नमक का प्रयोग न करे।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> किसी गरीब लड़की के विवाह में जलावन के लिए कोयले या ईंधन खरीदकर दें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> झूठ न बोलें। शराब व मांसाहार से दूर रहें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> रोटी के टुकड़ों पर सरसों का तेल चुपड़कर कौओं या कुत्तो को खिलायें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> शनिवार के दिन पत्थर के कोयले लंगर पकाने के लिए किसी धार्मिक स्थान में दान दें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> गौ माता की सेवा करें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> केसर का तिलक नियमित रूप से माथे पर लगाया करें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> लोहे की वस्तुएं यानी तवा, चिमटा, अंगीठी आदि का दान किसी संत या सज्जन पुरुष को करें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> यदि कारोबार में घाटा हो रहा हो तो लगातार 43 दिनों तक कौओं या कुत्तों के लिए रोटी डालें।</b></li>
<li><b style="text-align: left;"> लोहे की बासुरी में खांड भरकर किसी वीरान स्थान में दबा दें।<br /><span style="color: red;">प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र सदर गजं बाजार मेरठ कैन्ट 09359109683</span></b></li>
</ol>
</div>
</div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-10491219591422718302012-04-21T20:29:00.003-07:002012-04-21T20:29:51.953-07:00अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है तंत्र प्रयोगों से बचाता है यह टोटका<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: red;">इस बार 24 अप्रैल 2012 को अक्षय तृतीया है. इस दिन किये शुभ कार्य का अक्षय फल मिलता है. 23 अप्रैल की शाम 3.55 बजे से तृतीया लग रही है, जो मंगलवार की शाम 5.51 बजे तक रहेगी</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-YqyN4C2PjOo/T5N7BIJdXYI/AAAAAAAAAW8/EP3FIZygyhs/s1600/Lakshmi.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://4.bp.blogspot.com/-YqyN4C2PjOo/T5N7BIJdXYI/AAAAAAAAAW8/EP3FIZygyhs/s320/Lakshmi.jpg" width="218" /></a><b><span style="color: red;">अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।</span></b></div>
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<b><span style="color: #990000;">अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है।</span></b><br />
<a href="http://4.bp.blogspot.com/--9v1ZdwyKaU/T5N68nORSBI/AAAAAAAAAW0/O6mBm6G2MBw/s1600/L.29.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://4.bp.blogspot.com/--9v1ZdwyKaU/T5N68nORSBI/AAAAAAAAAW0/O6mBm6G2MBw/s200/L.29.jpg" width="109" /></a><b><span style="color: #990000;">अक्षय तृतीया: तंत्र प्रयोगों से बचाता है यह टोटका</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">तंत्र का उपयोग पहले जनकल्याण के लिए किया जाता था लेकिन समय के साथ इसका उपयोग स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाने लगा। कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए तंत्र के माध्यम से लोगों को परेशान करते हैं। यदि आप भी दुश्मनों के तांत्रिक प्रयोगों से पीडि़त रहते हैं तो अक्षय तृतीया के दिन यह साधना आपके लिए उपयोगी रहेगी।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">सर्वप्रथम मूंगा हनुमान (मूंगे से निर्मित हनुमान प्रतिमा) की स्थापना अपने घर के एकांत कक्ष में चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर करें। उनका यथाविधि पूजन करें और उन पर सिंदूर चढ़ाएं, तदुपरांत इस मंत्र का यथासंभव जप करें-</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">मंत्र-</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय,</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">पर यंत्र-मंत्र-तंत्र-त्राटक-नाशकाय,</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">सर्व-ज्वरच्छेदकाय, सर्व-व्याधि-निकृन्तकाय,</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">सर्व-भय-प्रशमनाय, सर्वदुष्ट-मुख-स्तम्भनाय,</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">देव-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-दुष्टग्रह-बन्धनाय,</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रदाय रामदूताय स्वाहा।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">अक्षय तृतीया के बाद मूंगा हनुमानजी की प्रतिमा को अपने पूजा स्थान में स्थापित करें और प्रत्येक दिन उनका धूप-दीप से पूजन करें तथा इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप करें।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">अगर किया हो किसी ने बिजनेस पर टोटका तो यह करें</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">व्यापार-व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा भी होती है लेकिन कुछ लोग तंत्र का प्रयोग कर दूसरे की दुकान या व्यवसाय को बांध देते हैं जिसके कारण चलता हुआ बिजनेस भी ठप्प हो जाता है। यदि किसी ने आपके व्यापार-व्यवसाय पर भी तांत्रिक प्रयोग कर दिया हो तो इस साधना से उस तांत्रिक प्रयोग को काटा जा सकता है। इस उपाय से व्यापार फिर से उन्नति करने लगेगा। यह उपाय अक्षय तृतीया(6 मई, शुक्रवार) को करें तो और भी अधिक शुभ फल प्रदान करता है।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">उपाय</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">1 दिव्य शंख, 11 लक्ष्मीकारक कौडिय़ां एवं सात गोमती चक्र, 108 काली मिर्च, 108 लौंग एवं थोड़ी सी सरसों (लगभग 100 ग्राम) को पीसकर रख लें। शाम को लकड़ी के पटरे पर या बैत कि चौकि पर एक काला कपड़ा बिछाकर किसी कटोरी में इस मिश्रण को भरकर स्थापित कर लें। अब सरसों के तेल का दीपक जलाकर इस कटोरी को भीतर रख दें। फिर दक्षिण की तरफ मुंह करके बैठें एवं नीचे लिखे मंत्र की 3 या 7 माला जप करें।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">मंत्र---ऊँ दक्षिण भैरवाय भूत-प्रेत बंध तंत्र बंध निग्रहनी सर्व शत्रु संहारणी सर्व कार्य सिद्धि कुरु-कुरु फट् स्वाहा</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">अगले दिन थोड़ा सा मिश्रण कटोरी में से निकालकर दुकान के सामने बिखेर दें। इस प्रयोग द्वारा आप किसी भी प्रकार के तंत्र बंधन को काट सकते हैं।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">अक्षय तृतीया: इस टोटके से कभी न होगी पैसे की कमी----अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में यदि कोई टोटका किया जाए तो वह बहुत शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है और शुभ फल मिलने लगते हैं। इस बार 24 अप्रैल 2012 को अक्षय तृतीया है। इस अवसर पर नीचे लिखे टोटके को पूरे विधि-विधान से किया तो जीवन में कभी पैसे की कमी नहीं रहती। यह अत्यंत सफल, प्रभावी और तेजस्वी टोटका है।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">टोटका</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">अक्षय तृतीया 24 अप्रैल 2012 की रात को साधक शुद्धता के साथ स्नान कर पीली धोती धारण करे और एक आसन पर उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जाएं तथा सामने सिद्ध लक्ष्मी यंत्र को स्थापित करें जो विष्णु मंत्र से सिद्ध हो और स्फटिक माला से निम्न मंत्र का 21 माला जप करें। मंत्र जप के बीच उठे नहीं, चाहे घुंघरुओं की आवाज सुनाई दे या साक्षात लक्ष्मी ही दिखाई दे।</span></b><br />
<b><span style="color: #990000;">मंत्र---ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं ऐं ह्रीं श्रीं फट्</span></b><br />
</div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-53963456795370348322012-02-02T17:59:00.001-08:002012-02-02T17:59:48.147-08:00कार्य की सिद्धि के लिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: red; font-size: large;">अगर आप किसी कार्य की सिद्धि के लिए जाते समय घर से निकलने से पूर्व ही अपने हाथ में रोटी ले लें। मार्ग में जहां भी कौए दिखलाई दें, वहां उस रोटी के टुकड़े कर के डाल दें और आगे बढ़ जाएं। इससे सफलता प्राप्ती के योग बनते है।</span></b></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-66055244680596245242012-01-30T05:21:00.000-08:002012-01-30T05:21:36.749-08:00स्वयं का मकान नही बन पा रहा हो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: red; font-size: large;">लाख प्रयत्न करने पर भी स्वयं का मकान नही बन पा रहा हो, तो आप इस टोटके को अवश्य अपनाएं। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue; font-size: large;">प्रत्येक शुक्रवार को नियम से किसी भूखे को भोजन कराएं और रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाएं। ऐसा नियमित प्रति दिन करने से अपनी अचल सम्पति बनेगी या पैतृक सम्पति प्राप्त होगी। अगर सम्भव हो तो प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् निम्न मंत्र का जाप करें।</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"> <span style="color: purple;">“ॐ पद्मावती पद्म कुशी वज्रवज्रांपुशी प्रतिब भवंति भवंति।।´´</span></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="font-size: large;"> <span style="background-color: magenta;"><span style="color: #351c75;">यह मंत्र जाप आपको सफलता अवश्य दिलायेगा।</span> </span></span></b></div>
</div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-13309151204830246132012-01-30T05:11:00.000-08:002012-01-30T05:11:04.612-08:00सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: large;"><b>रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, </b>तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red; font-size: large;">जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।</span></div>
</div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-22964303077370350902010-08-06T04:39:00.000-07:002010-08-06T04:41:45.020-07:001 अगस्त 20101 अगस्त: तिलक स्मृति दिवस, रविव्रत (दिग.जैन)<br />2 अगस्त: सोमवार व्रत, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), शीतला सप्तमी, कांवड धारण मुहूर्त्त,<br />3 अगस्त: कालाष्टमी व्रत, केर पूजा (त्रिपुरा), मैथलीशरण गुप्त जयंती<br />4 अगस्त: दशाफल व्रत<br />5 अगस्त: रोहिणी व्रत (दिग.जैन), कांवड धारण मुहूर्त्त<br />6 अगस्त: कामिका (कामदा) एकादशी व्रत, कांवड धारण मुहूर्त्त<br />7 अगस्त: शनि-प्रदोष व्रत, (पुत्र-प्राप्ति हेतु)<br />8 अगस्त: मासिक शिवरात्रि व्रत, रविव्रत (दिग.जैन)<br />9 अगस्त: सावन-सोमवार व्रत, श्राद्ध की अमावस, सोमवती अमावस, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन)<br />10 अगस्त: स्नान-दान की हरियाली अमावस्या, स्वामी अखण्डानंद जयंती<br />11 अगस्त: नवीन चन्द्र-दर्शन, सिंधारा दूज, स्वामी करपात्री जयंती<br />12 अगस्त: हरियाली तीज, मधुस्त्रवा तृतीया व्रत, स्वर्णगौरी व्रत, श्रीबांकेबिहारी स्वर्ण हिण्डोले में (वृंदावन), मणिपर्वत झूला (अयोध्या), ठकुराइन जयंती, रमजान- रोजा शुरू<br />13 अगस्त: वरदविनायक चतुर्थी व्रत, वीर दुर्गादास राठौर जयंती, दूर्वागणपति चतुर्थी, महालक्ष्मी-पूजा, श्रमण तप प्रारंभ (जैन)<br />14 अगस्त: नागपंचमी, तक्षक-पूजन, गुडिया पर्व, श्रीहनुमद्ध्वजारोहण, श्रीनागचन्द्रेश्वर-दर्शन (उज्जयिनी), कल्कि अवतार षष्ठी (सायंकालीन)<br />15 अगस्त: रांधण छठ (गुजरात), सूर्य-पूजन, योगी अरविन्द जयंती, स्वतंत्रता दिवस, रविव्रत (दिग.जैन)<br />16 अगस्त: सावन-सोमवार व्रत, शीतला सप्तमी (मिथिलांचल), नढी थधिडी (सिन्धी), गोस्वामी तुलसीदास जयंती, सिंह-संक्रान्ति शेष रात्रि 5.34 बजे, पुण्यकाल आगामी दिन, मोक्ष-मुकुट सप्तमी (दिग.जैन), श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), अवंतीबाई जयंती (लोधी)<br />17 अगस्त: सिंह-संक्रान्ति का पुण्यकाल सूर्योदय से मध्याह्न 11.58 तक, श्रीदुर्गाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, मेला नयनादेवी-चिन्तपूर्णी-चामुण्डा देवी (हिमाचल), दूर्वाष्टमी व्रत, मनसा पूजा समाप्त (बंगाल), सिंहादि<br />18 अगस्त: नकुल नवमी, श्रीरामकृष्ण परमहंस स्मृति दिवस<br />19 अगस्त: अक्षय-कलश दशमी (जैन)<br />20 अगस्त: पुत्रदा एकादशी व्रत, पवित्रा ग्यारस, झूलनयात्रा प्रारंभ (गौडीय वैष्णव), वरदलक्ष्मी व्रत, लालजी चालीहो (सिन्धी), सद्भावना दिवस<br />21 अगस्त: पवित्रा द्वादशी (पवित्रा बारस), श्रीधर द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, शनि-प्रदोष व्रत (पुत्र-प्राप्ति हेतु), श्रावण द्वादशी (जम्मू-कश्मीर), लालजी एकतालीहो (सिन्धी)<br />22 अगस्त: सूर्य-महापूजा, शिवपवित्रारोपण, रविव्रत (दिग.जैन)<br />23 अगस्त: सावन-सोमवार व्रत, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), सूर्य सायन कन्या में प्रात: 10.57 बजे, सौर शरद् ऋतु प्रारंभ, ओणम् (केरल), ऋग्वेदी उपाकर्म.<br />24 अगस्त: स्नान-दान-व्रत की श्रावणी पूर्णिमा, रक्षाबंधन, राखी प्रात: 9.20 के बाद बांधना शुभ, शुक्ल-कृष्ण यजुर्वेदी तथा अथर्ववेदी श्रावणी उपाकर्म, सत्यनारायण पूजा-कथा, हयग्रीवावतार जयंती, नारयली पूर्णिमा, लव-कुश जयंती, झूलनयात्रा पूर्ण, संस्कृत दिवस, गायत्री जयंती, श्रीदाऊजी एवं रेवती माता का श्रृंगार (ब्रज), बलभद्र पूजन (उडीसा), अवनी अवंती (दक्षिण भारत), सलोनो, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन).<br />25 अगस्त: भाद्रपद मास में दही त्यागें किन्तु मट्टा पी सकते हैं, गायत्री पुरश्चरण प्रारंभ, कजलियां (मध्यप्रदेश), षोडशकारण व्रत प्रारंभ (दिग.जैन)<br />26 अगस्त: अशून्य शयन व्रत, विंध्याचली-भीमचण्डी जयंती, कज्जली का रतजगा, बृहस्पति-महापूजा, बृहस्पतेश्वर-दर्शन (काशी, उज्जैन)<br />27 अगस्त: कज्जली (कजरी) तीज, तीजडी (सिन्धी), सातूडी तीज, विशालाक्षी दर्शन-यात्रा (काशी), गोपूजा तृतीया, मदर टेरेसा जयंती<br />28 अगस्त: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, विनायक चतुर्थी व्रत, बहुला चतुर्थी, व्यतिपात महापात प्रात: 7.38 से मध्याह्न 12.25 तक<br />29 अगस्त: रक्षापंचमी, भाई-बहिना टीका प्रात: 7.33 के बाद (खत्री), श्रीमाधवदेव तिथि (असम), गोगा पंचमी, श्रमण तप पूर्ण (जैन), अक्षयनिधि तप प्रारंभ (श्वेत.जैन),<br />30 अगस्त: रक्षापंचमी (मतान्तर से), कोकिला पंचमी (जैन), चन्द्रषष्ठी (चाना छठ) व्रत, हलषष्ठी (ललही छठ), श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), पक्षधर (श्वेत.जैन)<br />31 अगस्त: बलदेव षष्ठी, श्रीबलराम जयंती महोत्सव (ब्रज), रांधण छठ (गुजरात), शीतला व्रतप० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-34741143441081476312010-08-06T04:37:00.000-07:002010-08-06T04:38:52.434-07:001 सितंबर 20101 सितंबर: शीतला सप्तमी, ठंडरी का पूजन और बसौडा, वदी थधिडी (सिन्धी), कालाष्टमी व्रत, श्रीकृष्णावतार जयंती व्रत (स्मार्तो की जन्माष्टमी), आद्या काली जयंती, संत ज्ञानेश्वर जयंती, मोहरात्रि, शहादत-ए-हजरत अली (मुस.), गुरु ग्रन्थसाहिब प्रथम प्रकाश उत्सव (नानकशाही कैलेण्डर)<br />2 सितंबर: श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी व्रत (वैष्णवों का), श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव (ब्रज), गोकुलाष्टमी, गोविंदा-मटकीफोड (महाराष्ट्र)<br />3 सितंबर: नन्दोत्सव-दधि कांदौं (ब्रज), गोगा नवमी<br />4 सितंबर: अजा (जया) एकादशी व्रत (स्मार्तो का), जैन पर्युषण पर्व प्रारंभ (चतुर्थी पक्ष), अक्षयनिधि व्रत (जैन)<br />5 सितंबर: अजा एकादशी व्रत (वैष्णव का), जैन पर्युषण पर्व प्रारंभ (पंचमी पक्ष), शिक्षक दिवस, मदर टेरेसा स्मृति दिवस, बछ बारस (गौ-बछडा)<br />6 सितंबर: सोम-प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, कलियुगादि तिथि, श्रीमहाकाल की शाही सवारी (उज्जयिनी), कैलास यात्रा 2 दिन<br />7 सितंबर: अघोर चतुर्दशी, पूर्व रात्रि में शब-ए-कद्र (मुस.), अहिल्याबाई स्मृति दिवस, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन)<br />8 सितंबर: स्नान-दान-श्राद्ध की अमावस्या, कुशोत्पाटनी (कुशग्रहणी) अमावस, पिठौरी अमावस, सती-पूजा (मारवाड), लोहार्गल-यात्रा, वृषभोत्सव (पोला), गोटमार मेला (म.प्र.), विश्व साक्षरता दिवस<br />9 सितंबर: नक्त व्रत पूर्ण, चन्द्र-दर्शन की आंशिक संभावना, मौनव्रत प्रारंभ, रुद्र व्रत, वैधृति महापात दिन 3.11 से सायं 7.09 तक, मेघमाला व्रत प्रारंभ (जैन), महावीर जन्म वांचन (श्वेत. जैन)<br />10 सितंबर: नवीन चन्द्र-दर्शन, ईद का चांद, बाबा रामदेवपीर जयंती 625 वीं, सामवेदी श्रावणी, हरितालिका तीज एवं वाराहावतार जयंती (आधुनिक दृश्यगणितानुसार), त्रिलोक तीज (दिग.जैन), तेलाघर (श्वेत. जैन)<br />11 सितंबर: हरितालिका तीज एवं वाराहावतार जयंती (प्राचीन सूर्य सिद्धान्तानुसार), सिद्धिविनायक चतुर्थी व्रत, श्रीगणेशोत्सव प्रारंभ, आज चन्द्र-दर्शन निषिद्ध है, पत्थर चौथ, चौठ चन्द्र (मिथिलांचल), सौभाग्य चतुर्थी (बंगाल), पर्युषण पर्व पूर्ण-जैन संवत्सरी (चतुर्थी पक्ष), ईद-उल-फितर<br />12 सितंबर: ऋषि पंचमी-मध्याह्न में सप्तर्षि पूजन, गर्ग एवं अंगिरा ऋषि जयंती, आकाश पंचमी (जैन), पर्युषण पर्व पूर्ण-जैन संवत्सरी (पंचमी पक्ष), 12 से 16 सितम्बर पुष्पांजलि व्रत तथा 12 से 22 सितंबर दशलक्षण व्रत (दिग.जैन), मूल सूत्र वांचन (श्वेत.जैन)<br />13 सितंबर: बलदेव छठ (ब्रज), श्रीबलराम जयंती महोत्सव, सूर्यषष्ठी व्रत, लोलार्क षष्ठी (काशी), स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, चंदन षष्ठी (जैन)<br />14 सितंबर: मुक्ताभरण सप्तमी व्रत, संतान सप्तमी व्रत, ललिता सप्तमी (बंगाल, उडीसा), निर्दोष-शील सप्तमी (दिग.जैन), अवधूत भगवान राम जयंती (काशी), राष्ट्रभाषा हिंदी दिवस, अनुराधा में ज्येष्ठागौरी का आवाहन<br />15 सितंबर: श्रीदुर्गाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, श्रीराधाष्टमी व्रतोत्सव, राधारानी-जन्मोत्सव (बरसाना), स्वामी हरिदास जयंती (वृन्दावन), 16 दिन का महालक्ष्मी व्रत एवं लक्ष्मीकुण्ड-स्नान प्रारंभ (काशी), ज्येष्ठा में ज्येष्ठागौरी का पूजन, नि:शल्य अष्टमी (दिग.जैन), दुबडी आठें (श्वेत.जैन)<br />16 सितंबर: नन्दा नवमी, अदुख नवमी, श्रीचन्द्र जयंती, तल नवमी (बंगाल, उडीसा), श्रीमद्भागवत जयंती, कन्या-संक्रान्ति शेष रात्रि 5.29 बजे, पुण्यकाल आगामी दिन, मूल में ज्येष्ठागौरी का विसर्जन<br />17 सितंबर: विश्वकर्मा-पूजन, कन्या-संक्रान्ति का पुण्यकाल मध्याह्न 11.53 बजे, संकल्प में प्रयोजनीय शरद् ऋतु प्रारंभ, दशावतार दशमी व्रत, तेजा दशमी, मेला रामदेव जी, सुगंध-धूप दशमी (दिग.जैन), अनन्त व्रत प्रारंभ (दिग.जैन)<br />18 सितंबर: पद्मा एकादशी, जलझूलनी एकादशी, धर्मा-कर्मा एकादशी, डोल ग्यारस<br />19 सितंबर: पद्मा एकादशी व्रत (निम्बार्क वैष्णव), श्रवण-द्वादशी व्रत, वामनावतार जयंती, महारविवार व्रत, इन्द्रपूजा प्रारंभ (मिथिलांचल), भुवनेश्वरी महाविद्या जयंती<br />20 सितंबर: श्यामबाबा द्वादशी, सोम-प्रदोष व्रत<br />21 सितंबर: गोत्रिरात्र प्रारंभ, वितस्ता त्रयोदशी, मटकीफोड लीला (बरसाना), रत्नत्रय व्रत 3 दिन<br />22 सितंबर: अनन्तचतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत, श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन), व्यतिपात महापात दिन 12.20 से सायं 5.41 तक<br />23 सितंबर: स्नान-दान की पूर्णिमा, उमा-महेश्वर व्रत, लोकपाल-पूजन, महालया प्रारंभ, पूर्णिमा का श्राद्ध, सन्यासियों का चातुर्मास पूर्ण, सूर्य सायन तुला में प्रात: 8.40 बजे, शरद् सम्पात्, सूर्य दक्षिण गोल में, महाविषुव दिवस, षोडशकारण व्रत पूर्ण एवं क्षमावाणी (दिग.जैन)<br />24 सितंबर: आश्विन में दूध त्यागें, पितृपक्ष प्रारंभ, प्रतिपदा (1) का श्राद्धप० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-71525065765175937312010-08-06T04:35:00.000-07:002010-08-06T04:37:29.072-07:001 अक्टूबर 20101 अक्टूबर: अष्टमी (8) का श्राद्ध, कालाष्टमी, गया-मध्याष्टमी, जीवित्पुत्रिका व्रत (जीउतिया), अष्टका श्राद्ध, रक्तदान दिवस।<br />2 अक्टूबर: नवमी (9) का श्राद्ध, मातृनवमी-सुहागिनों का श्राद्ध, महात्मा गांधी एवं लालबहादुर शास्त्री जयंती, अहिंसा दिवस।<br />3 अक्टूबर: दशमी (10) का श्राद्ध।<br />4 अक्टूबर: एकादशी (11) का श्राद्ध, दिन 2.09 बजे के बाद द्वादशी (12) का श्राद्ध, वैष्णव-संन्यासी का श्राद्ध, इंदिरा एकादशी व्रत।<br />5 अक्टूबर: रेंटिया बारस, त्रयोदशी (13) का श्राद्ध, मघा-श्राद्ध, भौम-प्रदोष व्रत (ऋणमोचन हेतु), गजच्छाया योग प्रात: 10.57 से दिन 1.18 तक, वैधृति महापात दिन में 11.26 से 3.27 तक।<br />6 अक्टूबर: चतुर्दशी (14) का श्राद्ध, दुर्मरण श्राद्ध- शस्त्र, विष, अग्नि, जल, दुर्घटना से मृत का श्राद्ध, मासिक शिवरात्रि व्रत।<br />7 अक्टूबर: स्नान-दान-श्राद्ध की अमावस्या, पितृविसर्जनी अमावस, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अमावस्या सहित सब तिथियों का श्राद्ध, अज्ञात मरणतिथिवालों का श्राद्ध, महालया समाप्त, मेला-गयाजी, पिण्डारा, पिहोवा, कुरुक्षेत्र एवं गढगंगा, गजच्छाया योग प्रात: 7.43 से सूर्यास्त तक, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन)।<br />8 अक्टूबर: शारदीय नवरात्र प्रारंभ, कलश (घट) स्थापना मध्याह्नकालीन अभिजित् मुहूर्त्त में शुभ, नाती द्वारा नाना-नानी का श्राद्ध, महाराज अग्रसेन जयंती, वायुसेना दिवस, अवतार मेहेरबाबा जयंती, भगवती दोल पर आई।<br />9 अक्टूबर: नवीन चन्द्र-दर्शन, रेमन्त-पूजन (मिथिलांचल), श्रीगुरु रामदास जयंती, कांशीराम जयंती।<br />10 अक्टूबर: सिन्दूर तृतीया।<br />11 अक्टूबर: वरदविनायक चतुर्थी व्रत, रथोत्सव चतुर्थी, माना चतुर्थी (बंगाल, उडीसा), जयप्रकाश नारायण जयंती।<br />12 अक्टूबर: उपांग ललिता पंचमी व्रत, महालक्ष्मी-पूजन, डॉ. राममनोहर लोहिया स्मृति दिवस, स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, दक्षिणामुखी संकटमोचन श्रीहनुमान दर्शन-पूजन।<br />13 अक्टूबर: शारदीय दुर्गापूजा की बिल्वाभिमंत्रण षष्ठी, तपषष्ठी (उडीसा), गजगौरी व्रत, मूल में सरस्वती (देवी) का आवाहन।<br />14 अक्टूबर: बंगाली दुर्गापूजा प्रारंभ, श्रीदुर्गा-महासप्तमी व्रत, पत्रिका-प्रवेश, महानिशा-पूजा, पूर्वाषाढ में सरस्वती (देवी) का पूजन, भद्रकाली पूजा।<br />15 अक्टूबर: श्रीदुर्गा-महाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत एवं परिक्रमा (काशी), उत्तराषाढ में सरस्वती (देवी) के निमित्त बलिदान, नवपद ओली प्रारंभ (श्वेत.जैन)।<br />16 अक्टूबर: श्रीदुर्गा-महानवमी व्रत, त्रिशूलनी पूजा (मिथिलांचल), एकवीरा पूजा, श्रवण में सरस्वती (देवी) का विसर्जन, नवमी का हवन सायं 5.59 से पूर्व करें, सांईबाबा महोत्सव प्रारंभ (शिरडी), विश्व खाद्य दिवस।<br />17 अक्टूबर: विजयादशमी (दशहरा), शमी एवं अपराजिता पूजा, नीलकण्ठ-दर्शन शुभ, आयुध (शस्त्र) पूजन, सीमोल्लंघन, खत्री दिवस, बौद्धावतार दशमी, सांईबाबा समाधि दिवस, श्रीमहाकाल-सवारी (उज्जयिनी), माधवाचार्य जयंती, तुला-संक्रान्ति सायं 5.27 बजे, पुण्यकाल दिन 11.03 से सायं 5.27 तक।<br />18 अक्टूबर: पापांकुशा एकादशी व्रत, भरत-मिलाप।<br />19 अक्टूबर: पद्मनाभ द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी।<br />20 अक्टूबर: प्रदोष व्रत।<br />21 अक्टूबर: वाराह चतुर्दशी, शाकंभरीदेवी मेला (देवबन), आजाद हिन्द फौज स्थापना दिवस, कर्म निर्जर व्रत (जैन)।<br />22 अक्टूबर: शरद पूर्णिमा व्रतोत्सव, कोजागरी-लक्ष्मी पूजा, महारास पूर्णिमा (ब्रज), श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, श्रीबांकेबिहारी द्वारा मोर-मुकुट और कटि-काछनी तथा वंशी धारण करना (वृंदावन), लक्ष्मी एवं इन्द्र पूजन, महर्षि वाल्मीकि जयंती, पीर मत्स्येन्द्रनाथ उत्सव (उज्जयिनी), अग्र महाकुम्भ (अग्रोहा), पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन)।<br />23 अक्टूबर: स्नान-दान की 'अश्विनी' नक्षत्रयुता आश्विनी पूर्णिमा, कार्तिक स्नान-नियम तथा आकाश दीप-दान प्रारंभ, सूर्य सायन वृश्चिक में सायं 6.05 बजे, सौर हेमन्त ऋतु प्रारंभ।<br />24 अक्टूबर: पवित्र कार्तिक (दामोदर) मास प्रारंभ, तुलसीदल से श्रीहरि का पूजन, अशून्य शयन व्रत।<br />26 अक्टूबर: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, करवाचौथ व्रतोत्सव, अंगारकी चतुर्थी, कृष्णपिंगाक्ष चतुर्थी, गणेशशंकर विद्यार्थी जयंती, रोहिणी व्रत (दिग.जैन)।<br />27 अक्टूबर: दशरथ चतुर्थी।<br />30 अक्टूबर: कालाष्टमी व्रत, अहोई अष्टमी, अर्द्धरात्रि में श्रीराधाकुण्ड-स्नान (मथुरा), बहुला अष्टमी, दाम्पत्याष्टमी, कराष्टमी (महाराष्ट्र), वैधृति महापात देर रात 1.28 से।<br />31 अक्टूबर: सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती, वैधृति महापात प्रात: 6.25 तक।प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-82803147468096997772010-08-06T04:34:00.000-07:002010-08-06T04:35:51.870-07:002 नवंबर 20102 नवंबर: रमा (रम्भा) एकादशी व्रत<br />3 नवंबर: गोवत्स द्वादशी (गौ-बछडा), गोत्रिरात्र प्रारंभ, धनत्रयोदशी (धनतेरस), धंवंतरि जयंती, कामेश्वरी जयंती, यमपंचक शुरू, प्रदोष व्रत<br />4 नवंबर: मासिक शिवरात्रि व्रत, नरकहरा चतुर्दशी, काली चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, श्रीहनुमान जयंती (अयोध्या), धूमावती जयंती।<br />5 नवंबर: दीपावली महोत्सव, श्रीगणेश-लक्ष्मी-कुबेर का पूजन, कमला महाविद्या जयंती, काली (श्यामा) पूजा, सुखरात्रि-जागरण, पितृश्राद्ध की अमावस, महावीर स्वामी निर्वाणोत्सव (जैन), गौर-केदार व्रत, स्वामी रामतीर्थ जन्म एवं पुण्यतिथि, दयानंद स्मृति दिवस।<br />6 नवंबर: स्नान-दान की अमावस्या, अन्नकूट महोत्सव, गोवर्द्धन-पूजन, बलि-पूजन, सायं गो-क्रीडा, गो-संवर्धन सप्ताह प्रारंभ।<br />7 नवंबर: नवीन चन्द्र-दर्शन, भ्रातृ द्वितीया (यम द्वितीया), भैय्यादूज, चित्रगुप्त एवं विश्वकर्मा-पूजन, महावीर निर्वाण सम्वत् 2537 प्रारंभ (जैन), नेपाली सम्वत् 1131 प्रारंभ, यमपंचक समाप्त, आचार्य श्रीतुलसी जन्मदिवस<br />8 नवंबर: भैय्यादूज (मिथिलांचल), चित्रगुप्त-दवात पूजा, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), बग्वाली (उत्तरांचल), हज सफर शुरू।<br />9 नवंबर: अंगारकी वरदविनायक चतुर्थी व्रत, दूर्वा गणपति व्रत<br />10 नवंबर: सूर्यषष्ठी व्रत प्रारंभ, छठ पूजा शुरू- नहाय खाय (बिहार, झारखण्ड), सौभाग्य-लाभ पंचमी, पाण्डव पंचमी।<br />11 नवंबर: छठ पूजा का द्वितीय दिवस-खरना, स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, व्यतिपात महापात देर रात 2.47 से, दृश्यगणितानुसार सूर्य (प्रतिहार) षष्ठी व्रत।<br />12 नवंबर: सूर्यषष्ठी व्रत, छठ पूजा, डाला छठ (काशी), सूर्यास्त के समय सूर्य को प्रथम अर्घ्य-दान, व्यतिपात महापात प्रात: 9.11 तक।<br />13 नवंबर: प्रात: सूर्य को द्वितीय अर्घ्य-दान, छठ व्रत का पारण, जगद्धात्री पूजा 3 दिन (बंगाल), सामा-पूजा शुरू (मिथिलांचल), संत जलाराम बप्पा जयंती, चौमासी अट्ठाई प्रारंभ (जैन)।<br />14 नवंबर: गोपाष्टमी, गोपाल अष्टमी (जम्मू-कश्मीर), श्रीदुर्गाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, नेहरू जयंती, बाल दिवस।<br />15 नवंबर: अक्षयनवमी व्रत, आंवला नवमी, जुगलजोडी़ परिक्रमा (मथुरा-वृंदावन), सत्ययुगादि तिथि, कूष्माण्ड नवमी, जगद्धात्री पूजा पूर्ण (बंगाल), अनला नवमी (उडीसा), श्रीहंस भगवान एवं सनकादि जयंती, सर्वेश्वर प्रभु का प्राकट्योत्सव (निम्बार्क), वेद-संस्थापना महोत्सव, अयोध्या-परिक्रमा, विष्णुत्रिरात्र प्रारंभ, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जयिनी), बिरसा मुण्डा जयंती।<br />16 नवंबर: आशा दशमी, कंस-वध लीला (मथुरा), वृश्चिक-संक्रान्ति सायं 5.18 बजे, पुण्यकाल प्रात: 10.54 से सूर्यास्त तक।<br />17 नवंबर: श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, ईखरस-प्राशन, विष्णुत्रिरात्र पूर्ण, तुलसी-विवाहोत्सव प्रारंभ, भीष्मपंचक प्रारंभ, संत नामदेव जयंती, सोनपुर मेला शुरू (बिहार), लाला लाजपतराय बलिदान दिवस, कालीदास जयंती।<br />18 नवंबर: दामोदर द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, गरुड द्वादशी (उडीसा), मेला खाटूयाम (राज.), तुलसी विवाह, मत्स्य द्वादशी<br />19 नवंबर: प्रदोष व्रत, श्रीराधावल्लभ-पाटोत्सव (वृन्दावन), वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत, निशीथकाल में महाविष्णु-पूजा, रात्रि के अंतिम प्रहर में अरुणोदय के समय मणिकर्णिका स्नान (काशी), हरि-हर मिलन (उज्जयिनी), रानी लक्ष्मीबाई जयंती एवं इंदिरा गांधी जन्मदिवस, स्वामी अखण्डानंद स्मृति दिवस।<br />20 नवंबर: वैकुण्ठ चतुर्दशी, श्रीकाशीविश्वनाथ-प्रतिष्ठा दिवस (वाराणसी), सिद्धवट यात्रा (उज्जयिनी), नर्मदेश्वर को तुलसी-समर्पण।<br />21 नवंबर: स्नान-दान-व्रत की कार्तिक पूर्णिमा, देव-दीपावली (वाराणसी), निम्बार्क जयंती 5106 वीं, श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, श्रीगुरु नानक जयंती, सामा-विसर्जन (मिथिलांचल)।<br />22 नवंबर: कात्यायनी पूजा प्रारंभ, सूर्य सायन धनु में दिन 3.45 बजे।<br />23 नवंबर: सत्यसाईबाबा जन्मदिवस, अशून्य शयन व्रत, रोहिणी व्रत<br />24 नवंबर: सौभाग्यसुंदरी व्रत, गुरु तेगबहादुर शहीदी (नानकशाही)।<br />25 नवंबर: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, गजानन चतुर्थी व्रत, वैधृति महापात दिन 11.21 से सायं 7.21 तक।<br />26 नवंबर: वीड पंचमी-श्रीमनसादेवी शयन एवं श्रीविषहरा पूजा (मिथिलांचल), अन्नपूर्णा माता का 16 दिवसीय व्रत प्रारंभ (काशी)।<br />28 नवंबर: श्रीकालभैरवाष्टमी व्रत, श्रीकालभैरव दर्शन-पूजन (काशी, उज्जयिनी), भैरवनाथ जयंती, भानु-सप्तमी पर्व दिन 3.07 तक (सूर्यग्रहणतुल्य)।<br />29 नवंबर: प्रथमाष्टमी (उडीसा), आताल-पाताल सवारी (उज्जयिनी), श्रीमहाकाल-सवारी (उज्जयिनी)<br />30 नवंबर: अनलानवमी (उडीसा)प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-59606044219488281542010-08-06T04:31:00.000-07:002010-08-06T04:34:20.647-07:001 दिसंबर 20101 दिसंबर: उत्पन्ना एकादशी व्रत (स्मार्तो का), वैतरणी एकादशी, महावीर स्वामी दीक्षा कल्याणक (जैन)।<br />2 दिसंबर: उत्पन्ना एकादशी व्रत (वैष्णवों का)।<br />3 दिसंबर: प्रदोष व्रत, संत ज्ञानेश्वर समाधि उत्सव, श्रीराजेन्द्र प्रसाद जयंती।<br />4 दिसंबर: मासिक शिवरात्रि व्रत, तिरुपति बालाजी उत्सव, मेला पुरमण्डल-देविका स्नान (जम्मू-कश्मीर), नौसेना दिवस, पाक्षिक प्रतिक्रमण।<br />5 दिसंबर: स्नान-दान-श्राद्ध की अमावस्या, बकुला अमावस, गौरीतपो व्रत।<br />6 दिसंबर: मार्तण्ड (मल्लारि) भैरव षड्रात्र प्रारंभ (महाराष्ट्र, मालवा), रुद्र व्रत (पीडिया), धन्य व्रत, डॉ. अम्बेडकर स्मृति दिवस।<br />7 दिसंबर: नवीन चन्द्र-दर्शन, सशस्त्र सेना- झण्डा दिवस, व्यतिपात महापात दिन 1.40 से रात्रि 2.04 तक।<br />8 दिसंबर: इस्लामी हिजरी सन् 1432 शुरू (मुस.)।<br />9 दिसंबर: वरदविनायक चतुर्थी व्रत।<br />10 दिसंबर: विवाह पंचमी, श्रीसीता-राम विवाहोत्सव (मिथिलांचल, अयोध्या), विहार पंचमी- श्रीबांकेबिहारी का प्राकट्योत्सव (वृंदावन)।<br />11 दिसंबर: चम्पा षष्ठी, मार्त्तण्ड भैरव उत्थापन (मालवा, महाराष्ट्र), मूलकरूपिणी षष्ठी (बंगाल), सुब्रह्मण्यम षष्ठी (दक्षिण भारत), स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, श्रीअन्नपूर्णा माता का धान से श्रृंगार (काशी), खण्डेराव-सवारी, ओशो जन्मोत्सव।<br />12 दिसंबर: भानु-सप्तमी पर्व (सूर्यग्रहणतुल्य), मित्र सप्तमी (बंगाल), सूर्य-पूजन, विष्णु-नन्दा-भद्रा सप्तमी, कात्यायनी महापूजा प्रारंभ, नरसिंह मेहता जयंती, संत तारण तरण जयंती।<br />13 दिसंबर: श्रीदुर्गाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, कुमारिका-पूजन।<br />14 दिसंबर: मेंहदी रात (मुस.), ऊर्जा बचत दिवस।<br />15 दिसंबर: नन्दिनी नवमी, सरदार पटेल स्मृति दिवस, कात्यायनी महापूजा पूर्ण<br />16 दिसंबर: दशादित्य व्रत, कत्ल रात (मुस.), धनु-संक्रान्ति प्रात: 7.59 बजे, पुण्यकाल दिन 2.23 तक, धनु (खर) मास प्रारंभ।<br />17 दिसंबर: मोक्षदा एकादशी व्रत, बैकुण्ठ एकादशी (दक्षिण भारत), श्रीमद्भगवद्गीता जयंती, मौनी ग्यारस (जैन), मोहर्रम-ताजिया (मुस.)।<br />18 दिसंबर: अखण्ड द्वादशी, केशव द्वादशी, व्यंजन द्वादशी (गौडीय वैष्णव), श्यामबाबा द्वादशी, धरणी व्रत, शनि-प्रदोष व्रत (पुत्र-प्राप्ति हेतु)<br />20 दिसंबर: पिशाच मोचन श्राद्ध चतुर्दशी, कपर्दीश्वर-दर्शन (काशी), पूर्णिमा व्रत, दत्तात्रेय जयंती, श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, रोहिणी व्रत (दिग.जैन), पाक्षिक प्रतिक्रमण।<br />21 दिसंबर: स्नान-दान की 'मृगशिरा' नक्षत्रयुता अग्रहायणी पूर्णिमा, बत्तीसी पूनम, त्रिपुरभैरवी महाविद्या जयंती, अन्नपूर्णा जयंती, छप्पन भोग (बलदाऊ-मथुरा), कात्यायनी पूजा पूर्ण, सूर्य सायन मकर में शेष रात्रि 5.08 बजे, अयन-पुण्यकाल आगामी दिन, वैधृति महापात प्रात: 8.20 से देर रात 2.05 तक।<br />22 दिसंबर: मुंजहर तहर-मातृका पूजा (जम्मू-कश्मीर), सायन मतानुसार सूर्य उत्तरायन, अयन-पुण्यकाल दिन भर, करि दिन, सौर शिशिर ऋतु प्रारंभ।<br />23 दिसंबर: किसान दिवस, गौना उत्सव (अयोध्या)।<br />24 दिसंबर: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, सौभाग्य सुंदरी व्रत।<br />25 दिसंबर: महामना मालवीय जन्मदिवस (तारीखानुसार), आचार्य तुलसी दीक्षा दिवस (जैन)।<br />26 दिसंबर: जोड मेला 3 दिन (फतेहगढ साहिब- पंजाब)।<br />27 दिसंबर: शारदा माता जयंती, मिर्जा गालिब जन्मदिवस।<br />28 दिसंबर: कालाष्टमी व्रत, अष्टका श्राद्ध, रुक्मिणी अष्टमी व्रत, श्रीहनुमानाष्टमी (उज्जयिनी), महामना मदनमोहन मालवीय जयंती।<br />29 दिसंबर: अन्वष्टका श्राद्ध।<br />30 दिसंबर: पौषी दशमी-श्रीपार्श्वनाथ जयंती (जैन)।<br />31 दिसंबर: सफला एकादशी व्रत, सुरूपा द्वादशी, व्यतिपात महापात रात्रि 10.42 से,प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-72435397342971631142010-07-08T08:02:00.000-07:002010-07-08T08:08:39.787-07:00शिवाष्टक, लिंगाष्टक, रूद्राष्टक, बिल्वाष्टक जैसे नामों से प्रसिद्ध हैं।<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/TDXpY682jGI/AAAAAAAAALM/kPKXRH9PzJw/s1600/shiv-large.jpg"><img style="float: right; margin: 0pt 0pt 10px 10px; cursor: pointer; width: 282px; height: 320px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/TDXpY682jGI/AAAAAAAAALM/kPKXRH9PzJw/s320/shiv-large.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5491551934998809698" border="0" /></a><a style="font-weight: bold; color: rgb(204, 0, 0);" href="http://shivalaya.vnc.in/hi/shivastak.html" rel="bookmark" title="Permanent Link to <span title=" click="" to="" correct="" class="transl_class" id="1">शिवाष्टकम">शिवाष्टकम</a>
<br /><div style="text-align: justify;"><span>शिव</span> <span>के</span> <span>प्रशंसा</span> <span>में</span> <span>अनेकों</span> <span>अष्टकों</span> <span>की</span> <span>रचना</span> <span>हुई</span> <span>है</span> <span>जो</span> <span>शिवाष्टक</span>, <span>लिंगाष्टक</span>, <span>रूद्राष्टक</span>, <span>बिल्वाष्टक</span> <span>जैसे</span> <span>नामों</span> <span>से</span> <span>प्रसिद्ध</span> <span>हैं।</span> <span>शिवाष्टकों</span> <span>की</span> <span>संख्या</span> <span>भी</span> <span>कम</span> <span>नहीं</span> <span>है।</span> <span>प्रस्तुत</span> <span>शिवाष्टक</span> <span>आदि</span> <span>गुरू</span> <span>शंकराचार्य</span> <span>द्वारा</span> <span>रचित</span> <span>है।</span> <span>आठ</span> <span>पदों</span> <span>में</span> <span>विभक्त</span> <span>यह</span> <span>रचना</span> <span>परंब्रह्म</span> <span>शिव</span> <span>की</span> <span>पुजा</span> <span>एक</span> <span>उत्तम</span> <span>साधन</span> <span>है</span> <span>।</span></div><div class="entry font-resize"><div style="text-align: justify;"> </div><blockquote> </blockquote> <p> <span id="more-167"></span>
<br /></p><blockquote> <p align="center"><b>तस्मै नम: परमकारणकारणाय , दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय ।
<br /></b><b><b>नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय , ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय ॥ 1 ॥</b></b></p> </blockquote> <p>जो (शिव) कारणों के भी परम कारण हैं, ( अग्निशिखा के समान) अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रोंवाले हैं, सर्पों के हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वालें हैं – उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> <blockquote><p align="center"><b>श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय , शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय ।
<br /></b><b>कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय , लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥ 2 ॥</b></p> </blockquote> <p>जो निर्मल चन्द्र कला तथा सर्पों द्वारा ही भुषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजग्गुमारी अपने मुख से जिनके लोचनों का चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकी के दु:ख को दूर करनेवाले हैं, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> <blockquote><p align="center"><b>पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय , कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय ।
<br /></b><b>भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय , नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय ॥ 3 ॥</b></p> </blockquote> <p>जो स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले हैं, अगरू तथा चन्दन से चर्चित तथा भस्म, प्रफुल्लित कमल और जूही से सुशोभित हैं ऐसे नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव को नमस्कार है ।</p> <blockquote> <p align="center"><b>लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय , दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय ।
<br /></b><b>व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय , त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय ॥ 4 ॥</b></p> </blockquote> <p>जो लटकती हुई पिङ्गवर्ण जटाओंके सहित मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पड़ते हैं तीक्ष्ण दाढ़ों के कारण जो अति विकट और भयानक प्रतीत होते हैं, साथ ही व्याघ्रचर्म धारण किए हुए हैं तथा अति मनोहर हैं, तथा तीनों लोकों के अधिश्वर भी जिनके चरणों में झुकते हैं, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> <blockquote><p align="center"><b>दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय , क्षिप्रं महात्रिपुरदानवघातनाय ।
<br /></b><b>ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय , योगाय योगनमिताय नम: शिवाय ॥ 5 ॥</b></p> </blockquote> <p>जो दक्षप्रजापति के महायज्ञ को ध्वंस करने वाले हैं, जिन्होने परंविकट त्रिपुरासुर का तत्कल अन्त कर दिया था तथा जिन्होंने दर्पयुक्त ब्रह्मा के ऊर्ध्वमुख (पञ्च्म शिर) को काट दिया था, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> <blockquote><p align="center"><b>संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय , रक्ष: पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय ।
<br /></b><b>सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय , शार्दूलचर्मवसनाय नम: शिवाय ॥ 6 ॥</b></p> </blockquote> <p>जो संसार मे घटित होने वाले सम्सत घटनाओं में परिवर्तन करने में सक्षम हैं, जो राक्षस, पिशाच से ले कर सिद्धगणों द्वरा घिरे रहते हैं (जिनके बुरे एवं अच्छे सभि अनुयायी हैं); सिद्ध, सर्प, ग्रह-गण एवं इन्द्रादिसे सेवित हैं तथा जो बाघम्बर धारण किये हुए हैं, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> <blockquote> <p align="center"><b>भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय , सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय ।
<br /></b><b>गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय , गोक्षीरधारधवलाय नम: शिवाय ॥ 7 ॥</b></p> </blockquote> <p>जिन्होंने भस्म लेप द्वरा सृंगार किया हुआ है, जो अति शांत एवं सुन्दर वन का आश्रय करने वालों (ऋषि, भक्तगण) के आश्रित (वश में) हैं, जिनका श्री पार्वतीजी कटाक्ष नेत्रों द्वरा निरिक्षण करती हैं, तथा जिनका गोदुग्ध की धारा के समान श्वेत वर्ण है, उन शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> <blockquote> <p align="center"><b>आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय , यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय ।
<br /></b><b>ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय , गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय ॥ 8 ॥</b></p> </blockquote> <p>जो सूर्य, चन्द्र, वरूण और पवन द्वार सेवित हैं, यज्ञ एवं अग्निहोत्र धूममें जिनका निवास है, ऋक-सामादि, वेद तथा मुनिजन जिनकी स्तुति करते हैं, उन नन्दीश्वरपूजित गौओं का पालन करने वाले शिव जी को नमस्कार करता हूँ।</p> </div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-46604047438636523392010-06-09T10:08:00.000-07:002010-06-09T10:11:16.461-07:00क्या आपकी कुन्डली में कालसर्प योग है<div style="text-align: justify;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 153);">राहु-केतु ग्रहों को छाया ग्रह कहा जाता है, क्योंकि आकाश में ये दोनों ग्रह विन्दुओं के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं।राहु-केतु दोनों ही आधयात्मिक ग्रह हैं। राहु-केतु ग्रहों का हमारे कर्म फल से बहुत गहरा संबंधा है। ये ग्रह जीवन के सूक्ष्म विन्दुओं के ज्यादा निकट हैं।इन ग्रहों द्वारा जीवन में जो भी अनिष्टकारी घटनायें होती है। वे जातक को आधयात्मिक की ओर अग्रसर करती है। राहु और केतु के मध्य मे जब समस्त ग्रह आजाते है तब काल सर्प योग का निर्माण होता है। लग्न के अनुसार 12 भाव अर्थात् 12 ग 12 = 144, अर्थात् उदित गोलार्द्ध के भेद के अनुसार 144 और अनुदित गोलार्द्ध के भेद के अनुसार 144 ग 2 = 288 प्रकार के काल सर्प योग होते हैं। जब कालसर्प योग राहु से लेकर केतु तक बनता है तब वह उदित गोलार्द्ध कहलाता है और जब केतु से लेकर राहु तक बनता है तब अनुदित गोलार्द्ध कहलाता है। शारीरिक और मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा की भावना जाग्रत होती है। कुटुंबियों द्वारा इनका व्यर्थ विरोध होता है। जातक सदैव धन के लिए तरसते रहते हैं। इन्हें पराक्रम और युक्तियुक्त प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती। </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 153);">विद्यार्जन</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(0, 0, 153);"> में बाधाएं उपस्थित होती हैं। इनके कंधों पर ऋण का भारी बोझ बना रहता है। मित्र विश्वासघात करते हैं। स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न होते रहते हैं। केस मुकदमों के मकड़ जाल में जकड़ जाते हैं और कभी-कभी तो इन्हें बंदीगृह भी जाना पड़ता है। इनका विवाह विलंब से होता है। संतान सुख प्राप्त नहीं होता और यदि प्राप्त हो भी जाए तो दाम्पत्य जीवन में कटुता उत्पन्न हो जाती है और कभी-कभी तो संबंध विच्छेद तक हो जाता है। ये सभी स्थितियां सब पर लागू नहीं होती, पर राहु-केतु की स्थिति को देखते हुए उपर्युक्त तथ्यों में से एक या दो तथ्य अवश्य सत्य होते हैं। कालसर्प दोष की शांति के पश्चात उपलब्धियां तो प्राप्त होती हैं, क्या आपकी कुन्डली में कालसर्प योग है तो परेशान न हो हमे सम्पर्क करे।</span><br /></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-11217247272860833082010-03-24T21:30:00.000-07:002010-03-24T21:34:44.440-07:00सदा-शिव-कवचं<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/S6rnomK8ujI/AAAAAAAAAJ8/4bEtheE-7_A/s1600/21jul_shiva.jpg"><img style="float: left; margin: 0pt 10px 10px 0pt; cursor: pointer; width: 237px; height: 178px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/S6rnomK8ujI/AAAAAAAAAJ8/4bEtheE-7_A/s320/21jul_shiva.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5452424983512660530" border="0" /></a>।श्रीदेवी उवाच।।<br />भगवन् देव-देवेश ! सर्वाम्नाय-प्रपूजित !<br />सर्वं मे कथितं देव ! कवचं न प्रकाशितम्।।१<br />प्रासादाख्यस्य मन्त्रस्य, कवचं मे प्रकाशय।<br />सर्व-रक्षा-करं देव ! यदि स्नेहोऽस्ति मां प्रति।।२<br />।।श्री भगवानुवाच।।<br />विनियोगः- ॐ अस्य प्रासाद-मन्त्र-कवचस्य श्री वाम-देव ऋषिः। पंक्तिश्छन्दः। सदा-शिवः देवता। सकलाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगः।<br />ऋष्यादि-न्यासः- श्री वाम-देव ऋषये नमः शिरसि। पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे। सदा-शिवः देवताय नमः ह्रदि। सकलाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वाङगे।<br />।।मूल-पाठ।।<br />शिरो मे सर्वदा पातु, प्रासादाख्यः सदा-शिव।<br />षडक्षर-स्वरुपो मे, वदनं तु महेश्वरः।।१<br />पञ्चाक्षरात्मा भगवान्, भुजौ मे परि-रक्षतु।<br />मृत्युञ्जयस्त्रि-बीजात्मा, आस्यं रक्षतु मे सदा।।२<br />वट-मूलं सनासीनो, दक्षिणामूर्तिरव्ययः।<br />सदा मां सर्वतः पातु, षट्-त्रिंशार्ण-स्वरुप-धृक्।।३<br />द्वा-विंशार्णात्मको रुद्रो, दक्षिणः परि-रक्षतु।<br />त्रि-वर्णात्मा नील-कण्ठः, कण्ठं रक्षतु सर्वदा।।४<br />चिन्ता-मणिर्बीज-रुपो, ह्यर्द्ध-नारीश्वरो हरः।<br />सदा रक्षतु मे गुह्यं, सर्व-सम्पत्-प्रदायकः।।५<br />एकाक्षर-स्वरुपात्मा, कूट-व्यापी महेश्वरः।<br />मार्तण्ड-भैरवो नित्यं, पादौ मे परि-रक्षतु।।६<br />तुम्बुराख्यो महा-बीज-स्वरुपस्त्रिपुरान्तकः।<br />सदा मां रण-भुमौ च, रक्षतु त्रि-दशाधिपः।।७<br />ऊर्ध्वमूर्द्धानमीशानो, मम रक्षतु सर्वदा।<br />दक्षिणास्यं तत्-पुरुषः, पायान्मे गिरि-नायकः।।८<br />अघोराख्यो महा-देवः, पूर्वास्यं परि-रक्षतु।<br />वाम-देवः पश्चिमास्यं, सदा मे परि-रक्षतु।।९<br />उत्तरास्यं सदा पातु, सद्योजात-स्वरुप-धृक्।<br />इत्थं रक्षा-करं देवि ! कवचं देव-दुर्लभम्।।१०<br />।।फल-श्रुति।।<br />प्रातःकाले पठेद् यस्तु, सोऽभीष्टं फलमाप्नुयात्।<br />पूजा-काले पठेद् यस्तु, कवचं साधकोत्तमः।।११<br />कीर्ति-श्री-कान्ति-मेधायुः सहितो भवति ध्रुवम्।<br />तव स्नेहान्महा-देवि ! कथितं कवचं शुभम।।१२<br />।।इति भैरव-तन्त्रे सदा-शिव-कवचं सम्पूर्णं।।प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-29126746444567655852010-03-14T19:29:00.000-07:002010-03-14T19:35:09.926-07:00ज्वाला मुखी योग 20 मार्च 2010 को<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/S52cdmUHPRI/AAAAAAAAAJ0/inTOOTXqjoQ/s1600-h/volcano.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 320px; height: 228px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/S52cdmUHPRI/AAAAAAAAAJ0/inTOOTXqjoQ/s320/volcano.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448683156503215378" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI">ज्वाला मुखी योग </span><span style="font-weight: bold;">20</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI"> मार्च </span><span style="font-weight: bold;">2010</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI"> को</span><br /><div style="text-align: justify;"><span style="font-weight: bold;">20</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI"> मार्च </span><span style="font-weight: bold;">2010</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI"> दिन शनिवार को दोपहर </span><span style="font-weight: bold;">12</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI"> बजकर </span><span style="font-weight: bold;">46</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;" lang="HI"> मिनट से पंचमी तिथि व भरणी नक्षत्र का सयोंग बन रहा है और इस संयोग से ज्वालामुखी योग का निर्माण होता है</span><br /></div><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">मित्रों</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">ग्रहो</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">नक्षत्रों के खेल निराले हैं इनका विचार अवश्य करना चाहिए और जो व्यक्ति शुभ अशुभ का विचार करता है उसका समय साथ देता है जिसका उल्लेख हम यहां कर रहे हैं। जहां एक और </span>16<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> मार्च </span>2010<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> से नवरात्रि व्रत प्रारम्भ हो रहे हैं अनेक व्यक्ति अपने रूके हुए शुभ कार्यो को इस समय में करते हैं परन्तु </span>20<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> मार्च </span>2010<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> दिन शनिवार को दोपहर </span>12<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> बजकर </span>46<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> मिनट से पंचमी तिथि व भरणी नक्षत्र का सयोंग बन रहा है और इस संयोग से ज्वालामुखी योग का निर्माण होता है इस योग में किया गया प्रत्येक कार्य दुख दायक होता है</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">कहा गया है जो जन्में सो जीवे नहीं</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">बसे जो उजड जाय नारी पहने चूडला वह निशिचत विधवा हो जाये</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">गांव गया आवें नहीं कुंआ नीर न होय।</span> <p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">इस कारण हमारी सलाह है कि किसी भी प्रकार का शुभ कार्य </span>20 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">व </span>21 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">मार्च </span>2010 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">को न करें यदि सम्भव हो तो सम्भोग भी न करें क्योंकि इस योग में यदि संतान उत्पत्ति का बीजारोपण किया जाता है तो भविष्य में उसके परिणाम समाज व परिवार के लिये लाभदायक नहीं रहते हैं।</span><span style=""><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अशुभ ज्वालामुखी योग</span><o:p></o:p></b></p> <p class="MsoNormal">23 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अप्रैल को प्रात: </span>8.35 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">से दोपहर </span>1.51 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">तक</span><span style=""><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अशुभ ज्वालामुखी योग</span></b></p> <p class="MsoNormal">26 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">जून को सायं </span>5.01 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">से रात्रि </span>9.57 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">तक</span><span style=""><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अशुभ ज्वालामुखी योग</span><o:p></o:p></b></p> <p class="MsoNormal">1<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> सितम्बर को प्रात: </span>10.50<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> से दोपहर </span>1.18<span lang="HI" style="font-family:Mangal;"> तक</span></p> <p class="MsoNormal">2 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">सितम्बर को प्रात: </span>10.42 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">से दोपहर </span>1.46 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">तक</span><span style=""><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अशुभ ज्वालामुखी योग</span><o:p></o:p></b></p> <p class="MsoNormal">6 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">दिसम्बर को सायं </span>5.54 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">से रात्रि </span>10.19 <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">तक</span><span style=""><o:p></o:p></span></p>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-14272011358292096132010-02-10T08:15:00.000-08:002010-02-10T08:17:36.754-08:00गुरु महिलाओं का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है।<div style="text-align: justify;"><span style="font-weight: bold;">गुरु महिलाओं का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है। जन्म कुंडली में गुरु 1,2,4,5,11,12 में शुभ फल तथा 3,6,7,8,10 में अशुभ फल देता है। स्त्रियों की कुंडली में गुरु 7वें तथा 8वें भाव को अधिक प्रभावित करता है। मकर-कुंभ का अकेला गुरु पति-पत्नी के सुख में कमी लाता है।</span> जलतत्वीय या कन्या राशि का सप्तम का गुरु होने पर पति-पत्नी के संबंध मधुर नहीं रहते।<br /></div>सप्तम में शुभ गुरु व मीन-धनु का होने पर विवाह विच्छेद की स्थिति बनाता है। गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है। राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है। महिला कुंडली में आठवें भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है। आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है।<br /> 1. गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन का नाश कराता है।<br /> 2. 1/5/9/11 का गुरु बली होने पर जल्दी विवाह के योग बनाता है, परंतु वक्री, नीच, अस्त, अशुभ, कमजोर होने पर विलंब।<br /> 3. मकर-कुंभ लग्न में सप्तम का गुरु भी प्रेम सम्बन्धों व वैवाहिक जीवन को समाप्त कराता है।<br /> 4. गुरु मिथुन-कन्या का गुरु लग्न या सप्तम में हो तो शुभ होता है।<br /> 5. अत्यंत प्रबल गुरु चंद्र-मंगल से उत्तम तालमेल होने पर पे्रम व वैवाहिक जीवन सफल होता है।<br /> 6. मेष लग्न में विवाह में विलंब सप्तम का गुरु कराता है।<br /> 7. कर्क-सिंह लग्न में 7/8 भाव का गुरु शुभ होने से प्रेम व वैवाहिक जीवन शुभ रहता है।<br /> 8. वृश्चिक-धनु-मीन लग्न का गुरु वैवाहिक जीवन सुखी बनाता है तथा सहायक होता है। मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-39844888923038169992010-01-01T19:52:00.000-08:002010-01-01T19:53:44.661-08:002010 मार्च में शनिप्रदोष,अमावस्या2010 मार्च में गणेश संकष्ट चतुर्थी,छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती,रंगपंचमी,श्री एकनाथ षष्ठी,भानुसप्तमी- कालाष्टमी,विश्व महिला दिवस,सावित्रीबाई फुले स्मृतिदिवस वीरांगना अवंतिबाई का बलिदान दिवस,मधुकृष्ण त्रयोदशी- शनिप्रदोष,अमावस्या प्रारम्भ 14 मार्च 2010 रात्रि 12.31,15 मार्च 2010 सोमवती अमावस्या समाप्ति रात्रि 02.30,चैती नवरात्र प्रारंम्भ,गौरी तृतीया- मत्स्य जयंती पंचक समाप्ति 10.33,विनायक चतुर्थी,लक्ष्मी पंचमी,दुर्गाष्टमी,श्री रामनवमी,कामदा एकादशी,27 मार्च 2010 शनिप्रदोष,महावीर जयंती,29 मार्च 2010 हनुमान जयंती उपवास पूर्णिमा प्रारम्भ-11.40<br />चैत मास प्रारम्भ-2010<br />1 मार्च 2010<br />चैत मास प्रारम्भ<br />चैत कृ-1--सूर्य उदय 7.00 -- सूर्य अस्त 18.44<br />चन्द्रमा सिंह राशि में<br />--------------------<br />2 मार्च 2010<br />चैत कृ-2--सूर्य उदय 6.59 -- सूर्य अस्त 18.44<br />चन्द्रमा कन्या राशि में 21.30 तक<br />---------------------<br />3 मार्च 2010<br />चैत कृ-3<br />गणेश संकष्ट चतुर्थी<br />छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती<br />सूर्य उदय 06.58-- सूर्य अस्त 18.44<br />चन्द्रमा कन्या राशि में21.30 तक<br />---------------------<br />4 मार्च 2010<br />चैत कृ-4-- सूर्य उदय 06.57 -- सूर्य अस्त 18.45<br />चन्द्रमा तुला राशि में<br />---------------------<br />5 मार्च 2010<br />चैत कृ-5-- रंगपंचमी<br />सूर्य उदय 06.57 -- सूर्य अस्त 18.45<br />चन्द्रमा तुला राशि में 26.04<br />---------------------------<br />6 मार्च 2010<br />चैत कृ-6<br />श्री एकनाथ षष्ठी<br />सूर्य उदय 06.56 -- सूर्य अस्त 18.45<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में<br />---------------------<br />7 मार्च 2010<br />चैत कृ-7<br />भानुसप्तमी- कालाष्टमी<br />सूर्य उदय 06.55 -- सूर्य अस्त 18.46<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में<br />---------------------<br />8 मार्च 2010<br />चैत कृ-8<br />विश्व महिला दिवस<br />सूर्य उदय 06.54 -- सूर्य अस्त 18.46<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में 10.53<br />---------------------------<br />9 मार्च 2010<br />चैत कृ-9<br />सूर्य उदय 06.53 -- सूर्य अस्त 18.46<br />चन्द्रमा धनु राशि में<br />----------------------------<br />10 मार्च 2010<br />चैत कृ-10<br />सावित्रीबाई फुले स्मृतिदिवस वीरांगना अवंतिबाई का बलिदान दिवस<br />सूर्य उदय 06.53 -- सूर्य अस्त 18.47<br />चन्द्रमा धनु राशि में 22.58 तक<br />---------------------<br />11 मार्च 2010<br />चैत कृ-11<br />पापमोचनी एकादशी<br />सूर्य उदय 06.52 -- सूर्य अस्त 18.47<br />चन्द्रमा मकर राशि में<br />---------------------<br />12 मार्च 2010<br />चैत कृ-12<br />सूर्य उदय 06.51 -- सूर्य अस्त 18.47<br />चन्द्रमा मकर राशि में<br />---------------------<br />13 मार्च 2010<br />चैत कृ-13<br />मधुकृष्ण त्रयोदशी- शनिप्रदोष<br />पंचक प्रारंभ-12.04<br />सूर्य उदय 06.50 -- सूर्य अस्त 18.47<br />चन्द्रमा मकर राशि में 12.04<br />---------------------<br />14 मार्च 2010<br />चैत कृ-14<br />अमावस्या प्रारम्भ रात्रि 12.31<br />सूर्य उदय 06.46 -- सूर्य अस्त 18.48<br />चन्द्रमा कुंभ राशि में<br />---------------------<br />15 मार्च 2010<br />चैत सोमवती अमावस्या समाप्ति रात्रि 02.30<br />सूर्य उदय 06.49 -- सूर्य अस्त 18.48<br />चन्द्रमा कुंभ राशि में 24.12<br />---------------------<br />16 मार्च 2010<br />चैत शु.-1 -- चैती नवरात्र प्रारंम्भ<br />सूर्य उदय 06.48 -- सूर्य अस्त 18.48<br />चन्द्रमा मीन राशि में<br />---------------------<br />17 मार्च 2010<br />चैत शु.-2<br />सूर्य उदय 06.47 -- सूर्य अस्त 18.48<br />चन्द्रमा मीन राशि में<br />---------------------<br />18 मार्च 2010<br />चैत शु.-3<br />गौरी तृतीया- मत्स्य जयंती पंचक समाप्ति 10.33<br />गणगौर पूजा<br />सूर्य उदय 06.46 -- सूर्य अस्त 18.49<br />चन्द्रमा मीन राशि में 10.33<br />--------------------<br />19 मार्च 2010<br />चैत शु.-4<br />विनायक चतुर्थी<br />सूर्य उदय 06.45 -- सूर्य अस्त 18.49<br />चन्द्रमा मेष राशि में<br />---------------------<br />20 मार्च 2010<br />चैत शु.-5<br />लक्ष्मी पंचमी<br />सूर्य उदय 06.44 -- सूर्य अस्त 18.49<br />चन्द्रमा मेष राशि में<br />---------------------<br />21 मार्च 2010<br />चैत शु.-6<br />सूर्य उदय 06.44 -- सूर्य अस्त 18.49<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में<br />---------------------<br />22 मार्च 2010<br />चैत शु.-7<br />सूर्य उदय 06.43 -- सूर्य अस्त 18.50<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में 25.11 तक<br />---------------------<br />23 मार्च 2010<br />चैत शु.-8<br />दुर्गाष्टमी<br />सूर्य उदय 06.42 -- सूर्य अस्त 18.50<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में<br />---------------------<br />24 मार्च 2010<br />चैत शु.-9 चैत नवरात्र समाप्ति<br />श्री रामनवमी<br />सूर्य उदय 06.41 -- सूर्य अस्त 18.50<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में 29.03 तक<br />---------------------<br />25 मार्च 2010<br />चैत शु.-10<br />सूर्य उदय 06.40 -- सूर्य अस्त 18.50<br />चन्द्रमा कर्क राशि में<br />--------------------<br />26 मार्च 2010<br />चैत शु.-11<br />कामदा एकादशी<br />सूर्य उदय 06.39 -- सूर्य अस्त 18.51<br />चन्द्रमा कर्क राशि में<br />--------------------<br />27 मार्च 2010<br />चैत शु.-12<br />शनिप्रदोष<br />सूर्य उदय 06.39 -- सूर्य अस्त 18.51<br />चन्द्रमा कर्क राशि में 06.43 तक<br />--------------------<br />28 मार्च 2010<br />चैत शु.-13 महावीर जयंती<br />सूर्य उदय 06.38 -- सूर्य अस्त 18.51<br />चन्द्रमा सिंह राशि में<br />--------------------<br />29 मार्च 2010<br />चैत शु.-14 हनुमान जयंती उपवास पूर्णिमा प्रारम्भ-11.40<br />सूर्य उदय 06.38 -- सूर्य अस्त 18.51<br />चन्द्रमा सिंह राशि में 07.10तक<br />------------------<br />30 मार्च 2010<br />अधिक वैशाख कृ-1 चैत पूर्णिमा<br />हनुमान जयंती <br />पूर्णिमा-07.55 पर समाप्त<br />सूर्य उदय 06.38 -- सूर्य अस्त 18.51<br />चन्द्रमा कन्या राशि में<br />------------------<br />31 मार्च 2010<br />अधिक वैशाख कृ-2<br />सूर्य उदय 06.35 -- सूर्य अस्त 18.52<br />चन्द्रमा कन्या राशि में 08.09प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-46795957159542218122010-01-01T19:23:00.000-08:002010-01-01T19:26:39.105-08:00फरवरी-2010 के वर्त-पर्व होली-पूर्णिमा समाप्ति रात्रि 10.08फरवरी-2010 के वर्त-पर्व<br />होली-पूर्णिमा समाप्ति रात्रि 10.08<br />1 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ-3<br />संत नरहरि सोनार पुण्यतिथि<br />सूर्य उदय 7.14<br />सूर्य अस्त 18.31<br />चन्द्रमा सिंह राशि में<br />------------------<br />2 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 4<br />अंगारक गणेश संकष्ट चतुर्थी<br />सूर्य उदय- 7.14<br />सूर्य अस्त 18.32<br />चन्द्रमा सिंह राशि में 09.21 तक<br />----------------<br />3 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 5<br />सूर्य उदय- 7.14<br />सूर्य अस्त 18.33<br />चन्द्रमा कन्या राशि में<br />--------------------<br />4 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 6<br />सूर्य उदय- 7.13<br />सूर्य अस्त 18.33<br />चन्द्रमा कन्या राशि में 11.52 तक<br />----------------<br />5 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 7<br />कालाष्टमी<br />सूर्य उदय- 7.13<br />सूर्य अस्त 18.34<br />चन्द्रमा तुला राशि में<br />----------------<br />6 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 8<br />जानकी जन्म<br />सूर्य उदय- 7.13<br />सूर्य अस्त 18.34<br />चन्द्रमा तुला राशि में 18.12 तक<br />----------------<br />7 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 9<br />श्री रामदास नवमी<br />सूर्य उदय- 7.12<br />सूर्य अस्त 18.35<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में<br />------------------<br />8 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 10<br />स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती<br />सूर्य उदय- 7.12<br />सूर्य अस्त 18.35<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में 28.16 तक<br />----------------<br />9 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 11<br />विजया एकादशी<br />सूर्य उदय- 7.11<br />सूर्य अस्त 18.36<br />चन्द्रमा धनु राशि में<br />-----------------<br />10 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 12<br />सूर्य उदय- 7.11<br />सूर्य अस्त 18.36<br />चन्द्रमा धनु राशि में<br />--------------------<br />11 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 13<br />प्रदोष<br />सूर्य उदय- 7.10<br />सूर्य अस्त 18.37<br />चन्द्रमा धनु राशि में16.40 तक<br />------------------<br />12 फरवरी-2010<br />फाल्गुन कृ- 14<br />महाशिवरात्रि निशीथकाल रात 12.29 से 01.19 तक<br />अमावस्या आरंभ<br />उ. रात्रि 05.40<br />सूर्य उदय- 7.10<br />सूर्य अस्त 18.37<br />चन्द्रमा मकर राशि में<br />---------------------<br />13 फरवरी-2010<br />फाल्गुन अमावास्या<br />लोहडी<br />पंचक प्रारंभ रात्रि 4.45 बजे से<br />सूर्य उदय- 7.9<br />सूर्य अस्त 18.38<br />चन्द्रमा मकर राशि में 29.43<br />-----------------<br />14 फरवरी-2010<br />फाल्गुन अमावास्या समाप्ति सुबह 8.20<br />मकर संक्राति<br />सूर्य उदय- 7.09<br />सूर्य अस्त 18.38<br />चन्द्रमा कुभ राशि में<br />-----------------<br />15 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 1<br />मोनी अमावास्या (सूर्य ग्रहण)<br />सूर्य उदय- 7.08<br />सूर्य अस्त 18.38<br />चन्द्रमा कुभं राशि में<br />----------------<br />16 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 2<br />रामकृष्ण परमहंस जयंती<br />सूर्य उदय- 7.08<br />सूर्य अस्त 18.39<br />चन्द्रमा कुभं राशि में 18.05 तक<br />-----------------------<br />17 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 3<br />सूर्य उदय- 7.07<br />सूर्य अस्त 18.39<br />चन्द्रमा मीन राशि में<br />----------------------<br />18 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 4<br />विनायक चतुर्थी<br />सूर्य उदय- 7.07<br />सूर्य अस्त 18.40<br />चन्द्रमा मीन राशि में 28.54 तक<br />---------------------<br />19 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 5<br />छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती<br />सूर्य उदय- 7.06<br />सूर्य अस्त 18.40<br />चन्द्रमा मेष राशि में<br />---------------------<br />20 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 6<br />सूर्य उदय- 7.06<br />सूर्य अस्त 18.41<br />चन्द्रमा मेष राशि में<br />---------------------<br />21 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 7<br />भानुसप्तमी<br />होलाष्टक प्रारम्भ<br />सूर्य उदय- 7.05<br />सूर्य अस्त 18.41<br />चन्द्रमा मेष राशि में 13.20 तक<br />-----------------<br />22 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 8<br />दुर्गाष्टमी<br />सूर्य उदय- 7.04<br />सूर्य अस्त 18.41<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में<br />---------------------<br />23 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 9<br />सूर्य उदय- 7.04<br />सूर्य अस्त 18.42<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में 18.42 तक<br />----------------------<br />24 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 10<br />सूर्य उदय- 7.03<br />सूर्य अस्त 18.42<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में<br />---------------------<br />25 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 11<br />आमलकी एकादशी<br />सूर्य उदय- 7.02<br />सूर्य अस्त 18.42<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में 20.55 तक<br />--------------------<br />26 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 12/13<br />प्रदोष - गोविंद द्वदशी<br />सूर्य उदय- 7.02<br />सूर्य अस्त 18.43<br />चन्द्रमा कर्क राशि में<br />-----------------------<br />27 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- 14<br />ईद-ए-मिलाद<br />पूर्णिमा प्रारंभ उ. रात्रि01.51<br />सूर्य उदय- 7.01<br />सूर्य अस्त 18.43<br />चन्द्रमा कर्क राशि में 20.55 तक<br />----------------------<br />28 फरवरी-2010<br />फाल्गुन शु.- <br />होली-पूर्णिमा समाप्ति रात्रि 10.08<br />सूर्य उदय- 7.00<br />सूर्य अस्त 18.43<br />चन्द्रमा सिंह राशि मेंप० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-73867189694896823612009-12-30T20:12:00.000-08:002009-12-30T20:16:05.435-08:00प्रेम में सफलता और सुंदर पति अथवा पत्नी की प्राप्ति होती है।<div style="text-align: justify;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/SzwksaI4bBI/AAAAAAAAAIk/uyoAIXya5no/s1600-h/hand.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 200px; height: 173px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/SzwksaI4bBI/AAAAAAAAAIk/uyoAIXya5no/s320/hand.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5421248396796652562" border="0" /></a><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">मनुष्य के जीवन के बनने बिगड़ने में रेखाओं हथेली में विद्यमान पर्वतों, पोरों, चिह्नों आदि की भूमिका अहम होती है।</span> <span style="font-weight: bold;">इन सबका ज्ञान हमें हस्त सामुद्रिक शास्त्र से मिलता है। विद्वानों का मानना है कि हस्त रेखाएं स्थिर हैं, कभी बदलती नहीं। परंतु वैज्ञानिक खोजों से स्पष्ट हो चुका है कि रेखाएं परिवर्तनशील होती हैं।</span><br />विवाह एवं वैवाहिक जीवन की स्थिति पता लगाने के लिए कुछ विद्वान छोटी उंगली के नीचे स्थित बुध पर्वत की रेखाओं का विश्लेषण करते हैं तो कुछ अन्य शुक्र पर्वत से। किंतु कुछ विद्वानों का मानना है कि ये वास्तव में विवाह रेखाएं नहीं हैं। बल्कि ये जीवन को विभक्त करने वाली रेखाएं हैं। विवाह भी जीवन को दो भागों में बांट देता है- एक विवाह पूर्व का और दूसरा विवाह के बाद का।<br /><span style="font-weight: bold;">1--</span>अगर किसी रेखा में से कोई रेखा निकल कर नीचे की ओर जाए या नीचे की ओर झुके तो उसका फल प्रतिकूल होता है या कमी आती है। इसके विपरीत ऐसी कोई रेखा ऊपर की ओर जाए तो फल में वृद्धि होती है।<br /><span style="font-weight: bold;">2--</span>जंजीरनुमा रेखा अशुभ फल देती है।<br /><span style="font-weight: bold;">3--</span>यदि विवाह रेखा, जो बुध पर्वत पर होती है, जंजीरनुमा हो तो प्रेम प्यार में असफलता का मुंह देखना पड़ता है।<br /><span style="font-weight: bold;">4--</span>यदि मस्तिष्क रेखा जंजीरनुमा हो तो व्यक्ति अस्थिर बुद्धि वाला अथवा पागल हो सकता है।<br /><span style="font-weight: bold;">5--</span>लहरदार रेखा अशुभ मानी गई है। ऐसी रेखाएं शुभ फल प्रदान नहीं करती हैं।<br /><span style="font-weight: bold;">6--</span>रेखा अगर कहीं पतली और कहीं मोटी हो तो रेखा अशुभ होती है। ऐसी रेखा वाला व्यक्ति बार-बार धोखा खाता है तथा सफलता-असफलता के बीच झूलता रहता है।<br /><span style="font-weight: bold;">7--</span>जीवन रेखा के अतिरिक्त यदि कोई अन्य रेखा अपने आखिरी सिरे पर पहुंच कर दो भागों में बंटी हो तो वह अत्यंत प्रभावी तथा श्रेष्ठ फल देने वाली होती है। परंतु यदि हृदय रेखा दो भागों में बंटी हो तो व्यक्ति को हृदय रोग की संभावना रहती है।<br /><span style="font-weight: bold;">8--</span>यदि प्रणय रेखा से कोई रेखा निकल कर ऊपर की ओर जाए तो प्रेम में सफलता और सुंदर पति अथवा पत्नी की प्राप्ति होती है। परंतु यदि नीचे की ओर रुख करे तो प्रेम में असफलता मिलती तथा पति अथवा पत्नी को अस्वस्थता का सामना करना पड़ता है।<br /></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-23076612699322082762009-12-18T06:33:00.000-08:002009-12-18T06:34:47.902-08:00शनि की अशुभ स्थिति से मुक्ति और बचाव के कुछ टोटके प्रस्तुत हैं<span style="color: rgb(51, 51, 255); font-weight: bold;">शनि की अशुभ स्थिति से मुक्ति और बचाव के लाल किताब पर आधारित कुछ टोटके प्रस्तुत हैं। इन टोटकों का प्रयोग निष्ठापूर्वक किया जाए तो अनुकूल फल की प्राप्ति हो सकती है।</span><br /> <span style="color: rgb(51, 51, 255); font-weight: bold;">शनि जब शुभ होगा तब मकान के स्वामी व निवासी को सुख मिलेगा। शनि के अशुभ होने पर मकान से संबंधित परेशानी होती है और गृहस्वामी, गृहस्वामिनी और संतान को कष्ट झेलना पड़ता है। किरायेदार द्वारा मकान पर कब्जा, फैक्ट्री या दुकान कर्मचारियों द्वारा धोखाधड़ी, चोरी, या हानि पहुंचाना, न्यायालय द्वारा कुर्की, प्रशासन व महापालिका द्वारा अनेक प्रकार की आपत्तियां आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।</span><br />---शनि लग्नस्थ हो और मकान बनवाया जाए तो यह धन और परिवार के लिए अशुभ होगा। निर्धनता, कुर्की, पैतृक संपत्ति के नाश होने आदि की संभावना रहती है। व्यक्ति धोखेबाज, अशिक्षित, बेईमान, झगड़ालू, नेत्रहीन और अल्पायु हो सकता है। उसे संतान सुख की संभावना भी कम रहती है ।<br />उपाय:<br />1-मद्यपान व मांस का सेवन न करें।<br />2-वीरान जगह पर भूमि के नीचे सुरमा दबाएं।<br />3-बरगद के वृक्ष की जड़ में दूध चढ़ाकर गीली मिट्टी का तिलक लगाएं, विद्या में बाधा व रोग से मुक्ति मिलेगी।<br />4-धन वृद्धि के लिए बंदर पालें अथवा शनिवार को बंदर को खाना दें।<br />5-लोहे के तवे, चिमटे व अंगीठी का दान करें।<br />---शनि अगर दूसरे भाव में अशुभ हो तो मकान अपने आप बनेगा। परंतु आपत्ति हानिकारक होगी। यदि शनि दूसरे में और राहु 12वें में हो तो ससुराल में धन की कमी होती है। यदि गुरु 11वें में हो तो अपयश मिलेगा। यदि दूसरे भाव में शनि के साथ मंगल अशुभ हो तो जातक 28 से 39वें वर्ष तक रोगी रहेगा।<br />उपाय:<br />1-प्रत्येक शनिवार नंगे पांव मंदिर जाकर क्षमा याचना करें।<br />2-शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।<br />3-काली या दोरंगी भैंस, कुत्ता व अन्य कोई जानवर न पालें।<br />4-अपने माथे पर कभी तेल न लगाएं।<br />5-गाय के दूध या दही का तिलक लगाएं।<br />---शनि जन्मकुंडली के तृतीय भाव में अशुभ स्थिति में हो तो धन का अभाव या हानि कराता है। जातक को नेत्र रोग होगा या दृष्टि कमजोर होगी रोमकूपों में रोएं अधिक हों तो जातक निर्धन, अयोग्य व अय्याश होगा। शनि तीसरे व चंद्र 10वें में हो तो अवैध ढंग से धनार्जन करने के बावजूद जातक धनहीन रहेगा और उसके घर का कुआ अथवा घर ही मौत का कारक बनेगा। तीसरे भाव स्थित शनि के शत्रु ग्रह साथ हों तो जातक समस्याओं व धनहानि से परेशान रहेगा। यदि सूर्य भाव 1, 3 या 5 में हो तो लड़का व शनि का अशुभफल मिलेगा।<br />उपाय:<br />1-फकीरों और पालतू व कुत्तों की सेवा करें, या तीन कुत्तों की सेवा करें तो मकान बनेगा।<br />2-घर में कुत्ता सदैव पालें अन्यथा शनि व केतु का अशुभ फल मिलेगा।<br />3-केतु का उपाय करने पर धन संपत्ति बढ़ेगी।<br />4-घर की दहलीज को लोहे की कीलों से कीलें।<br />5-नेत्रों की औषधि मुफ्त बांटने से दृष्टिदोष दूर होगा।<br />6-भवन के अंत में अंधेरी कोठरी बनाना धन संपत्ति के लिए शुभ होगा।<br />7-मांस या शराब का सेवन यदि आप नहीं करेगे तो दीर्घ आयु होगी।<br />---शनि जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में अशुभ हो तो माता, मामा, दादी, सास और नानी पर अशुभ प्रभाव पड़ेगा। अर्थात मकान की नींव खोदते ही ससुराल और ननिहाल पर अशुभ प्रभाव पड़ना शुरू हो जाएगा या जातक को अपने बनाए मकान का सुख प्राप्त नहीं होगा। ऐसे जातकों को प्लाॅट लेकर मकान नहीं बनवाना चाहिए। परस्त्री से संबंध बनाने पर शनि का अशुभ फल मिलता है। शनि चैथे व गुरु तीसरे में हो तो धोखे व लूटपाट से संपत्ति बढ़ेगी। मकानों के कारोबार से लाभ मिलेगा।<br />उपाय:<br />1-सांप को दूध पिलाएं।<br />2-कौओं को छत पर रोटी डालें।<br />3-भैंस पालें या उसे प्रिति दिन रोटी खिलायें।<br />4-मजदूर से अतिक्ति सेवा लेने का प्रयास न करे।<br />5-कुएं में कच्चा दूध डालें।<br />6-परस्त्री अथवा विधवा से संबंध रखें अन्यथा निर्धन और कंगाल हो जाएंगे।<br />7-बहते पानी में शराब बहाएं।<br />8-रोग से मुक्ति हेतु शनि की वस्तुओं का प्रयोग करें।<br />9-सांप को न मारें।<br />10-शराब न पीएं।<br />11-रात्रि में दूध न पीएं।<br />---शनि जन्मकुंडली के पंचम भाव में हो तो मकान बनवाने पर संतान को कष्ट होगा। संतान का बनाया मकान जातक को शुभ फल देगा। संतान को यदि मकान बनवाना पड़े तो जातक की 48 वर्ष की आयु के बाद ही बनवाएं। संतान के बनाए मकान में वहम न करें। शनि पांचवें भाव में हो और वर्ष कुंडली में जब भी सूर्य, चंद्र और मंगल 5 वें में आएंगे तब जातक का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा। जातक के तन पर बाल अधिक हों तो वह चोर, धोखेबाज और दुर्भाग्यशाली होगा। कलम पर काबू होने पर भी निर्धन रहेगा। रोग, मुकदमे व झगड़ों से परेशान रहेगा। धन की हानि और संतान को कष्ट होगा साथ ही स्वास्थ्य खराब रहेगा और गुलामी करनी पड़ेगी।<br />उपाय:<br />1-पैतृक भवन की अंधेरी कोठरी में सूर्य की वस्तुएं गुड़, तांबा, भूरी भैंस, बंदर, मंगल की वस्तुएं सौंफ, खांड, शहद, लाल मूंगे, हथियार और चंद्र की वस्तुएं चावल, चांदी, दूध, कुएं, घोड़े आदि की व्यवस्था करें।<br />2-अपने भार के दशांश के तुल्य बादाम बहते पानी में बहाएं या धर्मस्थल में ले जाकर आधे बादाम घर में रखें, उन्हें खाएं नहीं।<br />3-संतान के जन्म लेने पर मीठा न बांटें, यदि बांटंे तो उसमें नमक लगा दें।<br />4-कुत्ता पालें।<br />---शनि जन्म कुंडली के षष्ठ भाव में अशुभ स्थिति में हो तो जातक अपनी आयु के 36 बल्कि 39 वर्ष बाद मकान बनाए तो शुभ होगा। 48 वर्ष की आयु के बाद बनाना लड़की के ससुराल के लिए अशुभ होगा। ऐसे जातकों को नुक्कड़ का मकान न तो बनवाना चाहिए और न ही खरीदना चाहिए। शनि की वस्तुएं (चमड़े व लोहे की वस्तुएं) घर पर लाना या सजाना अशुभ होगा। जिस वर्ष वर्ष कुंडली में भी छठे भाव में आए, उस वर्ष राज्यभय, दुख व अशुभ फल मिलेंगे। शराब व मांस का सेवन हानिकारक होगा। 28 से पूर्व विवाह करने पर 34 से 36 वर्ष के बीच माता व संतान शोक होगा तथा कष्ट बढ़ेंगे।<br />उपाय:<br />1-तेल में अपना मुंह देखकर सरसों के तेल का भरा बर्तन पानी के भीतर जमीन के नीचे दबाएं।<br />2-शनि संबंधी कार्य कृष्ण पक्ष में रात्रि में करें।<br />3-सांप की सेवा (दूध पिलाने) से <span>संतान</span> सुख मिलेगा।<br />4-नारियल या बादाम बहते पानी में प्रवाहित कराएं।<br />5-बुध का उपाय करें।<br />6-काला कुत्ता पालें या उसकी सेवा करें या उसे रोटी दें।<br />अन्य भावो के विषय में जल्द देगे आप अपने विचारो से अवगत अवश्य करायें।प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-40694979029727581442009-11-26T09:39:00.000-08:002009-11-26T09:45:52.696-08:00पर्व त्यौहार जनवरी-2010<span style="font-weight: bold;">1 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.1<br />सूर्य उदय 7.13<br />सूर्य अस्त 18.12<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में 22.38 तक<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">2 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.2<br />सूर्य उदय 7.14<br />सूर्य अस्त 18.13<br />चन्द्रमा कर्क राशि में<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">3 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.3<br />गणेश चतुर्थी<br />सूर्य उदय 7.14<br />सूर्य अस्त 18.13<br />चन्द्रमा कर्क राशि में 22.38तक<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">4 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.4<br />सूर्य उदय 7.14<br />सूर्य अस्त 18.14<br />चन्द्रमा सिंह राशि में<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">5 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.5/6<br />गुरू गोविंद सिंह जयंती<br />सूर्य उदय 7.15<br />सूर्य अस्त 18.15<br />चन्द्रमा सिंह राशि में 24.14<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">6 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.7<br />स्वामी विवेकानंद जयंती<br />सूर्य उदय 7.15<br />सूर्य अस्त 18.15<br />चन्द्रमा कन्या राशि में<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">7 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.8<br />सूर्य उदय 7.15<br />सूर्य अस्त 18.16<br />चन्द्रमा कन्या राशि में 28.38तक<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">8 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.9<br />सूर्य उदय 7.15<br />सूर्य अस्त 18.17<br />चन्द्रमा तुला राशि में<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">9 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.10<br />सूर्य उदय 7.15<br />सूर्य अस्त 18.17<br />चन्द्रमा तुला राशि में<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">10 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.11<br />षटतिला एकादशी<br />सूर्य उदय 7.15<br />सूर्य अस्त 18.17<br />चन्द्रमा तुला राशि में 12.11तक<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">11 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.12<br />सूर्य उदय 7.16<br />सूर्य अस्त 18.19<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">12 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.13<br />भौमप्रदोष<br />स्वामी विवेकानंद जयंती<br />राष्ट्रीय युवा दिवस<br />सूर्य उदय 07.15<br />सूर्य अस्त 18.17<br />चन्द्रमा वृश्चिक राशि में 22.28तक<br />---------------------<br /><span style="font-weight: bold;">13 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.13<br />शिवरात्रि, कालिका पूजा<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.20<br />चन्द्रमा धनु राशि में<br />------------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">14 जनवरी-2010</span><br />माघ कृ.14<br />मौनी अमावास्या मकर संक्रान्ति पुण्यकाल 12.37 से 18.19 तक<br />अमावास्या प्रारंभ सुबह 10.11<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.20<br />चन्द्रमा धनु राशि में<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">15 जनवरी-2010</span><br />माघ अमावास्या<br />सूर्यग्रहण<br />अमावास्या समाप्ति<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.21<br />चन्द्रमा धनु राशि में 10.36 तक<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">16 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.1<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.22<br />चन्द्रमा मकर राशि में<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">17 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.2<br />पंचक प्रारंभ 23.35<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.22<br />चन्द्रमा मकर राशि में 23.35 तक<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">18 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.3<br />पंचक<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.23<br />चन्द्रमा कुंभ राशि में<br />---------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">19 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.4<br />विनायक चतुर्थी, सकट चैथ<br />श्री गणेश जयंती<br />पंचक<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.24<br />चन्द्रमा कुंभ राशि में<br />-----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">20 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.5<br />श्री पंचमी, वसंत पंचमी<br />पंचक<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.24<br />चन्द्रमा कुंभ राशि में 12.09<br />-----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">21 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.6<br />देवनारायण जयंती<br />पंचक<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.25<br />चन्द्रमा मीन राशि में<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">22 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.7<br /> सप्तमी<br />पंचक समाप्त 22.47<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.26<br />चन्द्रमा मीन राशि में 22.47<br />-----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">23 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.8<br />नेताजी सुभाष जयंती<br />दुर्गाष्टमी<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.26<br />चन्द्रमा मेष राशि में<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">24 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.9<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.27<br />चन्द्रमा मेष राशि में 30.05<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">25 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.10<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.27<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में<br />---------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">26 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.11<br />जया एकादशी<br />गणतंत्र दिवस<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.28<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में<br />----------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">27 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.12<br />भीष्मद्वादशी<br />सूर्य उदय 07.16<br />सूर्य अस्त 18.29<br />चन्द्रमा वृषभ राशि में 09.37<br />-----------------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">28 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.13<br />लाला लाजपत राय जयंती<br />श्री विश्वकर्मा जयंती<br />प्रदोष<br />सूर्य उदय 07.15<br />सूर्य अस्त 18.29<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में<br />------------------------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">29 जनवरी-2010</span><br />माघ शु.14<br />पूर्णिमा प्रारंभ दोपहर 03.33<br />सूर्य उदय 07.15<br />सूर्य अस्त 18.30<br />चन्द्रमा मिथुन राशि में 10.11<br />------------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">30 जनवरी-2010</span><br />माघ पूर्णिमा<br />महात्मा गांधी पुण्यतिथि<br />माघस्नान समाप्त गुरू रविदास जयंती<br />पूर्णिमा समाप्त सुबह 11.49<br />सूर्य उदय 07.15<br />सूर्य अस्त 18.30<br />चन्द्रमा कर्क राशि में<br />------------------------------<br /><span style="font-weight: bold;">31 जनवरी-2010</span><br />फाल्गुन कृ.1/2<br />गुरूप्रतिपदा<br />फाल्गुन मासारंभ<br />सूर्य उदय 07.15<br />सूर्य अस्त 18.31<br />चन्द्रमा कर्क राशि में 09.25 तकप० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-79854752709365963222009-11-17T09:35:00.000-08:002009-11-17T09:45:44.587-08:00मन संकल्पात्मक होता है। मन का संकल्प कल्याणकारी हो सकता है और अकल्याणकारी भी<div style="text-align: justify;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/SwLg2WE9rZI/AAAAAAAAAG8/waErZNPfV-4/s1600/Flower_heart.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 320px; height: 320px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/SwLg2WE9rZI/AAAAAAAAAG8/waErZNPfV-4/s320/Flower_heart.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5405129727041973650" border="0" /></a><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">मन</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">जो</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">कहता</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">है</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> ,</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">बस</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">वो</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">कहता</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);">है</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(255, 0, 0);"> !</span> </div><div style="color: rgb(255, 0, 0); font-weight: bold; text-align: justify;">किसी बंधन में ये न बंधना चाहे ,किसी बचपन की हँसी हो जैसे ,</div><div style="text-align: justify; font-weight: bold;"> </div><div style="color: rgb(255, 0, 0); font-weight: bold; text-align: justify;"><span style="font-weight: bold;">किसी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रिश्ते</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जो</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कुछ</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">नाम</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">न</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हो</span><span style="font-weight: bold;">,</span><span style="font-weight: bold;">उसकी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">करता</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span> <span style="font-weight: bold;">इबादत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जैसे</span><span style="font-weight: bold;"> !</span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:12pt;" lang="HI" ><br /></span><br /><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:12pt;" lang="HI" ><span><span style="font-size:100%;"><span style="font-weight: normal;">मन</span></span></span><span style="font-size:100%;"><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">संकल्पात्मक</span><span style="font-weight: normal;">होता</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">है।</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">मन</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">का</span><span style="font-weight: normal;">संकल्प</span><span style="font-weight: normal;">कल्याणकारी</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">हो</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">सकता</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">है</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">और</span><span style="font-weight: normal;">अकल्याणकारी</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">भी।</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">जब</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">मन</span></span> <span style="font-weight: normal;font-size:100%;" >अधोगति</span><span style="font-size:100%;"><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">की</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">ओर</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">बढ़ता</span><span style="font-weight: normal;"> </span><span style="font-weight: normal;">है</span></span></span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" >तो जैसे जल-प्रवाह की अधोगति होती है उसी तरह संतापकारी संकल्पों को स्थान देने से हमारे अंदर गलत विचार उत्पन्न होते हैं और मन अधोगति की ओर बढ़ने लगता है। इसी संतापकारी भावनाओं से कुसंस्कारित जनों का साथ होने से हमारा मन इन्हीं कुत्सित विचारों और दुर्भावनाओं में भटकने लगता है। परिणामस्वरूप हम अध:पतन की ओर बढ़ने लगते हैं। हमारे मन के तराजू पर हर विचार और भावनाओं को तौलें जिससे विवेकपूर्वक तदर्थ श्रेष्ठ संस्कार</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >, </span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" >सद्विचार और सदाचरण हमें सही रास्ता दिखायेंगे। हमें अपने मन के केवल मनन करने से नहीं</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >, </span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" >अपितु अच्छे आचरण और <span style="color: rgb(0, 0, 153);">श्रेष्ठ विचारों तथा सत्संग से कार्य का निष्पादन करना ही तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु है। गीता में कहा गया है कि मानव का मन वायु के प्रचंड वेग की तरह अत्यन्त बलवान होता है जिसे रोक पाना बहुत कठिन होता है। हमें चंचल मन के वेगों को रोकना चाहिए और मेरा मन कल्याणकारी संकल्पों वाला हो</span></span><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-weight: bold;font-size:100%;" >, </span><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" >ऐसी कामना से हम देश का</span><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-weight: bold;font-size:100%;" >, </span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" ><span style="color: rgb(0, 0, 153);">समाज का और मानव का कल्याण कर सकेंगे। </span>साथ ही पुरुषार्थ चतुष्टय के धर्म</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >, </span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" >अर्थ</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >, </span><span style="font-weight: bold;font-family:Mangal;font-size:100%;" lang="HI" >काम और मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकेंगे।</span><span style=""><o:p></o:p></span></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-49495046950009360532009-10-26T22:15:00.000-07:002009-10-26T22:26:50.889-07:00श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत 29 अक्टूबर- 2009<div align="justify"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/SuaDU-7hvbI/AAAAAAAAAGY/tWvZwIYdKtQ/s1600-h/krodh-1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5397145599963413938" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 224px" alt="" src="http://1.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/SuaDU-7hvbI/AAAAAAAAAGY/tWvZwIYdKtQ/s320/krodh-1.jpg" border="0" /></a> <strong><span style="color:#660000;"><span style="font-family:arial;">धर्मराज</span> युधिष्ठर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’ मै उस सवांद को आप सभी के सम्मुख इस आश्य से प्रस्तुत कर रहा हूं कि आप सभी इस अवसर पर अपने मन कि इच्छाओं को भगवान श्री हरि के समक्ष रखे और दान धर्म कर लाभ उठाये।</span><br /><span style="color:#666600;">29 अक्टूबर- 2009 श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, विष्णुत्रिरात्र पूर्ण, चातुर्मास व्रत-नियम पूर्ण, भीष्मपंचक प्रारंभ, तुलसी-विवाहोत्सव शुरू, संत नामदेव जयंती, सोनपुर मेला शुरू (बिहार), तीन वन-परिक्रमा (ब्रज), रवियोग सायं 4.49 बजे तक।</span></strong><br />बोधिनी एकादशी का व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। एक समय धर्मराज युधिष्ठर ने गोपिका बल्लभ, विश्व के अधिष्ठान, सर्व प्राणियों में स्थित, परमश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए। उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’<br /><strong>भगवान श्रीकृष्ण बोले -</strong> ‘राजन्! कार्तिक के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका जैसा वर्णन लोकस्रष्टा ब्रह्माजी ने नारदजी से किया था, वही मैं तुम्हें बतलाता हूं।’<br /><em>नारदजी ने ब्रह्माजी से कहा- ‘पिताजी! जिसमें धर्म-कर्म में प्रवृत्ति कराने वाले भगवान गोविंद जागते हैं, उस ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का माहात्म्य बतलाइए।’</em><br />ब्रह्माजी बोले- ‘मुनिश्रेष्ठ ! ‘प्रबोधिनी’ का माहात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। समुद्र से सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं, सभी अपने माहात्म्य की तभी तक गर्जना करते हैं, जब तक कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु की ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती। प्रबोधिनी एकादशी का एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल पा लेता है। पुत्र ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असंभव है तथा जिसे त्रिलोक में किसी ने भी नहीं देखा है, वह वस्तु प्रबोधिनी एकादशी करने से प्राप्त हो जाती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को यह एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरु पर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी प्रबोधिनी एक ही उपवास से भस्म कर देती है। हजारों पूर्व जन्मों में जो पाप किए गए हैं, उन्हें प्रबोधिनी की रात्रि का जागरण रुई की ढेरी के समान भस्म कर डालता है। जो लोग प्रबोधिनी एकादशी का मन से ध्यान करते तथा इसका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुखों से छुटकारा पाकर भगवान विष्णु के परमधाम को चले जाते हैं। ब्राह्मण ! अश्वमेध आदि यज्ञों से भी जिस फल की प्राप्ति कठिन है, वह प्रबोधिनी एकादशी को जागरण करने से अनायास ही मिल जाता है। संपूर्ण तीर्थों में नहाकर स्वर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह श्रीहरि के निमित्त जागरण करने मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्यों के लिए मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-संपत्ति मात्र भी क्षणभंगुर हैं, ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिए। तीनों लोकों में जो भी तीर्थ संभव हैं, वे सब प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के घर में मौजूद रहते हैं। कार्तिक की ‘हरिबोधिनी’ एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य प्रबोधिनी की उपासना करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और जितेंद्रिय है तथा उसी को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।<br /><strong>पुत्र ! प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त जो स्नान, दान, जप और होम किया जाता है, वह सब अक्षय होता है। जो लोग इस तिथि को उपवास करके भगवान माधव की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मों के पापों से छुटकारा पा जाते हैं। इस व्रत के द्वारा देवेश्वर जनार्दन को संतुष्ट करके मनुष्य संपूर्ण दिशाओं को अपने तेज से प्रकाशित करता हुआ श्रीहरि के बैकुण्ठ धाम को जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को पूजित होने पर भगवान गोविन्द मनुष्यों के बचपन, जवानी और बुढ़ापे में किए हुए सौ जन्मों के पापों को, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः इस दिन सर्वथा प्रयत्न करके संपूर्ण मनोवांछित फलों को देने वाले देवाधिदेव जनार्दन की उपासना करनी चाहिए।<br /></strong>पुत्र नारद! जो भगवान विष्णु के भजन में तत्पर होकर कार्तिक में पराये अन्न का त्याग करता है, वह चान्द्रायण-व्रत का फल पाता है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चा से मनोरंजन करते हुए कार्तिक मास व्यतीत करता है, वह अपने संपूर्ण पापों को जला डालता और दस हजार यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के कहने-सुनने से भगवान मधुसूदन को जैसा संतोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान, जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभ कर्मपरायण पुरुष कार्तिक मास में एक या आधा श्लोक भी भगवान विष्णु की कथा बांचते हैं, उन्हें सौ गोदान का फल मिलता है। महामुने ! कार्तिक में भगवान केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिए। मुनि श्रेष्ठ! जो कार्तिक में कल्याण-प्राप्ति के लोभ से श्रीहरि की कथा का प्रबंध करता है, वह अपनी सौ पढ़ियों को तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिक मास में भगवान विष्णु की कथा सुनता है, उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है। जो प्रबोधिनी एकादशी के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है, उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। मुनि श्रेष्ठ ! जो लोग भगवान विष्णु की कथा सुनकर अपनी शक्ति के अनुसार कथा-वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। नारद! जो मनुष्य कार्तिक मास में भगवत्संबंधी गीत और शास्त्र-विनोद के द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी है। मुने! जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान के समक्ष गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णु की कथा करता है, वह तीनों लोकों के ऊपर विराजमान होता है।<br /><strong><span style="color:#3333ff;">मुनिश्रेष्ठ! कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी के दिन बहुत-से फल-फूल, कपूर, अरगजा और कुंकुम के द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। एकादशी आने पर धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रबोधिनी को जागरण के समय शंख में जल लेकर फल तथा नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रीजनार्दन को अघ्र्य देना चाहिए। संपूर्ण तीर्थों में स्नान करने और सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है, वही प्रबोधिनी एकादशी को अघ्र्य देने से करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। देवर्षि ! अघ्र्य के पश्चात् भोज-आच्छादन और दक्षिणा आदि के द्वारा भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए गुरु की पूजा करनी चाहिए। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवत की कथा सुनता अथवा पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिलादान का फल मिलता है। मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिक में जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकी के एक पत्ते से पूजित होने पर भगवान गरुड़ध्वज एक हजार वर्ष तक अत्यंत तृप्त रहते हैं। देवर्षे ! जो अगस्त के फूल से भगवान जनार्दन की पूजा करता है, उसके दर्शन मात्र से नरक की आग बुझ जाती है। वत्स ! जो लोग कार्तिक में भगवान जनार्दन को तुलसी के पत्र और पुष्प अर्पित करते हैं, उनका जन्म भर का किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है। मुने! जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्र युगों तक पुण्य का विस्तार करते हैं।<br /></span></strong>तुलसीदलपुष्पाणि ये यच्छन्ति जनार्दने। कार्तिके सकलं वत्स पापं जन्मार्जितं दहेत्।।<br />दृष्टा स्पृष्टाथ वा ध्याता कीर्तिता नामतः स्तुता। रोपिता सेचिता नित्यं पूजिता तुलसी नता।।<br />नवधा तुलसीभक्तिं ये कुर्वन्ति दिने दिने। युगकोटिसहस्राणि तन्वन्ति सुकृतं मुने।।<br />नारद ! सब प्रकार के फूलों और पत्तों को चढ़ाने से जो फल होता है, वह कार्तिकमास में तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से मिल जाता है। <strong><span style="color:#999900;">कार्तिक मास में प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसी के कोमल पत्तों से महाविष्णु श्रीजनार्दन का पूजन करना चाहिए। सौ यज्ञों द्वारा देवताओं का यजन करने और अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है, वह कार्तिक में तुलसीदल मात्र से केशव की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है।<br /></span>मुनिश्रेष्ठ !</strong> यद्यपि भगवान क्षण भर भी सोते नहीं हैं, फिर भी भक्तों की भावना ‘यथादेहे तथा देवे’ के अनुसार चार मास शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीर शयन के विषय में प्रसिद्ध है कि उन्होंने एकादशी के दिन ही महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीर सागर में जाकर सो गए। वे वहां चार माह तक शयन करते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी से इसका नाम देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी पड़ा । इस दिन व्रत के रूप में उपवास करने का विशेष महत्व है। यदि उपवास संभव न हो तो एक समय फलाहार करना चाहिए और संयम नियमपूर्वक रहना चाहिए। इस तिथि को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में भगवत्संबंधी कीर्तन, जप, वाद्य, नृत्य और पुराणों का पाठ करना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल, अघ्र्य आदि से गोविन्द भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की कर्णप्रिय, मनोहारी मांगलिक ध्वनि तथा निम्न मंत्रों द्वारा भगवान से जागने की प्रार्थना करें।<br />उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।<br />त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्।।<br />उतिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।<br />हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरू।।<br /><strong>इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पित करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-<br />इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।<br />त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।<br />इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।<br />न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।।तदनंतर भक्त प्रह्लाद, नारद, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीश, शुक्र, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद भक्तों को वितरण कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुनः भगवान गोविन्द का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजनादि पदार्थों से तृप्त कर दान दक्षिणा सहित विदाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। </strong></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-39841073451140896812009-10-10T20:38:00.000-07:002009-10-10T20:42:18.433-07:00अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है<a href="http://2.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/StFT3w8j6QI/AAAAAAAAAFY/f2ByEmSlMRY/s1600-h/swastik.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5391182446436018434" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 214px; CURSOR: hand; HEIGHT: 194px" alt="" src="http://2.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/StFT3w8j6QI/AAAAAAAAAFY/f2ByEmSlMRY/s320/swastik.jpg" border="0" /></a> <strong><span style="color:#cc0000;">17 अक्टूबर को उदयतिथि चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 11:04 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है।</span> इस कारण 17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी।’पांच दिवसीय दीपोत्सव 15 अक्टूबर को 4:40 बजे तक ही द्वादश तिथि रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी होने से धनतेरस भी मनेगी। 16 अक्टूबर को त्रयोदशी दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी का दीपदान होगा। 17 अक्टूबर को चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। इस लिए इसी दिन रात को लक्ष्मीपूजन के साथ दीपावली मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को अमावस्या सुबह 11:04 तक रहेगी। फिर प्रतिपदा शुरू होगी। इसी दिन गोवर्धन पूजा होगी। 19 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। इसके बाद भाईदूज का पर्व मनाया जा सकेगा।</strong><br /><div align="left"><strong><span style="color:#ff0000;">प्रदोश काल ---सायं काल 05-47 से 08-20 तक रात्रि में वृषलग्न--07-21 से 09-15 तक मध्य रात्रि मे सिंह लग्न --02-00 से 04-16 तक चौघडियां मुहूर्त --शाम 05 से 07--28 तक शुभ अमृत तथा चर के चौघडियां रात्रि 09 से मध्य रात्रि 01--47बजे तक</span></strong></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035639801502263352.post-48679808688202356592009-10-06T23:25:00.000-07:002009-10-06T23:47:21.469-07:00शत्रुता समाप्ति के लिए टोटके<a href="http://2.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/Ssw23k61X6I/AAAAAAAAAFI/S3r0sXNihg4/s1600-h/बà¤à¤²à¤¾à¤®à¥à¤à¥+यà¤à¤¤à¥à¤°.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5389743182486790050" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 109px; CURSOR: hand; HEIGHT: 106px" alt="" src="http://2.bp.blogspot.com/_PMyiX1mir4Q/Ssw23k61X6I/AAAAAAAAAFI/S3r0sXNihg4/s320/%E0%A4%AC%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%80+%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0.jpg" border="0" /></a><br /><br /><span style="font-size:130%;"><strong>शत्रुता समाप्ति के लिए </strong><strong>टोटके</strong></span><br /><br /><br /><div align="justify"><strong>हमे प्राप्त मेलो के जन्म लग्ग्ल चक्र के आधार पर ज्योतिष पुस्तको एवं विद्धवानो के अनुभव के आधार पर जनकल्याण के उद्धेश्य से देना प्रारम्भ कर रहें हैं।</strong></div><div align="justify"><span style="color:#660000;">अपने पूजा स्थल में शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को बगलामुखी यंत्र स्थापित करें। नित्य नहा धोकर यंत्र के दर्शन करें। गेंदे का एक पीला फूल अवश्य चढ़ाएं। शत्रु शत्रुता त्याग दें यह प्रार्थना दीन भाव से करें, कुछ ही समय में प्रबल शत्रु तक की शत्रुता समाप्त हो जाएगी।</span></div><div align="justify"><span style="color:#660000;"><span class=""></span></span><span class="">यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है।</span></div><div align="justify"><span class=""></span><strong><span class="">इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है जिसे हम यहाँ पर देना उचित समझते हैं। इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) एक निश्चित समय पर पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।</span></strong></div><div align="justify"><strong><span class=""></span></strong><span class="">आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है। </span></div><div align="justify"><strong><span style="font-size:130%;color:#3333ff;"><span class="">मां बगलामुखी साधना का उद्देश्य व लाभ</span></span></strong></div><div align="justify"><strong><span style="font-size:130%;color:#3333ff;"><span class=""></span></span></strong><span class="">शत्रु शमन, मुकदमों, किसी तरह की प्रतिस्पर्धा आदि में विजय मन चाहे व्यक्ति से भेंटअनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमनकार्यक्षेत्र में सफलता वाक् सिद्धिफंसे हुए धन की प्राप्तिरोंगो से मुक्ति शरीर में ‘वात’ का संतुलन बनाए रखनाबुरी आत्माओं से बचाव व प्रेत बाधा आदि से मुक्तिदुर्घटना, घाव, आपरेशन आदि से रक्षा14 बार इंद्र या वरुण मंत्र से अभिमंत्रित यंत्र को बाढ़ के जल में फेंक देने से बाढ़ रुक जाती हैपूजन विधि: सर्वप्रथम पीत वस्त्र बिछा कर उसपर पीले चावल की ढेरी बनावें। सामने पीतांबरा का चित्र रख कर, या चावल की ढेरी को पीतांबरा देवी मान कर उसकी विधिवत पंचमोपचार से पूजा करें। पीले पुष्प, पीले चावल आदि का उपयोग करें। घी, या तेल का दीपक जला कर सर्वप्रथम गुरु पूजा, फिर पीतांबरा देवी की पूजा करें। इसके पश्चात् संकल्प करें कि मैं अपनी अमुक समस्या के समाधान हेतु (समस्याः पारिवारिक कष्ट, पति, या पत्नी के अत्याचार से दुःखी हों आदि) पीतांबरा मंत्र माला 108 बार जप कर रहा हूं। मुझे इससे मुक्ति दिलावें।</span></div><div align="justify"><span class=""></span><strong><span style="font-size:130%;color:#ff0000;"><span class=""><span style="font-size:85%;">ऊँ ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा।</span> </span></span></strong></div>प० राजेश कुमार शर्माhttp://www.blogger.com/profile/04660776789092291604noreply@blogger.com0