शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है

17 अक्टूबर को उदयतिथि चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह 11:04 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रदोषकाल से रात्रि तक रहने वाली अमावस्या में दीपावली मनाया जाना उचित है। इस कारण 17 अक्टूबर को चतुर्दशी के दिन ही दीपावली मनाई जाएगी।’पांच दिवसीय दीपोत्सव 15 अक्टूबर को 4:40 बजे तक ही द्वादश तिथि रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी होने से धनतेरस भी मनेगी। 16 अक्टूबर को त्रयोदशी दोपहर 2:32 बजे तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी का दीपदान होगा। 17 अक्टूबर को चतुर्दशी दोपहर 12:38 बजे तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। इस लिए इसी दिन रात को लक्ष्मीपूजन के साथ दीपावली मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को अमावस्या सुबह 11:04 तक रहेगी। फिर प्रतिपदा शुरू होगी। इसी दिन गोवर्धन पूजा होगी। 19 अक्टूबर को प्रतिपदा सुबह 9:58 बजे तक रहेगी। इसके बाद भाईदूज का पर्व मनाया जा सकेगा।
प्रदोश काल ---सायं काल 05-47 से 08-20 तक रात्रि में वृषलग्न--07-21 से 09-15 तक मध्य रात्रि मे सिंह लग्न --02-00 से 04-16 तक चौघडियां मुहूर्त --शाम 05 से 07--28 तक शुभ अमृत तथा चर के चौघडियां रात्रि 09 से मध्य रात्रि 01--47बजे तक

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

शत्रुता समाप्ति के लिए टोटके



शत्रुता समाप्ति के लिए टोटके


हमे प्राप्त मेलो के जन्म लग्ग्ल चक्र के आधार पर ज्योतिष पुस्तको एवं विद्धवानो के अनुभव के आधार पर जनकल्याण के उद्धेश्य से देना प्रारम्भ कर रहें हैं।
अपने पूजा स्थल में शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को बगलामुखी यंत्र स्थापित करें। नित्य नहा धोकर यंत्र के दर्शन करें। गेंदे का एक पीला फूल अवश्य चढ़ाएं। शत्रु शत्रुता त्याग दें यह प्रार्थना दीन भाव से करें, कुछ ही समय में प्रबल शत्रु तक की शत्रुता समाप्त हो जाएगी।
यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है।
इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है जिसे हम यहाँ पर देना उचित समझते हैं। इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) एक निश्चित समय पर पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।
आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
मां बगलामुखी साधना का उद्देश्य व लाभ
शत्रु शमन, मुकदमों, किसी तरह की प्रतिस्पर्धा आदि में विजय मन चाहे व्यक्ति से भेंटअनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमनकार्यक्षेत्र में सफलता वाक् सिद्धिफंसे हुए धन की प्राप्तिरोंगो से मुक्ति शरीर में ‘वात’ का संतुलन बनाए रखनाबुरी आत्माओं से बचाव व प्रेत बाधा आदि से मुक्तिदुर्घटना, घाव, आपरेशन आदि से रक्षा14 बार इंद्र या वरुण मंत्र से अभिमंत्रित यंत्र को बाढ़ के जल में फेंक देने से बाढ़ रुक जाती हैपूजन विधि: सर्वप्रथम पीत वस्त्र बिछा कर उसपर पीले चावल की ढेरी बनावें। सामने पीतांबरा का चित्र रख कर, या चावल की ढेरी को पीतांबरा देवी मान कर उसकी विधिवत पंचमोपचार से पूजा करें। पीले पुष्प, पीले चावल आदि का उपयोग करें। घी, या तेल का दीपक जला कर सर्वप्रथम गुरु पूजा, फिर पीतांबरा देवी की पूजा करें। इसके पश्चात् संकल्प करें कि मैं अपनी अमुक समस्या के समाधान हेतु (समस्याः पारिवारिक कष्ट, पति, या पत्नी के अत्याचार से दुःखी हों आदि) पीतांबरा मंत्र माला 108 बार जप कर रहा हूं। मुझे इससे मुक्ति दिलावें।
ऊँ ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा।

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

आय में वृर्दि के लिये प्रयोग

हमारे शास्त्रो में लक्ष्मी को प्रसन्न करने के अनेक उपायो का उल्लेख मिलता हैं और हमारे पूर्वजो ने इनका प्रयोग करके लाभ उठाया हैं यह प्रयोग मैं अपने शिष्यों को पिछलें २० वर्षो से करा रहा हूं लाभ हुआ इच्छा हुई कि आप सभी तक यह प्रयोग पहुचें। जब आप अपने कार्यालय या व्यापार स्थल पर जा कर बैठते हैं उस समय सर्व प्रथम देहली को प्रणम करे और बैठने के स्थान पर बैठ कर ईश्वर का ध्यान करते हुऐ यह चौपाई पढे।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख संपति नाना विध पावहिं।।
मुझे विश्वास हैं कि भगवान आपकी मनोकामना को अवश्य पूर्ण करेगे।