राहु-केतु ग्रहों को छाया ग्रह कहा जाता है, क्योंकि आकाश में ये दोनों ग्रह विन्दुओं के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं।राहु-केतु दोनों ही आधयात्मिक ग्रह हैं। राहु-केतु ग्रहों का हमारे कर्म फल से बहुत गहरा संबंधा है। ये ग्रह जीवन के सूक्ष्म विन्दुओं के ज्यादा निकट हैं।इन ग्रहों द्वारा जीवन में जो भी अनिष्टकारी घटनायें होती है। वे जातक को आधयात्मिक की ओर अग्रसर करती है। राहु और केतु के मध्य मे जब समस्त ग्रह आजाते है तब काल सर्प योग का निर्माण होता है। लग्न के अनुसार 12 भाव अर्थात् 12 ग 12 = 144, अर्थात् उदित गोलार्द्ध के भेद के अनुसार 144 और अनुदित गोलार्द्ध के भेद के अनुसार 144 ग 2 = 288 प्रकार के काल सर्प योग होते हैं। जब कालसर्प योग राहु से लेकर केतु तक बनता है तब वह उदित गोलार्द्ध कहलाता है और जब केतु से लेकर राहु तक बनता है तब अनुदित गोलार्द्ध कहलाता है। शारीरिक और मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा की भावना जाग्रत होती है। कुटुंबियों द्वारा इनका व्यर्थ विरोध होता है। जातक सदैव धन के लिए तरसते रहते हैं। इन्हें पराक्रम और युक्तियुक्त प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिलती। विद्यार्जन में बाधाएं उपस्थित होती हैं। इनके कंधों पर ऋण का भारी बोझ बना रहता है। मित्र विश्वासघात करते हैं। स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न होते रहते हैं। केस मुकदमों के मकड़ जाल में जकड़ जाते हैं और कभी-कभी तो इन्हें बंदीगृह भी जाना पड़ता है। इनका विवाह विलंब से होता है। संतान सुख प्राप्त नहीं होता और यदि प्राप्त हो भी जाए तो दाम्पत्य जीवन में कटुता उत्पन्न हो जाती है और कभी-कभी तो संबंध विच्छेद तक हो जाता है। ये सभी स्थितियां सब पर लागू नहीं होती, पर राहु-केतु की स्थिति को देखते हुए उपर्युक्त तथ्यों में से एक या दो तथ्य अवश्य सत्य होते हैं। कालसर्प दोष की शांति के पश्चात उपलब्धियां तो प्राप्त होती हैं, क्या आपकी कुन्डली में कालसर्प योग है तो परेशान न हो हमे सम्पर्क करे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें