धर्मराज युधिष्ठर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’ मै उस सवांद को आप सभी के सम्मुख इस आश्य से प्रस्तुत कर रहा हूं कि आप सभी इस अवसर पर अपने मन कि इच्छाओं को भगवान श्री हरि के समक्ष रखे और दान धर्म कर लाभ उठाये।
29 अक्टूबर- 2009 श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, विष्णुत्रिरात्र पूर्ण, चातुर्मास व्रत-नियम पूर्ण, भीष्मपंचक प्रारंभ, तुलसी-विवाहोत्सव शुरू, संत नामदेव जयंती, सोनपुर मेला शुरू (बिहार), तीन वन-परिक्रमा (ब्रज), रवियोग सायं 4.49 बजे तक।
बोधिनी एकादशी का व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। एक समय धर्मराज युधिष्ठर ने गोपिका बल्लभ, विश्व के अधिष्ठान, सर्व प्राणियों में स्थित, परमश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए। उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’
भगवान श्रीकृष्ण बोले - ‘राजन्! कार्तिक के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका जैसा वर्णन लोकस्रष्टा ब्रह्माजी ने नारदजी से किया था, वही मैं तुम्हें बतलाता हूं।’
नारदजी ने ब्रह्माजी से कहा- ‘पिताजी! जिसमें धर्म-कर्म में प्रवृत्ति कराने वाले भगवान गोविंद जागते हैं, उस ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का माहात्म्य बतलाइए।’
ब्रह्माजी बोले- ‘मुनिश्रेष्ठ ! ‘प्रबोधिनी’ का माहात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। समुद्र से सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं, सभी अपने माहात्म्य की तभी तक गर्जना करते हैं, जब तक कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु की ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती। प्रबोधिनी एकादशी का एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल पा लेता है। पुत्र ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असंभव है तथा जिसे त्रिलोक में किसी ने भी नहीं देखा है, वह वस्तु प्रबोधिनी एकादशी करने से प्राप्त हो जाती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को यह एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरु पर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी प्रबोधिनी एक ही उपवास से भस्म कर देती है। हजारों पूर्व जन्मों में जो पाप किए गए हैं, उन्हें प्रबोधिनी की रात्रि का जागरण रुई की ढेरी के समान भस्म कर डालता है। जो लोग प्रबोधिनी एकादशी का मन से ध्यान करते तथा इसका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुखों से छुटकारा पाकर भगवान विष्णु के परमधाम को चले जाते हैं। ब्राह्मण ! अश्वमेध आदि यज्ञों से भी जिस फल की प्राप्ति कठिन है, वह प्रबोधिनी एकादशी को जागरण करने से अनायास ही मिल जाता है। संपूर्ण तीर्थों में नहाकर स्वर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह श्रीहरि के निमित्त जागरण करने मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्यों के लिए मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-संपत्ति मात्र भी क्षणभंगुर हैं, ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिए। तीनों लोकों में जो भी तीर्थ संभव हैं, वे सब प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के घर में मौजूद रहते हैं। कार्तिक की ‘हरिबोधिनी’ एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य प्रबोधिनी की उपासना करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और जितेंद्रिय है तथा उसी को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुत्र ! प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त जो स्नान, दान, जप और होम किया जाता है, वह सब अक्षय होता है। जो लोग इस तिथि को उपवास करके भगवान माधव की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मों के पापों से छुटकारा पा जाते हैं। इस व्रत के द्वारा देवेश्वर जनार्दन को संतुष्ट करके मनुष्य संपूर्ण दिशाओं को अपने तेज से प्रकाशित करता हुआ श्रीहरि के बैकुण्ठ धाम को जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को पूजित होने पर भगवान गोविन्द मनुष्यों के बचपन, जवानी और बुढ़ापे में किए हुए सौ जन्मों के पापों को, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः इस दिन सर्वथा प्रयत्न करके संपूर्ण मनोवांछित फलों को देने वाले देवाधिदेव जनार्दन की उपासना करनी चाहिए।
पुत्र नारद! जो भगवान विष्णु के भजन में तत्पर होकर कार्तिक में पराये अन्न का त्याग करता है, वह चान्द्रायण-व्रत का फल पाता है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चा से मनोरंजन करते हुए कार्तिक मास व्यतीत करता है, वह अपने संपूर्ण पापों को जला डालता और दस हजार यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के कहने-सुनने से भगवान मधुसूदन को जैसा संतोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान, जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभ कर्मपरायण पुरुष कार्तिक मास में एक या आधा श्लोक भी भगवान विष्णु की कथा बांचते हैं, उन्हें सौ गोदान का फल मिलता है। महामुने ! कार्तिक में भगवान केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिए। मुनि श्रेष्ठ! जो कार्तिक में कल्याण-प्राप्ति के लोभ से श्रीहरि की कथा का प्रबंध करता है, वह अपनी सौ पढ़ियों को तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिक मास में भगवान विष्णु की कथा सुनता है, उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है। जो प्रबोधिनी एकादशी के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है, उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। मुनि श्रेष्ठ ! जो लोग भगवान विष्णु की कथा सुनकर अपनी शक्ति के अनुसार कथा-वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। नारद! जो मनुष्य कार्तिक मास में भगवत्संबंधी गीत और शास्त्र-विनोद के द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी है। मुने! जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान के समक्ष गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णु की कथा करता है, वह तीनों लोकों के ऊपर विराजमान होता है।
मुनिश्रेष्ठ! कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी के दिन बहुत-से फल-फूल, कपूर, अरगजा और कुंकुम के द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। एकादशी आने पर धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रबोधिनी को जागरण के समय शंख में जल लेकर फल तथा नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रीजनार्दन को अघ्र्य देना चाहिए। संपूर्ण तीर्थों में स्नान करने और सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है, वही प्रबोधिनी एकादशी को अघ्र्य देने से करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। देवर्षि ! अघ्र्य के पश्चात् भोज-आच्छादन और दक्षिणा आदि के द्वारा भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए गुरु की पूजा करनी चाहिए। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवत की कथा सुनता अथवा पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिलादान का फल मिलता है। मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिक में जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकी के एक पत्ते से पूजित होने पर भगवान गरुड़ध्वज एक हजार वर्ष तक अत्यंत तृप्त रहते हैं। देवर्षे ! जो अगस्त के फूल से भगवान जनार्दन की पूजा करता है, उसके दर्शन मात्र से नरक की आग बुझ जाती है। वत्स ! जो लोग कार्तिक में भगवान जनार्दन को तुलसी के पत्र और पुष्प अर्पित करते हैं, उनका जन्म भर का किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है। मुने! जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्र युगों तक पुण्य का विस्तार करते हैं।
तुलसीदलपुष्पाणि ये यच्छन्ति जनार्दने। कार्तिके सकलं वत्स पापं जन्मार्जितं दहेत्।।
दृष्टा स्पृष्टाथ वा ध्याता कीर्तिता नामतः स्तुता। रोपिता सेचिता नित्यं पूजिता तुलसी नता।।
नवधा तुलसीभक्तिं ये कुर्वन्ति दिने दिने। युगकोटिसहस्राणि तन्वन्ति सुकृतं मुने।।
नारद ! सब प्रकार के फूलों और पत्तों को चढ़ाने से जो फल होता है, वह कार्तिकमास में तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से मिल जाता है। कार्तिक मास में प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसी के कोमल पत्तों से महाविष्णु श्रीजनार्दन का पूजन करना चाहिए। सौ यज्ञों द्वारा देवताओं का यजन करने और अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है, वह कार्तिक में तुलसीदल मात्र से केशव की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है।
मुनिश्रेष्ठ ! यद्यपि भगवान क्षण भर भी सोते नहीं हैं, फिर भी भक्तों की भावना ‘यथादेहे तथा देवे’ के अनुसार चार मास शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीर शयन के विषय में प्रसिद्ध है कि उन्होंने एकादशी के दिन ही महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीर सागर में जाकर सो गए। वे वहां चार माह तक शयन करते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी से इसका नाम देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी पड़ा । इस दिन व्रत के रूप में उपवास करने का विशेष महत्व है। यदि उपवास संभव न हो तो एक समय फलाहार करना चाहिए और संयम नियमपूर्वक रहना चाहिए। इस तिथि को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में भगवत्संबंधी कीर्तन, जप, वाद्य, नृत्य और पुराणों का पाठ करना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल, अघ्र्य आदि से गोविन्द भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की कर्णप्रिय, मनोहारी मांगलिक ध्वनि तथा निम्न मंत्रों द्वारा भगवान से जागने की प्रार्थना करें।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्।।
उतिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरू।।
इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पित करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।।तदनंतर भक्त प्रह्लाद, नारद, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीश, शुक्र, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद भक्तों को वितरण कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुनः भगवान गोविन्द का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजनादि पदार्थों से तृप्त कर दान दक्षिणा सहित विदाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
29 अक्टूबर- 2009 श्रीहरि-प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देवोत्थान उत्सव, विष्णुत्रिरात्र पूर्ण, चातुर्मास व्रत-नियम पूर्ण, भीष्मपंचक प्रारंभ, तुलसी-विवाहोत्सव शुरू, संत नामदेव जयंती, सोनपुर मेला शुरू (बिहार), तीन वन-परिक्रमा (ब्रज), रवियोग सायं 4.49 बजे तक।
बोधिनी एकादशी का व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को किया जाता है। इस एकादशी को देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। एक समय धर्मराज युधिष्ठर ने गोपिका बल्लभ, विश्व के अधिष्ठान, सर्व प्राणियों में स्थित, परमश्रेष्ठ भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘हे वासुदेव ! कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए। उसकी क्या महिमा है? इसका नाम प्रबोधिनी क्यों पड़ा? कृपया विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें।’
भगवान श्रीकृष्ण बोले - ‘राजन्! कार्तिक के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका जैसा वर्णन लोकस्रष्टा ब्रह्माजी ने नारदजी से किया था, वही मैं तुम्हें बतलाता हूं।’
नारदजी ने ब्रह्माजी से कहा- ‘पिताजी! जिसमें धर्म-कर्म में प्रवृत्ति कराने वाले भगवान गोविंद जागते हैं, उस ‘प्रबोधिनी’ एकादशी का माहात्म्य बतलाइए।’
ब्रह्माजी बोले- ‘मुनिश्रेष्ठ ! ‘प्रबोधिनी’ का माहात्म्य पाप का नाश, पुण्य की वृद्धि तथा उत्तम बुद्धिवाले पुरुषों को मोक्ष प्रदान करने वाला है। समुद्र से सरोवर तक जितने भी तीर्थ हैं, सभी अपने माहात्म्य की तभी तक गर्जना करते हैं, जब तक कि कार्तिक मास में भगवान विष्णु की ‘प्रबोधिनी’ तिथि नहीं आ जाती। प्रबोधिनी एकादशी का एक ही उपवास कर लेने से मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल पा लेता है। पुत्र ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति असंभव है तथा जिसे त्रिलोक में किसी ने भी नहीं देखा है, वह वस्तु प्रबोधिनी एकादशी करने से प्राप्त हो जाती है। भक्तिपूर्वक उपवास करने पर मनुष्यों को यह एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरु पर्वत के समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी प्रबोधिनी एक ही उपवास से भस्म कर देती है। हजारों पूर्व जन्मों में जो पाप किए गए हैं, उन्हें प्रबोधिनी की रात्रि का जागरण रुई की ढेरी के समान भस्म कर डालता है। जो लोग प्रबोधिनी एकादशी का मन से ध्यान करते तथा इसका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर नरक के दुखों से छुटकारा पाकर भगवान विष्णु के परमधाम को चले जाते हैं। ब्राह्मण ! अश्वमेध आदि यज्ञों से भी जिस फल की प्राप्ति कठिन है, वह प्रबोधिनी एकादशी को जागरण करने से अनायास ही मिल जाता है। संपूर्ण तीर्थों में नहाकर स्वर्ण और पृथ्वी दान करने से जो फल मिलता है, वह श्रीहरि के निमित्त जागरण करने मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्यों के लिए मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-संपत्ति मात्र भी क्षणभंगुर हैं, ऐसा समझकर एकादशी का व्रत करना चाहिए। तीनों लोकों में जो भी तीर्थ संभव हैं, वे सब प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य के घर में मौजूद रहते हैं। कार्तिक की ‘हरिबोधिनी’ एकादशी पुत्र तथा पौत्र प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य प्रबोधिनी की उपासना करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही तपस्वी और जितेंद्रिय है तथा उसी को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुत्र ! प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त जो स्नान, दान, जप और होम किया जाता है, वह सब अक्षय होता है। जो लोग इस तिथि को उपवास करके भगवान माधव की भक्तिपूर्वक पूजा करते हैं, वे सौ जन्मों के पापों से छुटकारा पा जाते हैं। इस व्रत के द्वारा देवेश्वर जनार्दन को संतुष्ट करके मनुष्य संपूर्ण दिशाओं को अपने तेज से प्रकाशित करता हुआ श्रीहरि के बैकुण्ठ धाम को जाता है। ‘प्रबोधिनी’ को पूजित होने पर भगवान गोविन्द मनुष्यों के बचपन, जवानी और बुढ़ापे में किए हुए सौ जन्मों के पापों को, चाहे वे अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः इस दिन सर्वथा प्रयत्न करके संपूर्ण मनोवांछित फलों को देने वाले देवाधिदेव जनार्दन की उपासना करनी चाहिए।
पुत्र नारद! जो भगवान विष्णु के भजन में तत्पर होकर कार्तिक में पराये अन्न का त्याग करता है, वह चान्द्रायण-व्रत का फल पाता है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चा से मनोरंजन करते हुए कार्तिक मास व्यतीत करता है, वह अपने संपूर्ण पापों को जला डालता और दस हजार यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास में शास्त्रीय कथा के कहने-सुनने से भगवान मधुसूदन को जैसा संतोष होता है, वैसा उन्हें यज्ञ, दान, जप आदि से भी नहीं होता। जो शुभ कर्मपरायण पुरुष कार्तिक मास में एक या आधा श्लोक भी भगवान विष्णु की कथा बांचते हैं, उन्हें सौ गोदान का फल मिलता है। महामुने ! कार्तिक में भगवान केशव के सामने शास्त्र का स्वाध्याय तथा श्रवण करना चाहिए। मुनि श्रेष्ठ! जो कार्तिक में कल्याण-प्राप्ति के लोभ से श्रीहरि की कथा का प्रबंध करता है, वह अपनी सौ पढ़ियों को तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक कार्तिक मास में भगवान विष्णु की कथा सुनता है, उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है। जो प्रबोधिनी एकादशी के दिन श्रीविष्णु की कथा श्रवण करता है, उसे सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त होता है। मुनि श्रेष्ठ ! जो लोग भगवान विष्णु की कथा सुनकर अपनी शक्ति के अनुसार कथा-वाचक की पूजा करते हैं, उन्हें अक्षय लोक की प्राप्ति होती है। नारद! जो मनुष्य कार्तिक मास में भगवत्संबंधी गीत और शास्त्र-विनोद के द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी है। मुने! जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान के समक्ष गान, नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णु की कथा करता है, वह तीनों लोकों के ऊपर विराजमान होता है।
मुनिश्रेष्ठ! कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी के दिन बहुत-से फल-फूल, कपूर, अरगजा और कुंकुम के द्वारा श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए। एकादशी आने पर धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिए; क्योंकि उस दिन दान आदि करने से असंख्य पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रबोधिनी को जागरण के समय शंख में जल लेकर फल तथा नाना प्रकार के द्रव्यों के साथ श्रीजनार्दन को अघ्र्य देना चाहिए। संपूर्ण तीर्थों में स्नान करने और सब प्रकार के दान देने से जो फल मिलता है, वही प्रबोधिनी एकादशी को अघ्र्य देने से करोड़ गुना होकर प्राप्त होता है। देवर्षि ! अघ्र्य के पश्चात् भोज-आच्छादन और दक्षिणा आदि के द्वारा भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए गुरु की पूजा करनी चाहिए। जो मनुष्य उस दिन श्रीमद्भागवत की कथा सुनता अथवा पुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर पर कपिलादान का फल मिलता है। मुनिश्रेष्ठ ! कार्तिक में जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करता है, उसकी मुक्ति अविचल है। केतकी के एक पत्ते से पूजित होने पर भगवान गरुड़ध्वज एक हजार वर्ष तक अत्यंत तृप्त रहते हैं। देवर्षे ! जो अगस्त के फूल से भगवान जनार्दन की पूजा करता है, उसके दर्शन मात्र से नरक की आग बुझ जाती है। वत्स ! जो लोग कार्तिक में भगवान जनार्दन को तुलसी के पत्र और पुष्प अर्पित करते हैं, उनका जन्म भर का किया हुआ सारा पाप भस्म हो जाता है। मुने! जो प्रतिदिन दर्शन, स्पर्श, ध्यान, नाम-कीर्तन, स्तवन, अर्पण, सेचन, नित्यपूजन तथा नमस्कार के द्वारा तुलसी में नव प्रकार की भक्ति करते हैं, वे कोटि सहस्र युगों तक पुण्य का विस्तार करते हैं।
तुलसीदलपुष्पाणि ये यच्छन्ति जनार्दने। कार्तिके सकलं वत्स पापं जन्मार्जितं दहेत्।।
दृष्टा स्पृष्टाथ वा ध्याता कीर्तिता नामतः स्तुता। रोपिता सेचिता नित्यं पूजिता तुलसी नता।।
नवधा तुलसीभक्तिं ये कुर्वन्ति दिने दिने। युगकोटिसहस्राणि तन्वन्ति सुकृतं मुने।।
नारद ! सब प्रकार के फूलों और पत्तों को चढ़ाने से जो फल होता है, वह कार्तिकमास में तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से मिल जाता है। कार्तिक मास में प्रतिदिन नियमपूर्वक तुलसी के कोमल पत्तों से महाविष्णु श्रीजनार्दन का पूजन करना चाहिए। सौ यज्ञों द्वारा देवताओं का यजन करने और अनेक प्रकार के दान देने से जो पुण्य होता है, वह कार्तिक में तुलसीदल मात्र से केशव की पूजा करने पर प्राप्त हो जाता है।
मुनिश्रेष्ठ ! यद्यपि भगवान क्षण भर भी सोते नहीं हैं, फिर भी भक्तों की भावना ‘यथादेहे तथा देवे’ के अनुसार चार मास शयन करते हैं। भगवान विष्णु के क्षीर शयन के विषय में प्रसिद्ध है कि उन्होंने एकादशी के दिन ही महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद थकावट दूर करने के लिए क्षीर सागर में जाकर सो गए। वे वहां चार माह तक शयन करते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे। इसी से इसका नाम देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी पड़ा । इस दिन व्रत के रूप में उपवास करने का विशेष महत्व है। यदि उपवास संभव न हो तो एक समय फलाहार करना चाहिए और संयम नियमपूर्वक रहना चाहिए। इस तिथि को रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में भगवत्संबंधी कीर्तन, जप, वाद्य, नृत्य और पुराणों का पाठ करना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल, अघ्र्य आदि से गोविन्द भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की कर्णप्रिय, मनोहारी मांगलिक ध्वनि तथा निम्न मंत्रों द्वारा भगवान से जागने की प्रार्थना करें।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्।।
उतिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरू।।
इसके बाद भगवान की आरती करें और पुष्पांजलि अर्पित करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।।तदनंतर भक्त प्रह्लाद, नारद, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीश, शुक्र, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद भक्तों को वितरण कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुनः भगवान गोविन्द का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजनादि पदार्थों से तृप्त कर दान दक्षिणा सहित विदाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
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