सोमवार, 28 सितंबर 2009

रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापाप

रावण जलाया तो मृत्यु निश्चित शिव नगरी में बैजनाथ में,,शिव नगरी बैजनाथ में लोगों की मान्यता पुतला जलाना तो दूर सोचना भी महापाप आज सुबह मै पूजा में बैठा हि था कि मोबाईल बजने लगा मेरे शिष्य का फोन था कह रहा था कि यहां पर जागरण में छपा हैं कि पुतला जला तो मौत हैं मुझे भी पढने कि इच्छा हुई फैक्स मिला पढने में नही आया फिर थोडी देर में फोन आया तो कहां आप इसे हाथ सें लिख कर भेजो बेचारे ने मेहनत करी पढा आर्श्चय हुआ फिर सोचा यह जानकारियां सभी को हो इस कारण लिख रहां हूं। जागरण टीम, बैजनाथ/धर्मशाला : देशभर में भले ही विजयदशमी की धूम हो मगर एक जगह ऐसी भी है जहां लंकापति रावण का पुतला जलाना तो दूर इस बारे में सोचना भी महापाप है। यह इलाका है कांगड़ा जिले का बैजनाथ जहां मान्यता है कि यदि इस क्षेत्र में रावण का पुतला जलाया गया तो मृत्यु निश्चित है। शिवनगरी के नाम से मशहूर बैजनाथ में रावण के चरित्र का एक और पहलू भी उजागर होता है। महापंडित रावण ज्ञानी, पराक्रमी, तपस्वी व शिवभक्त था। यही कारण है कि बैजनाथ में आज भी दशहरे वाले दिन रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है। मान्यता के अनुसार रावण ने कुछ वर्ष बैजनाथ में भगवान शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान प्राप्त किया था। शिव के सामने उनके परमभक्त के पुतले को जलाना उचित नहीं था और ऐसा करने पर दंड तत्काल मिलता था, लिहाजा रावणदहन यहां नहीं होता। 1967 में बैजनाथ में एक कीर्तन मंडली ने क्षेत्र में दशहरा मनाने का निर्णय लिया। 1967 में दशहरे की परंपरा शुरू होने के एक साल के भीतर यहां इस उत्सव को मनाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले व रावण के पुतले को आग लगाने वालों की या तो मौत होने लगी या उनके घरों में भारी तबाही हुई। यह सिलसिला 1973 तक चलता रहा। 1973 में तो बैजनाथ में प्रकृति ने भी कहर बरपाया तथा पूरे क्षेत्र में फसलों को बर्बाद कर दिया। इन घटनाओं को देखते हुए बैजनाथ में दशहरा मनाना बंद कर दिया गया। बैजनाथ स्थित मंदिर में स्थापित शिवलिंग को रावण द्वारा कैलाश से लंका ले जाए जा रहे उसी शिवलिंग से जोड़ा जाता है, जो उसे शिव की घोर तपस्या के बाद वरदान के रूप में मिला था। शिव द्वारा बीच रास्ते में शिवलिंग को भूमि में न रखने की शर्त को पूरा न कर पाने के कारण यह शिव लिंग बैजनाथ में स्थापित हो गया। इसके बाद रावण ने बैजनाथ में भगवान शिव की फिर तपस्या की। बैजनाथ में बिनवा पुल के पास स्थित एक मंदिर को रावण का मंदिर है जिसमें शिवलिंग व उसी के पास एक बड़े पैर का निशान है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने इसी स्थान पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। इसके बाद शिव मंदिर के पूर्वी द्वार में खुदाई के दौरान एक हवन कुंड भी निकला था। इस कुंड के समक्ष रावण ने हवन कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी।

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अत्यंत रोचक ज्ञानवर्धक आलेख......प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार.

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  2. Bom dia meu amigo irmão em Cristo.
    A paz de JESUS nosso DEUS e Salvador.

    Com vai aí na Índia,aqui no BRASIL está chovendo.O Clima está bom.
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    O SENHOR JESUS te abençoe e te guarda,O SENHOR faça resplandecer o seu rosto sobre tí e tenha misericórdia de ti;O SENHOR sobre ti levante o seu rosto e te dê a paz.
    [Números cap 6 v.24,25,26]

    Que os irmãos Indianos cresçam cada vez mais na fé em JESUS nosso DEUS e Salvador.
    A paz para todos os Indianos,Estamos perto por Amor a DEUS.
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    Meu nome-Geraldo Barreto da silva
    Cidade DiamantinMG BRASIL

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